फूलगोभी की व्यावसायिक खेती
किसान साथियों फूलगोभी इस क्षेत्र की प्रमुख सब्जी की फसल है । सामान्य रूप से किसान इसे जाड़े में उगाते हैं। लेकिन फूलगोभी की अनेकों प्रजातियां बाजार में उपलब्ध है, जिनका आवश्यकतानुसार चयन करके, वर्षभर फूलगोभी उगा सकते हैं। फूलगोभी उगाने से निम्न लाभ है । फूलगोभी बहुत कम समय अर्थात 80 से 85 दिन में तैयार होने वाली एक सब्जी फसल है ।
प्रति इकाई क्षेत्रफल में सामान्य किस्मो से 250 से 300 कुंतल प्रति हेक्टेयर व संकर किस्मों से 400 से 500 कुंतल प्रति हेक्टेयर तक फूलगोभी का उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। चूंकि इस फसल की पहले पौध उगाई जाती है। इसलिए 1 माह तक किसान अपने घर के पास पौधशाला बनाकर पौध उगा सकता है। जिससे खेत में फसल को उगाने में समय की बचत होती है । इसी कारण से फूलगोभी कृषि के अनेक फसल चक्रों में आसानी से संमावित हो जाती है। इस क्षेत्र में गेहूं व धान का बहुत अधिक क्षेत्रफल है। ऐसे में गेहूं काटकर व धान लगाने से पूर्व फूलगोभी की अतिरिक्त फसल ली जा सकती है ।
खेत की तैयारी व मिट्टी
फूलगोभी की खेती अच्छे जल निकास वाली बलुई- दोमट मृदा में, जिसका पीएच 5.5 से 7.5 तक हो, आसानी से की जा सकती है। खेत की तैयारी एक बार गहरी जुताई करके, दो बार सामान्य हैरों से जुताई कर दें व अंतिम जुताई के समय 250 से 300 कुंटल सड़ी हुई गोबर की खाद या 100 से 120 कुंटल वर्मी कंपोस्ट खाद के साथ 60 किलोग्राम नत्रजन, 50 किलोग्राम फास्फोरस एवं 50 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर खेत में मिला देना चाहिए। शेष 60 किलोग्राम नत्रजन को दो भागों में खड़ी फसल में रोपाई के 3 सप्ताह बाद वह दूसरा प्रयोग 5 सप्ताह बाद करना चाहिए।
गोभी की अच्छी पैदावार लेने के लिए यह आवश्यक है कि, वैज्ञानिक विधि से उसकी पौध तैयार की जाए। पौधशाला के लिए किसान भाई अपने घर के आस-पास खाली पड़ा क्षेत्र या खेत में जहां पानी के अच्छी सुविधा हो व जहाँ आसानी से देखभाल की जा सके, वहां उगानी/ बनानी चाहिए। गोभी की पौधशाला के ऊपर लगभग 8 फीट ऊंचाई पर पॉलिथीन तान देनी चाहिए। यानी पॉलिथीन शेड के नीचे पौधशाला बनानी चाहिए। पौधशाला के लिए 90 सेंटीमीटर चौड़ी व 5 से 6 मीटर आवश्यकतानुसार लंबी क्यारियां, जो जमीन से लगभग 30 से 40 सेंटीमीटर ऊंची उठी हुई हो, तैयार करनी चाहिए. क्यारियों में पूर्ण रूप से सड़ी हुई गोबर की खाद के साथ, 10 ग्राम ट्राइकोडरमा, 2 किलोग्राम नीम की खली प्रति वर्ग मीटर क्षेत्रफल में मिलाना चाहिए ।
फूलगोभी की उन्नतशील प्रजातियों में पंत गोभी 3, पंतगोभी 4, पूसा शरद ,पूसा शुभ्रा, पंत शुभ्रा प्रमुख हैं । इसके अतिरिक्त बहुराष्ट्रीय कंपनियों की अनेकों प्रजातियां, अगेती, पछेती, मध्य ग्रुप व तापमान के अनुसार बाजार में उपलब्ध है। इनका भी योजनानुसार चयन कर सकते है। किसान भाई बीज को किसी एजेंसी या दुकान से खरीदने से पहले, बीज कंपनी के तकनीकी विशेषज्ञ से सलाह मशविरा अवश्य करें व उस अमुख प्रजाति की सभी कर्षण क्रियाओं व वैज्ञानिक विधियों को जानकर खेती करें। एक हेक्टेयर क्षेत्रफल के लिए सामान्य प्रजातियों की 500 ग्राम व संकर प्रजातियों का 250 से 300 ग्राम बीज पर्याप्त रहता है ।बीज का शोधन सर्वप्रथम कार्बेंडाजिम नामक रसायन के 2 ग्राम/किग्रा से करने के उपरांत स्ट्रिपोसाइक्लिन के 1 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के हिसाब से घोल बनाकर बीज पर छिड़काव कर दें व महोबा लगा दें। बीज को भिगोए नहीं चाहिए।
इस प्रकार शोधित किए हुए बीच को पौधशाला में लाइनों में लगभग 1 सेंटीमीटर की दूरी बीज से बीज की रखते हुए बुबाई करें। लाइनों को पौधशाला की ही मिट्टी एक छन्नी के माध्यम से ऊपर से छानते हुए ढक दें ।इसके उपरांत कांस या भरा अथवा पुआल की पतली परत दिखा दें एवं हजारे से हल्का पानी दे दें। फूल गोभी की पौध लगभग 25 से 28 दिन में तैयार हो जाती है । 5 दिन के बाद लगभग सभी बीच जमकर बाहर आ जाएंगे। इस समय पौधशाला के ऊपर से कांस अथवा भरा को हटा देना चाहिए । व 1 ग्राम कार्बेंडाजिम प्रति लीटर पानी के घोल से पौधशाला की ड्रैंचिंग करनी चाहिए। पौधशाला में तीसरे दिन पानी देना चाहिए। लगभग 10 दिन की पौध होने पर एक स्प्रे इमिडाक्लोप्रिड नामक रसायन का 0.5 मिली लीटर प्रति पानी के दर से घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए। इसके बाद 4 दिन तक पौधों में पानी नही लगाएं, जिससे भोजन की तलाश में जड़े गहरे में जाएंगी और पौधे मजबूत बनेंगे। इसी प्रकार पौध को उखेड़ने से 3 दिन पहले पानी रोक दें इससे पौध के अंदर मजबूती आएगी यानि पौधे के तनों में जाइलम कोशिकाओं का विकास होगा। जिस समय पौधे उखेड़े उससे एक घंटे पहले पानी दे दें और क्रेट अथवा टोकरी मे रखकर, खेत में रोपाई के लिए ले जाएं ।
पौधशाला में से एक साथ सारी पौध नहीं उखेड़नी चाहिए। जितने स्वस्थ व ताकतवर व एक समान ऊंचाई के पौधे हो, पहले उन को उखेड़े। 4 से 5 दिन बाद पौधशाला के शेष पौधे भी मजबूत हो जाते हैं। फिर उनको उखेड़कर खेत में लगाएं।
खेत में 5 x10 मीटर की क्यारियां बना लें। क्यारी विधि से पानी लगाने के लिए दो क्यारियों की लाइनों के बीच एक सिंचाई की नाली अवश्य बना दें। फूलगोभी के पौधों की रोपाई सामान्य प्रजातियों की 30 से 40 सेंटीमीटर लाइन से लाइन व 20 से 25 सेंटीमीटर पौधे से पौधे की दूरी रखते हैं । जबकि संकर प्रजातियों में लाइन से लाइन 40 से 50 सेंटीमीटर व पौधे से पौधे के बीच 25 से 30 सेंटीमीटर की दूरी रखते हुए लाइनों में रोपाई करनी चाहिए। रोपाई के तुरंत बाद जड़ों में पानी दे देना चाहिए। पानी देने का आसान तरीका, स्प्रे करने वाले पंप में पानी भरकर उसके नाँजिल को ढीला करके पौधों की जड़ों में पानी स्प्रे करते चले जांयें। इस विधि से बहुत जल्दी पानी लग जाता है। खड़ी फसल में नियमित देखभाल करते रहें। जो भी पौधा तेज धूप में या अन्य कारण से नष्ट हो उसे तत्काल नर्सरी से नये पौधे को रोप देना चाहिए । इसके लिए पौधशाला में कुछ बीज पौध लगाने के 15 दिन बाद बुबाई कर पौध तैयार रखनी चाहिए। ताकि जब भी खेत में कहीं भी पौधा नष्ट हो, तत्काल नया पौधा उसी उम्र का वहां पर रोपित कर देना चाहिए। ऐसा करने से कभी भी खेत में पौधों की संख्या कम नहीं होती और उत्पादन भरपूर मिलता है। गर्मियों में फूलगोभी में लगभग 5 से 6 दिन पर सिंचाई की आवश्यकता होती है। खेत की मिट्टी व मौसम की दशा के अनुसार सिंचाई करते रहना चाहिए। बरसात में यदि फूलगोभी की खेती करनी हो तो लगभग 2 फीट चौड़ी जमीन से 10 सेंटीमीटर ऊंची उठी हुई क्यारी के ऊपर पौध को रोपित करना चाहिए। ऐसा करने से बरसात में अधिक पानी की स्थिति में पौधे खराब नहीं होते और वर्षा ना होने पर सिंचाई करने से लगभग 35 से 50% तक जल की बचत होती है। फूलगोभी के सफल उत्पादन के लिए यह आवश्यक है कि यूरिया की दूसरी टॉप ड्रेसिंग यानी 30 किलो यूरिया को दो भागों में बांट दें। 15 किलो यूरिया 750 लीटर पानी में घोल बनाकर पहला स्प्रे फूल आते समय व इतनी ही मात्रा का दूसरा स्प्रे जब फूल 3 से 4 सेंटीमीटर व्यास का हो जाए, खड़ी फसल में स्प्रे कर देना चाहिए। फूल गोभी की फसल में नत्रजन का पर्णीयस्प्रे के रूप में अच्छा परिणाम प्राप्त होता है। स्प्रे हमेशा खुली धूप में सुबह 11:00 बजे से 2:00 बजे तक करना चाहिए।
गर्मी के मौसम व बरसात में फूल गोभी की फसल को अनेक कीट एवं बीमारियां नुकसान पहुंचाते हैं। कीटों में मुख्य रूप से पत्ती खाने वाला कीट, गोभी की सूंडी और कुतरा कीट प्रमुख है। कुतरा कीट जब खेत में पौध की रोपाई करते हैं, उस समय, रात में पौधों को जड़ों के पास से काटकर गिरा देता है साथ ही पौधशाला में भी पौध को काफी नुकसान पहुंचाता है, स्क्रीन की रोकथाम के लिए पौधशाला में पूर्व में बताई गई विधि के अनुसार पौध का उत्पादन करें व खेत में क्लोरो पायरीफास धूल का लगभग 5 से 6 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर सायं के समय खेत में प्रयोग करें। खेत में 20 लकड़ी की डांडिया(T/ टी) के आकार की बनाकर गाड़ दें। इसको वर्ल्ड पर्चर कहते हैं। इसके ऊपर चिड़िया बैठेंगी और कीटों की सूंड़ियों को खाएंगी। रात में इन डंडियों के ऊपर उल्लू बैठते हैं जिससे चूहे है नियंत्रित रहते हैं। पत्ती खाने वाली चूड़ी(DBM) व गोभी की सूंड़ी इस फसल को सर्वाधिक नुकसान पहुंचाती है रासायनिक दवाओं के इस्तेमालबहुत प्रभावी उपाय नहीं है मौसम अनुकूल होने पर चूड़ी की रोकथाम करना कठिन हो जाता है इसलिए रोकथाम के लिए एकीकृत कीट नाशी विधियों को अपनाना चाहिए की रोकथाम के लिए प्रारंभिक अवस्था में नीम बीज का सत( नीम कर्नल एक्सट्रेक्ट )का 10 से 20 लीटर प्रति हेक्टेयर आवश्यकतानुसार पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें। साथ ही फेरोमेन ट्रैप (एस एल ल्यूर) 5 से 8 ट्रेप/है. लगायें। साथ ही जब सूड़ी का अधिक प्रकोप होने पर एन.पी.वी. वायरस के घोल का छिड़काव बहुत फायदेमंद रहता है। बी.टी.बैक्टीरिया का 1.0 कि.ग्राम 800-1000ली. पानी में घोल बनाएं व उसमें लगभग 250 ग्राम नील पाउडर घोल दें और इसका स्प्रे ढलती धूप यानि सायं के समय करें। नीम के तेल का प्रयोग करने से बचें यह गोभी कुल की सब्जियों में अच्छा परिणाम नहीं देता है।
फूलगोभी में डाउनी मिलड्यू नामक रोग बहुत नुकसान पहुंचाता है । इसके लिए डाय इथेन एम 45 नामक दवा का घोल 800- 600 ली./है. पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए।
ब्लेक राट एवं ब्लेक लेग नामक जीवाणु जनित रोगों के निदान हेतु 1 ग्राम कार्बेंडाजिम साथ में 0. 5 ग्राम स्ट्रैप्टो साइक्लीन प्रति लीटर पानी के हिसाब से घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए। गर्मी एवं बरसात में ऐसी प्रजातियों का चयन करें जो लंबे व ऊंचे पत्ते वाली हों। जिसमें फूल पत्तों के मध्य छुपा रहता है, उपयुक्त रहती हैं। ऐसी प्रजातियों के फूल तैयार होने पर बिल्कुल सफेद सफेद बने रहते हैं व बाजार में बिक्री के लिए उपयुक्त माने जाते हैं ।
फूल गोभी की फसल 70 दिन बाद कटाई के लायक होने लगती है। बाजार योग्य फूलों को काटकर उन के पत्तों की छटाई करके, टोकरियों में भली प्रकार रखकर बिक्री के लिए मंडी भेजना चाहिए। बोरे के अंदर भर कर सब्जी को कभी भी नहीं भेजना चाहिए। इससे सब्जी में बहुत अधिक रगड़ आती है और अधिक संख्या में गोभी के फूल खराब हो जाते हैं ।फूलगोभी की बिक्री के लिए किसी एक मंडी या आढ़त के ऊपर निर्भर नहीं रहना चाहिए। इसके लिए आसपास के क्षेत्र की या सुदूर की मंडियों से लगातार संपर्क करते रहना चाहिए। जहां भी बाजार भाव अच्छा मिले, अपनी फसल को वहां बिक्री करनी चाहिए ऊपर बताई गई विधि मैं ऐसे कोई भी नुकसानदायक रसायनों का स्प्रे या प्रयोग नहीं बताया गया है। ताकि फसल का उत्पाद खाने योग्य बना रहे।
इस प्रकार किसान साथियों ऊपर बताई गई वैज्ञानिक व व्यवहारिक विधियों को यदि आप अपनाएंगे तो फूल गोभी से बहुत कम खर्च में अच्छा लाभ प्राप्त कर लेंगे।
रंजीत सिंह (विषय वस्तु विशेषज्ञ, उद्यान)
डॉ आर के सिंह, अध्यक्ष कृषि विज्ञान केंद्र बरेली
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