कीटनाशक खुद तैयार करें
युवा लोगो की ज़िन्दगी बचाने के लिए शराबखाने सहित समस्त नशीले सामानों की बिक्री हमेशा के लिए बंद किया जाये। नारी जाति की जिन्दगी बचाने के लिए वेश्यालय सहित समस्त असलीलता को परदर्शित करने वाले टीवी, अख़बार, इन्टरनेट तथा फिल्मो को पूर्ण रूप से बंद किया जाये। गौमाता की जिन्दगी बचाने के लिए सभी कत्लखानो को बंद किया जाये तथा उनके भोजन के लिए समस्त गोचर भूमि को खाली किया जाये। किसानो की जिन्दगी बचाने के लिए रासानिक खादों और जहरीली कीट नाशको को बंद किया जाये तथा अंग्रेजो से लेकर अबतक जिंतनी भी ज़मीनों को किसानो से छिना गया है उन ज़मीनों को किसानो को वापस किया जाये। गंगा ,यमुना सहित समस्त नदियों को बांध और नाला मुक्त किया जाये।देश को बचाने के लिए सारी विदेशी कंपनियों को बंद किया जाये। अगर आप ये चाहते है कि ये सब भारत की धरती पर बंद हो जाये तो आप भारतीय आज़ाद सेना से जुड़े और इण्डिया को भारत बनाने में हमारी मदद करे जय हिन्द जय भारत
जैविक कीटनाशक दवाएं किसानों घर में खुद बना सकें वो भी कम से कम खर्च में
कीटनाशक किसी प्रकार से हम कीटनाशक भी खुद तैयार कर सकते क्या हैं ?
बाजार से किसी विदेशी कम्पनी का 15000 रूपए लीटर का कीटनाशक लाने से अच्छा है इन देसी गौमाता या देसी बैले के मूत्र से ही कीटनाशक बना सकते हैं । अगर किसी फसल में कोर्इ कीट या जंतु लग गया, उसको खत्म करना है, मारना है तो उसके लिए एक सूत्र आप लिख लीजिए कि कीटनाशक बनाना भी बेहद आसान है, कोर्इ भी किसान भार्इ अपने घर में बना सकते हैं ।
कीटनाशक बनाने के लिए क्या करना पड़ता है ?
एक एकड़ खेत के लिए अगर कीटनाशक तैयार करना है तो ः-
1) 20 लीटर किसी भी देसी गौमाता या देसी बैले का मूत्र चाहिए।
2) 20 लीटर मूत्र में लगभग ढार्इ किलो ( आधा किलो कम या ज्यादा हो सकता है ) नीम की पत्ती को पीसकर उसकी चटनी मिलाइए, 20 लीटर मूत्र में। नीम के पत्ते से भी अच्छा होता है नीम की निम्बोली की चटनी ।
3) इसी तरह से एक दूसरा पत्ता होता है धतूरे का पत्ता। लगभग ढार्इ किलो धतूरे के पत्ते की चटनी मिलाइए उसमें।
4) एक पेड़ होता है जिसको आक या आँकड़ा कहते हैं, अर्कमदार कहते हैं आयुर्वेद में। इसके भी पत्ते लगभग ढार्इ किलो लेकर इसकी चटनी बनाकर मिलाए।
5) जिसको बेलपत्री कहते हैं, जिसके पत्र आप शंकर भगवान के उपर चढ़ाते हैं । बेलपत्री या विल्वपत्रा के पते की ढार्इ किलो की चटनी मिलाए उसमें।
6) फिर सीताफल या शरीफा के ढार्इ किलो पतो की चटनी मिलाए उसमें।
7) आधा किलो से 750 ग्राम तक तम्बाकू का पाऊडर और डाल देना।
इसमें 1 किलो लाल मिर्च का पाऊडर भी डाल दें ।
9) इसमे बेशर्म के पत्ते भी ढार्इ किलो डाल दें ।
तो ये पांच-छह तरह के पेड़ों के पत्ते आप ले लो ढार्इ- ढार्इ किलो। इनको पीसकर 20 लीटर देसी गौमाता या देसी बैले मूत्र में डालकर उबालना हैं, और इसमें उबालते समय आधा किलो से 750 ग्राम तक तम्बाकू का पाऊडर और डाल देना। ये डालकर उबाल लेना हैं उबालकर इसको ठंडा कर लेना है और ठंडा करके छानकर आप इसको बोतलों में भर ले रख लीजिए। ये कभी भी खराब नहीं होता। ये कीटनाशक तैयार हो गया। अब इसको डालना कैसे है? जितना कीटनाशक लेंगे उसका 20 गुना पानी मिलाएं। अगर एक लीटर कीटनाशक लिया तो 20 लीटर पानी, 10 लीटर कीटनाशक लिया तो 200 लीटर पानी, जितना कीटनाशक आपका तैयार हो, उसका अंदाजा लगा लीजिए आप, उसका 20 गुना पानी मिला दीजिए। पानी मिलकर उसको आप खेत में छिड़क सकते हैं किसी भी फसल पर। इसको छिड़कने का परिणाम ये है कि दो से तीन दिन के अंदर जिस फसल पर आपने स्प्रै किया, उस पर कीट और जंतु आपको दिखार्इ नहीं देगें, कीड़े और जंतु सब पूरी तरह से दो-तीन दिन में ही खत्म हो जाते हैं, समाप्त हो जाते हैं। इतना प्रभावशाली ये कीटनाशक बनकर तैयार होता है। ये बड़ी-बड़ी विदेशी कम्पनियों के कीटनाशक से सैकड़ों गुणा ज्यादा ताकतवर है और एकदम फोकट का है, बनाने में कोर्इ खर्चा नहीं । देसी गौमाता या देसी बैले का मूत्र मुफ्त में मिल जाता है, नीम के पत्ते, निम्बोली, आक के पत्ते, आडू के पत्ते- सब तरह के पत्ते मुफ्त में हर गाँव में उपलब्ध हैं। तो ये आप कीटनाशक के रूप में, जंतुनाशक के रूप में आप इस्तेमाल करें ।
बीज संस्कार करने के लिए छोटा सा सूत्र
बीजबीज संस्कार करने के लिए छोटा सा सूत्र क्या हैं ?
तीसरी जानकारी आपको देना चाहता हूँ कि अच्छी फसल लेने के लिए जो बीज आप खेत में डालते हैं, उस बीज को आप पहले संस्कारित करिए, फिर मिट्टी में डालिए। बीज संस्कार करने के लिए छोटा सा सूत्र बताना चाहता हूँ।
मान लीजिए आपको गेहूँ का बीज लगाना हैं। तो बीज ले लीजिए एक किलो। एक किलो बीज के अनुसार में ये सूत्र बता रहा हूँ। अगर बीज दो किलो है तो सबको दुगुना कर लीजिएगा।
एक किलो किसी भी देसी गौमाता या देसी बैल का गोबर ले लीजिए और उसी देसी गौमाता या देसी बैल का एक किलो मूत्र ले लीजिए। गोबर और मूत्र को आपस में मिला दीजिए। फिर इसमें 100 ग्राम कलर्इ चूना मिलाना है, कलर्इ चूना। चूने का पत्थर बाजार में मिल जाता है आसानी से। उस चूने के पत्थर को एक दिन पहले पानी में डाल दीजिए 2-3 लीटर पानी में। रातभर में को पानी गरम हो जाएगा, फिर वो चूना शांत हो के नीचे बैठ जाएगा। फिर इसको घोल लीजिए। फिर इस 2-3 लीटर चूने वाले पानी को गोबर और गोमूत्र वाले पात्र या बर्तन में डाल दीजिए। तो गोबर-गोमूत्र और सौ ग्राम चूने में जितना घोल तैयार होगा उसमें अच्छे से बीज को डाल दीजिए। कोर्इ भी बीज एक किलो इसमें आराम से भींग जाता है। बीज को इसमें 2-3 घंटे डालकर रखिए। रात में डाल दीजिए, सुबह से निकाल लीजिए। निकालकर इस बीज को छाँव में सूखा दीजिए और छाँव में सूखाने के बाद आप इसको खेत की मिट्टी में लगा दीजिए। तो जो ये बीज लगेगा मिट्टी में, ये संस्कारित हो गया।
इस संस्कारित बीज से क्या फायदे होगा ?
इस संस्कारित बीज के दो फायदे हैं। एक तो फसल पर जल्दी कोर्इ कीट-कीड़ा नहीं लगेगा। तो कीटनाशक-जंतुनाशक से आपको मुक्ति मिल गर्इ, दुसरा फसल का उत्पादन भी अच्छा हो गया। तो बीज संस्कारित करने का एक सूत्र है, कीटनाशक बनाने का एक सूत्र है और खाद बनाने का एक सूत्र हैं, इन तीन बताए गए सूत्रों का भरपूर आप प्रयोग अपने खेत में करिए और अपने किसान मित्रों को ज्यादा से ज्यादा बताइए। मेरा आपसे एक छोटा सा निवेदन है कि इस वर्ष अपने खेत के एक एकड़ में से करके देखिए और एक एकड़ में आपने अगर ये करके देखा तो इसका परिणाम अच्छा आया तो अगले वर्ष पूरे खेत में करिए। और ज्यादा अच्छा आया तो पूरे गाँव के खेत में कराइए, फिर पूरे जिले के खेतों में करा दीजिए। गाँव-गाँव जाकर आप ये गोबर -गोमूत्र का सूत्र किसानों को सिखाना शुरू कर दीजिए, उसी तरह जैसे योग और प्राणायाम सिखाते हैं आप गाँव-गाँव जाकर। तो योग और प्राणायाम से शरीर दुरूस्त हो जाएगा और गोबर-गोमूत्र की खाद से उनका खेत अच्छा हो जाएगा। उनकी मिट्टी अच्छी हो जाएगी, तो सोने पे सुहागे की सिथति बन जाएगी। इधर शरीर स्वस्थ हुआ, उधर मिट्टी स्वस्थ हुर्इ और उसमें से पैदा हुआ अनाज स्वस्थ मिला, उसमें से सबिजयाँ, घास-चारा स्वस्थ मिला। घास चारा जानवर खाएंगें तो दूध बढ़ेगा और उनकी बिमारियाँ कम होगी। हम स्वस्थ भोजन खाएंगे तो हमारी बिमारियाँ कम होगी और डाक्टर का खर्च बचेगां तो सारी जड़मूल से व्यवस्था का परिवर्तन शुरू हो जाएगा, और मेरा ये मानना है कि एक गाँव में अगर एक किसान भार्इ ने भी यदि ये कर लिया तो एक साल के अन्दर पूरा गाँव इसको कर लेगा ।
किसान स्वंय खाद घर में बना सकता है कम से कम खर्च में
खादखाद बनाने कि विधि ।
एक सरल सूत्र बताता हूँ जिसको भारत में पिछले 12-15 वषों में हजारो किसानों ने अपनाया है और बहुत लाभ उनको हुआ है। एक एकड़ खेत के लिए किसी भी फसल के लिए खाद बानाने कि विधि ।
1) एक बार में 15 किलो गोबर लगता है और ये गोबर किसी भी देसी गौमाता या देसी बैल का ही होना चाहियें। विदेशी या जर्सी गायें का नहीं होना चाहियें ।
2) इसमें मिलायें 15 लीटर मूत्र, उसी जानवर का जिसका गोबर लिया है । दोनों मिला लीजिए प्लास्टिक के एक ड्रम में रख दें ।
3) फिर इसमें एक किलो गुड़ डाल दीजिए और गुड़ ऐसा डाल दीजिए जो गुड़ हम नहीं खा सकते, जानवरी नहीं खा सकते, जो बेकार हो गया हो, वो गुड़ खाद बनाने में सबसे अच्छा काम में आता है। तो एक किलो गुड 15 किलो गोमूत्र, 15 किलो गोबर इसमें डालिए ।
4) फिर एक किलो किसी भी दाल का आटा (बेसन) ।
5) अंत में एक किलो मिट्टी किसी भी पीपल या बरगद के पेड़ के नीचे से उठाकर इसमें डालना ।
ये पाँच वस्तुओं को एक प्लास्टिक के ड्रम में मिला देना, डंडे से या हाथ से मिलाने के बाद इसको 15 दिनों तक छावं मे रखना । पन्द्रह दिनों तक इसका सुबह शाम डंडे से घुमाते रहना। पन्द्रह दिनों में ये खाद बनकर तैयार हो जाएगा । फिर इस खाद में लगभग 150 से 200 लीटर पानी मिलाना । पानी मिलाकर अब जो घोल तैयार होगा, ये एक एकड़ के लिए पर्याप्त खाद है। अगर दो एकड़ के लिए पर्याप्त खाद है तो सभी मात्राओं को दो गुणा कर दीजिए।
अब इसको खेत में कैसे डालना है ?
अगर खेत खाली है तो इसको सीधे स्प्रै कर सकते हैं मिट्टी को भिगाने के हिसाब से। डब्बे में भर-भर के छिड़क सकते हैं या स्प्रै पम्प में भरकर छिड़क सकते हैं, स्प्रै पम्प का नोजर निकाल देंगे तो ये छिड़कना आसान होगा ।
फसल अगर खेत में खड़ी हुई है तो फसल में जब पानी लगाएंगे तो पानी के साथ इसको मिला देना है।
खेत मे यह खाद कब-कब डालनी है ?
इसका आप हर 21 दिन में दोबारा से डाल सकते हैं आज आपने डाला तो दोबारा 21 दिन बाद डाल सकते हैं, फिर 21 दिन बाद डाल सकते हैं। मतलब इसका है कि अगर फसल तीन महीने की है तो कम से कम चार-पांच बार डाल दीजिए। चार महीने की है तो पांच से छह बार डाल दीजिए। 6 महीने की फसल है तो सात-आठ बार डाल दीजिए, साल की फसल है तो उसमें आप इसको 14-15 बार डाल दीजिए। हर 21 दिन में डालते जानला है। इस खाद से आप किसी भी फसल को भरपूर उत्पादन ले सकते हैं – गेहूँ, धन, चना, गन्ना, मूंगफली, सब्जी सब तरह की फसलों में ये डालकर देख गया है। इसके बहुत अच्छे और बहुत अदभुत परिणाम हैं।
सबसे अच्छा परिणाम क्या आता है इसका? आपकी जिंदगी का खाद का जो खर्चा है 60 प्रतिशत, वो एक झटके में खत्म हो गया। फिर दूसरा खर्चा क्या खत्म होता हैं जब आप ये गोबर-गोमूत्र का खाद डालेंगे तो खेत में विष कम हो जाएगा, तो जन्तुनाशक डालना और कम हो जाएगा, कीटनाशक डालना ओर कम हो जाएगा। यूरिया, डी.ए.पी. का असर जैसे-जैसे मिट्टी से कम हो जाएगा, बाहर से आने वाले कीट और जंतु भी आपके खेत में कम होते जाएंगें, तो जंतुनाशक और कीटनाशक डालने का खर्च भी कम होता जाएगा, और लगातार तीन-चार साल ये खाद बनाकर आपने डाल दिया तो लगभग तय मानिए आपके खेत में कोर्इ भी जहरीला कीट और जंतु आएगा नहीं, तो उसको मारने के लिए किसी भी दवा की जरूरत नहीं पड़ेगी तो 20 प्रतिशत जो कीटनाशक का खर्चा था वो भी बच जाएगा। खेती का 80 प्रतिशत खर्चा आपका बच जाएगा। दूसरी बात इस खाद के बारे में ये कि ये सभी फसलों के लिए है। जानवरों का गोबर और गोमूत्र गाँव में आसानी से मिल जाता है। गोबर इकटठा करना तो बहुत आसान है। जानवरों का मूत्र इकटठा करना भी आसान है।
देसी गौमाता या देसी बैल का मूत्र कैसे इकटठा करें ?
सभी देसी गौमाता या देसी बैल का मूत्र देते हैं। आप ऐसा करिए कि उनको बांधने का जो स्थान है वो थोड़ा पक्का बना दीजिए, सीमेंट या पत्थर लगा दीजिए और उस स्थान को थोड़ा ढाल दे दीजिए और फिर उसमें एक नाली बना दीजिए और बीच में एक खडडा डाल दीजिए। तो जानवर जो भी मूत्र करेंगे वो सब नाली से आकर खडडे में इकटठा हो जाएगा। अब देसी गौमाता या देसी बैल के मूत्र की एक विशेषता है कि इसकी कोर्इ एक्सपायरी डेट नहीं है। 3 महीने, एक साल, दो साल, पांच साल, दस साल कितने भी दिन पड़ा रहे खडडे में, वो खराब बिल्कुल नहीं होता। इसलिए बिल्कुल निशचिंत तरीके से आप इसका इस्तेमाल करें, मन में हिचक मत लायें कि ये पुराना है या नया। हमने तो ये पाया है कि जितना देसी गौमाता या देसी बैल का मूत्र पुराना होता जाता है उसकी गुन्वत्ता उतनी ही अच्छी होती जाती है। ये जितने भी मल्टीनेशनल कम्पनियों के जंतुनाशक हैं उन सबकी एक्सपायरी डेट है और उसके बाद भी कीड़े मरते नहीं है और किसान उसको कर्इ बार चख कर देखते हैं कि कहीं नकली तो नहीं है, तो किसान मर जाते हैं, कीड़े नहीं मरते हैं तो मल्टीनेशनल कम्पनियों के कीटनाशक लेने से अच्छा है देसी गौमाता या देसी बैल के मूत्र का उपयोग करना। तो इसको खाद में इस्तेमाल करिए, ये एक तरीका है। लगातार तीन-साल इस्तेमाल करने पर आपके खेत की मिट्टी को एकदम पवित्र और शुदध बना देगा, मिट्टी में एक कण भी जहर का नहीं बचेगा। और उत्पादन भी पहले से अधिक होगा । फसल का उत्पादन पहले साल कुछ कम होगा परन्तु खाद का खर्चा एक हि जाटके मे कम हो जायेंगा और उत्पादन भी हर साल बडता जायेगा ।