जल संरक्षण एवं प्रबंधन की जरूरत
20 साल पहले तक बगीचों में अनगिनत पेड़ हुआ करते थे तो आज उनकी संख्या उंगलियों पर गिनी जा सकती है। पेड़ सूख गए तो नए पौधे लगाने की जरूरत नहीं समझी गई। इन्हीं सब का नतीजा है कि जल संकट की समस्या बढ़ती जा रही है। वर्तमान में पीने के पानी से लेकर सिंचाई तक के लिए पानी की सारी जरूरतें धरती से पूरी की जा रही हैं। इसका परिणाम है कि जल स्तर में निरंतर गिरावट आ रही है। निश्चित ही यह चिंता का विषय है।
बीते दिनों प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ‘मन की बात’ में जल को प्रसाद बताया था। उन्होंने लोगों से अपील की और कहा कि पानी बचाएं। प्रधानमंत्री की चिंता जायज है। इस समय पूरी दुनिया जल संकट की समस्या से जूझ रही है। अधिकांश देशों में पेयजल की किल्लत बनी हुई है। भारत भी इस समस्या से जूझ रहा है। आज भी बड़ी आबादी की पहुंच सुलभ पेयजल तक नहीं है। महाराष्टï्र समेत देश के कई राज्य भयानक सूखे की चपेट में हैं। महाराष्ट्र के लातूर में तो पानी आपूर्ति के लिए सरकार को ट्रेन भेजनी पड़ी थी। प्रधानमंत्री देश में पानी की समस्या के प्रति संवेदनशील हैं, इसलिए उन्होंने कहा कि पानी बचाने की जिम्मेदारी सिर्फ सरकारों व नेताओं की ही नहीं, बल्कि यह जन-सामान्य की जिम्मेदारी भी है। पीएम ने कहा कि पानी की एक बूंद भी बर्बाद हो, तो हमें पीड़ा होनी चाहिए। वे ‘स्वच्छ भारत’ की तरह ही ‘जल संरक्षण’ को भी एक जन-अभियान बनाना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि हमें आने वाले चार महीने में वर्षाजल के बूंद-बूंद को संरक्षित करने की चेष्टा करनी चाहिए।
दरअसल, भारत में वर्षाजल संरक्षण के प्रति पर्याप्त जागरूकता नहीं है, जबकि विश्व के दूसरे देश इस क्षेत्र में बहुत आगे हैं। शायद इसीलिए देश में पानी की समस्या बढ़ती जा रही है। गांवों में जल स्रोत सूख चुके हैं। इसके लिए काफी हद तक लोग खुद ही जिम्मेदार हैं। तालाब-कुओं का अस्तित्व खत्म हो चुका है। बगीचों का अस्तित्व भी मिटने के कगार पर है। 20 साल पहले तक बगीचों में अनगिनत पेड़ हुआ करते थे तो आज उनकी संख्या उंगलियों पर गिनी जा सकती है। पेड़ सूख गए तो नए पौधे लगाने की जरूरत नहीं समझी गई। इन्हीं सब का नतीजा है कि जल संकट की समस्या बढ़ती जा रही है। वर्तमान में पीने के पानी से लेकर सिंचाई तक के लिए पानी की सारी जरूरतें धरती से पूरी की जा रही हैं। इसका परिणाम है कि जल स्तर में निरंतर गिरावट आ रही है। निश्चित ही यह चिंता का विषय है। हम धरती का जितना दोहन कर रहे हैं, उस अनुपात में उतना वापस नहीं कर रहे हैं तो यह समस्या होनी ही है। प्रधानमंत्री मोदी ने यह भी कहा था कि हमें ऐसी फसल की खेती करनी चाहिए, जिसमें कम पानी लगता हो। इस मामले में मिस्र और चीन बहुत आगे है। ये दोनों देश अपने जल भंडार को बचाने के लिए अप्रत्यक्ष तौर पर ‘वाटर इंपोर्ट मैनेजमेंट’ को अपना रहे हैं। जल संरक्षण के प्रति प्रधानमंत्री की संवेदनशीलता अच्छी बात है और सूखे से निपटने जैसे मुद्दों पर हमें समग्रता में जल प्रबंधन के लिए कृषि, सिंचाई व पर्यावरण के समावेश के साथ राष्ट्रीय जलनीति जल्द बनानी होगी, जिसमें वनसंरक्षण पर भी फोकस हो और उस नीति को अमल में भी लाया जा सके।