जैविक खेती की मुख्य आवश्यकता"केंचुआ खाद"
हम देखते हैं कि बरसात में केंचुए निकलते हैं. ये मल को खाकर मिटटी बनाते हैं. जब हम गाँव में रहते थे थे तो बच्चे बहुत सारे केंचुए पकड़ कर उसे कांटे में लगा कर मत्स्याखेट करते थे, गांवों में केंचुओं को मछली पकड़ने के लिए कांटे में लगा कर चारे के रूप में उपयोग में लिया जाता है, केंचुआ किसानो के लिए मित्र है, इसे"प्रकृति प्रदत्त हलवाहा"भी कहा जाता है. भारत वर्ष में केंचुओं की ५०६ प्रजातियाँ पाई जाती हैं, इनसे वर्मी कम्पोस्ट खाद (केंचुआ खाद) बनता है, इनमे इपीजीइक श्रेणी के केंचुए अपने भोजन, प्रजनन एवं आवासीय विशेषताओं के लिए खाद के लिए उपयोगी मने जाते हैं, इनको सुपर वारं भी कहा जाता है, ये केंचुए मिटटी कम और कार्बनिक पदार्थ ज्यादा खाते हैं, इनका वजन ०.३ से ०.६ ग्राम तक एवं लम्बाई लग-भग ३ इंच होती है.
केंचुआ खाद (वर्मी कम्पोस्ट)
केंचुए कम सड़े कार्बनिक पदार्थों को भोजन के रूप में ग्रहण कर मल -विष्ठा करते हैं उसेवर्मी कास्टिंग कहते हैं, और इनसे प्राप्त इस मल को वर्मी कम्पोस्ट या केंचुआ खादकहते हैं.
कृषि के उत्पादन वृद्धि में केंचुआ खाद उपयोगी पदार्थ.
- कृषि से प्राप्त कूड़ा-कचरा:- अधसड़े पौधों के डंठल, पत्तियां, भूसा, गन्ने की खोई, खरपतवार, फूल, सब्जियों के छिलके,केले के पत्ते, तने, पशुओं के गोबर मूत्र, एवं गोबर गैस का कचरा, सब्जी मंदी का कचरा, रसोई का कूड़ा कचरा आदि से केंचुए की खाद बने जा सकती है.
- कृषि उद्योग से प्राप्त कूड़ा-कचरा:- फल प्रसंस्करण इकाई, तेल शोधक कारखाने, चीनी उद्योग, बीज प्रसंस्करण, तेल मीलों एवं नारियल उद्योग आदि के कचरे से भी केंचुआ खाद का निर्माण किया जा सकता है.
- गोबर:- ऊपर लिखे पदार्थों को अधसड़े गोबर से मिश्रित कर देने से केंचुआ खाद शीघ्र एवं उत्तम श्रेणी की बनती है, केंचुओं को गोबर एवं पट्टी का मिश्रण अति प्रिय है.
केंचुआ खाद में न डालने योग्य:- पनीर , हड्डी व मांस, तेल, नमक, मिर्च व तेल मसाले, एवं गर्म पदार्थ, इनसे केंचुए मर सकते हैं.
आज देश में जैविक खेती की आवश्यकता है सबसे पहले ये जानना जरूरी है की केंचुआ खाद में कौन-कौन से तत्व पाए जाते हैं, तो लीजिये ......
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- नाइट्रोजन-- १.२५ से २.५ %
- फास्फोरस -- ०.७५ से १.६%
- पोटाश ---- ०.५ से १.१ %
- कैल्सियम-- ३.० से ४.०%
- मैग्निसियम- ३.० से ४.०
- सल्फर - १३ पी.पी.एम्
- लोहा -४५ से ५० पी.पी.एम्
- जस्ता -२५ से ५० पी.पी.एम्
- ताम्बा -०४ से ०५ पी.पी.एम्
- मैग्नीज -६० से ७० पी.पी.एम्
- पी.एच. -७ से ७.८०
- कार्बन -१२:१
केंचुआ खाद बनाने के लिए आवश्यकताएं
- केंचुओं का भोजन ------------ समस्त गलन शील एवं सडन शील कार्बनिक पदार्थ
- नमी (पानी) .........................४०%
- ताप क्रम .............................८ से ३० डिग्री सेल्सिअस (२४ डिग्री सर्वोत्तम )
- अँधेरा (छाया).......................किसी भी प्रकार से छाया करना (रौशनी से बचाव)
- हवा-----------------------------केंचुवे के कार्य क्षेत्र में हवा का प्रवाह बना रहे .
- उचित पी.एच......................... ४.५ से ७.५ पी.एच अच्छा है
ये तो थी प्रारंभिक जानकारियां, अब हम केंचुओं के लिए ढेर या बेड बनाने की ओर चलते हैं.
- छाया दार स्थान पर केंचुवा खाद बेड / ढेर जमीं के उपर या नीचे २-३ फिट गहरा गड्ढा बनाना चाहिए
- गड्ढे की दीवारें मजबूत रहें इसके लिए ईंट या लकडी का उपयोग करना चाहिए
- केंचुआ खाद बेड २ पीट या ४ पीट माडल आवश्यकता के अनुसार बनाया जा सकता है.
- बेड तैयार होने पर अधसड़े केंचुआ के भोजन पदार्थ को डाल कर आवश्यकतानुसार केंचुए डालना चाहिए.
उत्पादन विधि
- केंचुवा खाद बनाने के लिए जमीन, छाया, पानी, कार्बनिक पदार्थ, एवं केंचुओं की आवश्यकता होती है
- जमीन पर किसी प्रकार के छायादार स्थान, छप्पर या पेड़ पौधे पर कार्बनिक पदार्थ का ढेर तैयार किया जाता है
- ढेर की मोती २-३ फिट एवं ऊंचाई १-२ फिट रखना लाभ दायक होता है,अध् सड़े गोबर एवं पत्तियों से तैयार ढेर पर पानी छिड़क कर ठंडा होने पर ही केंचुए डालना चाहिए. लग-भग ४०% नमी बनाये रखने के लिए आवश्यकतानुसार ढेर पर पानी का छिडकाव किया जाना चाहिए.
केंचुआ खाद उत्पादन में सावधानियां
- बेड पर ताजा गोबर नही डालना चाहिए क्योंकि यह गरम होता है,इससे केंचुए मर जाते हैं.
- बेड में नमी व छाया, ८ से ३० डिग्री तक तापमान तथा हवा का पर्याप्त प्रवाह बने रहना चाहिए
- केंचुओं को मेंढक, सांप, चिडिया, कौवा, छिपकली एवं लाल चींटियों आदि शत्रुओं से बचाना चाहिए.
- गोबर अधसडा एवं पर्याप्त नमी युक्त ही प्रयोग में लाना चाहिए.
केंचुआ खाद के लाभ
- केंचुआ खाद मृदा में सूक्ष्म जीवाणुओं को सक्रीय कर पोषक तत्त्व पौधों को उपलब्ध करता है.
- केंचुआ खाद के प्रयोग से फलों, सब्जियों, एवं अनाजों के स्वाद, आकर, रंग एवं उत्पादन में वृद्धि होती है,
- इसके सूक्ष्म जीवाणु, हारमोन एवं ह्युमिक अम्ल मृदा की पी.एच को संतुलित करते हैं.
- केंचुआ खाद के प्रयोग से मृदा की जलधारण क्षमता बढ़ जाती है, जिससे सिंचाई की बचत होती है.
- केंचुआ खाद के उपयोग से कम लागत में अच्छी गुणवत्ता के फल सब्जी एवं फसलों का उत्पादन होगा.जिससे उपभोक्ता को सस्ता एवं पौष्टिक भोजन उपलब्ध हो सकेगा .
- ग्रामीण क्षेत्र में बडे पैमाने पर रोजगार, आय एवं स्वालंबन में वृद्धि होगी.