ग्वारपाठा के पौधे के रोग
ग्वारपाठा या घृतकुमारी (aloevera) कांटेदार पत्तियों वाला पौधा हैं, जिसमें रोग को दूर करने के बहुत सारे गुण भरे होते हैं। यह भारत के गर्म जगहों में पाया जाने वाला एक बारहमासी पौधा हैं और लिलिएसी परिवार से संबंधित हैं। आयुर्वेद में इसे घृतकुमारी के नाम से जाना जाता है । ग्वारपाठा की 200 जातियां होती हैं, परंतु इसकी 5 जातियां ही मानव शरीर के लिए उपयोगी हैं। यह खून की कमी को दूर करता हैं तथा शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता हैं। पत्तियों का रस माइकोबैक्टीरियम क्षयरोग के विकास को रोकता हैं। यह एंटीइन्फ्लामेंटरी, एंटीसेप्टिक, एंटी अलसर, एंटी टूमओर और मधुमेह के उपचार में कारगर हैं। अर्द्ध ठोस जेल कॉस्मेटिक, क्रीम, लोशन और शैम्पू में प्रयोग किया जाता हैं। यह विकिरण प्रेरित घावों के उपचार में भी कारगर हैं। ग्वारपाठा का पौधा विभिन प्रकार के रोगों दवारा ग्रसित होता हैं। हर एक मौसम में रोग इन पर पनपते हैं तथा इनको प्रभावित करते हैं। इस पौधे के मुख्य रोग एवं निवारण निचे दिये गए हैं। औषधि की दुनिया में इसे संजीवनी भी कहा जाता है।
1. गोलाकार धब्बे-: यह एलोवेरा का एक गंभीर रोग हैं। गोलाकार धब्बे पौधे के पत्तों पर प्रमुख होते हैं। यह बीमारी पहली बार हचिोजिमा और चिचिजिना, टोक्यो के समुद्री टापुओं पर पाई गए थी। धब्बों के ऊपर हेमटोनेक्टेरिआ हेमटोकोका के कोनिडिया आसानी से देखे जा सकते हैं।
2. पत्ती धब्बा और सिरा झुलसा रोग-: यह रोग बरसात के मौसम में आम हैं। पत्तियों पर हल्के भूरे रंग के गोल धब्बे बन जाते हैं जिनके चारों तरफ निचली सतह पर पीले घेरे होते हैं। उग्र प्रकोप से तने तथा पुष्प शाखाओं पर भी धब्बे बन जाते हैं। इस रोग से पत्तो का 30-40 फीसदी क्षेत्र धब्बो के द्वारा संकर्मित होता हैं। यह रोग पतियों के मुड़ने और झड़ने का कारण बनते हैं तत्पश्चात सूखने के कारण के पौधे से गिर जाते हैं।
3. मलानी रोंग या विल्ट-: यह फुज़ेरियम नामक कवक से फैलता हैं। यह पौधो में पानी व खाद्य पदार्थ के संचार को रोक देता हैं। जिससे पंत्तियां पीली पड़कर सूख जाती हैं और पौधा सूख जाता हैं। इसमें जड़े सड़कर गहरे रंग की हो जाती हैं तथा छाल हटाने पर जड़ से लेकर तने की ऊंचाई तक काले रंग की धारियां पाई जाती हैं।
4. ऐन्थ्रेक्नोज़ पत्ती धब्बा रोग-:इस रोग से पौधे में पानीनुमा, हलके भूरे और थोड़ा धसे हुए धब्बे बनते हैं। यह धब्बे सामान्यतः 2-3 से०मी० व्यास के होते हैं। पत्तो के सिरो इससे जले हुई दिखाए देते हैं।
5. जीवाणु गीली सड़न-: शुरूआती लक्षण पत्तों पर बरसात के दिनों में पानीनुमा धब्बो के रूप दिखाई देते हैं। पौधे में सड़न नीचे से ऊपर की और तेजी से बढ़ती हैं। इससे पौधा 2-3 दिन में मर जाता हैं।
6. मुसब्बर रतुआ रोग-: इस रोग द्वारा मुसब्बर की पत्तियों पर रतुआ से उत्पन्न काले और भूरे रंग के फफोले दिखाई देते हैं|