फसलों में सूक्ष्म पोषक तत्वों का महत्व
अधिक उत्पादन प्राप्त करने के कारण भूमि में पोषक तत्वों के लगातार इस्तेमाल से सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी दिनोदिन क्रमश: बढती जा रही है। किसान मुख्य पोषक तत्वों का उपयोग फलसों में अधिकांशत: करते है एवं सूक्ष्म पोषक तत्वों का लगभग नगण्य उपयोग होने की वजह से कुछ वर्षो से भूमि में सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी के लक्ष्ण पौधों पर दिखाई दे रहे है। पौधों में सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी होने पर उसके लक्ष्ण पौधों में प्रत्यक्ष रूप से दिखाई देने लगते है। इन पोषक तत्वों की कमी केवल इन्हीं के द्वारा पूर्ति करके की जा सकती है।
सूक्ष्म पोषक तत्व-कमी के लक्ष्ण एवं सुधार
1. तांबा ‘कॉपर’:
कार्य – यह क्लोरोफिल के निर्माण में सहायक होता है। पौधों को सहनशीलता प्रदान करता है एवं चयापचय की क्रिया में सहायक होता है।
कमी के लक्ष्ण – इसकी कमी से पौधो की नई पत्तियों में सिरा सडन हो जाता है। बढवार कम होना तथा पत्तियों का रंग हरा होना इसके प्रमुख लक्ष्ण है। इसकी कमी से नीबू में डाई बेक, चुकंदर में सफेद सिरा एवं सेब में सफेद सिरा, छाल खुरदुरा एवं फटने की समस्या उत्पन्न होती है।
निदान – तांबे की कमी को सुधारने के लिये कापर सल्फेट का 10-20 किलो ग्राम मात्रा का प्रति हेक्टेयर भूमि में जुताई के समय इस्तेमाल करें।
2. जिंक ‘जस्ता’:
कार्य – यह एन्जाइम का मुख्य अवयव होता है। क्लोरोफिल निर्माण में उत्प्रेरक का कार्य करता है। साथ ही प्रकाश संश्लेषण एवं नाईटोजन के पाचन में सहायक होता है।
कमी के लक्ष्ण – जिंक की कमी से पौधों की बढवार रूक जाती है पत्तियां मुड जाती है एवं तने की लम्बाई घट जाती है। जिंक की कमी से धान में खैरा नामक बिमारी होती है। जिंक की कमी से आम, नीबू एवं लिची में लिटिल लीफ तथा सेब एवं आडू में रोजेट की समस्या होती है।
निदान – भूमि में जिंक की कमी को दूर करने के लिये जिंक सल्फेट को 15 से 30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से छिडकाव करे एवं 0.5 प्रतिशत जिंक सल्फेट एवं 0.2 प्रतिशत चूने का घोल पत्तियों में छिडकाव करके दूर किया जा सकता है।
3. लोहा 'आयरन':
कार्य – लोहा क्लोरोफिल निर्माण में सहायक होता है। पौधों में समपन्न होने वाले आक्सीकरण एवं अवकरण की क्रिया में यह उत्प्रेरक का कार्य करता है।
कमी के लक्ष्ण – आयरन की कमी से नई पत्तियों में हरिमाहीनता हो जाती है। पौधे कमजोर हो जाते है तथापत्तियों की शिराओं के मध्य में पीलापन आ जाता है।
निदान – आयरन की कमी को दूर करने के लिये 20 से 40 किलोग्राम फेरस सल्फेट मिटटी में डालना चाहिये या 0.4 प्रतिशत फेरस सल्फेट एवं 0.2 प्रतिशत चूने के घोल का पर्णीय छिडकाव करें।
4. मॉलिब्डेनम:
कार्य – दलहनी फसलों की ग्रथियों द्वारा स्थिरीक्रत नाईटोजन के अवशोषण हेतु मॉलिब्डेनम की आवश्यकता होती है। यह फास्फोरस चयापचय को भी नियंत्रित करता है।
कमी के लक्ष्ण – मॉलिब्डेनम की कमी के कारण पत्तियों की शिराओं के मध्य हरिमाहिनता या क्लोरोसिस हो जाती है। इसकी कमी से फूलगोबी में व्हिपटेल एवं नीबू वर्गीय पौधों की पत्तियों में पीला धब्बा रोग होता ह
निदान – मॉलिब्डेनम की कमी को दूर करने के लिये सोडियम मॉलिब्डेट को 0.2 से 0.6 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर भूमि में जुताई के समय डाले।
5. बोरान:
कार्य – यह दलहनी फसलों में नाईटोजन स्थिरिकरण करने वाली गंथ्रियो के निर्माण में सहायक होता है। पौधों के द्वारा जल शोषण को नियंत्रित करता है।
कमी के लक्ष्ण – बोरान की कमी से पत्तियां मोटी होकर मुड जाती है इसकी कमी से आम में आंतरिक सडन, आवला में फल सडन, अंगुर में हेन एवं चिकन, चुकंदर में आतंरिक गलन, शलजम, मूली एवं गाजर में ब्राउन हार्ट, फुल गोबी में भूरापन एवं आलू की पत्तियों में स्थूलन हो जाता है।
निदान – बोरान की कमी को दूर करने के लिये 0.2 प्रतिशत बोरेक्स या बोरिक अम्ल का 150 लीटर पानी में 0.1 प्रतिशत का घोल बनाकर प्रति हेक्टेयर छिडकाव करें।
6. मैग्नीज:
कार्य – क्लोरोफिल निर्माण में सहायक होता है। विभिन्न क्रियाओं में यह उत्प्रेरक का कार्य करता है।
कमी के लक्ष्ण – मैग्नीज की कमी से पत्तियों में छोटे-छोटे क्लोरोसिस के धब्बे बन जाते है इसकी कमी सेचुंकदर में चित्तीदार पीला रोग एवं ओट में ग्रे स्पाइक नामक रोग होता है।
निदान – मैग्नीज सल्फेट का 10 से 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर उपयोग करना चाहिये या पर्णीय छिडकाव हेतु 0.4 प्रतिशत मैग्नीज सल्फेट एवं 0.3 प्रतिशत चूने के घोल का छिडकाव करें।