किसान व अर्थव्यवस्था पर सघन बागवानी का असर

सघन बागवानी

कृषि में बागवानी एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें किसान अपनी जमीन से अधिक आय प्राप्त कर सकते हैं। बागवानी को अधिक लाभप्रद बनाने के लिए किसानों को सघन बागवानी को अपनाना चाहिए।बागवानी में खेती की इस तकनीक का उपयोग सबसे पहले आड़ू में यूरोपीय देशों में किया गया। बाद में अन्य शीतोष्ण फलों जैसे सेब, नाशपाती, खुबानी जैसे फलों में भी सघन खेती द्वारा बहुत अधिक उत्पादन दर्ज किया गया। इस तरह के सफल परीक्षणों के कारण ही आज अमेरिका, आस्ट्रेलिया, चीन, न्यूजीलैंड और कई अन्य यूरोपीय देशों में अधिकतर फलों के बगीचे सघन बागवानी के अंतर्गत लग रहे हैं।

 

सघन बागवानी खेती की एक ऐसी प्रणाली है जिसमें प्रति इकाई क्षेत्रफल में अधिकाधिक फलदार पौधों का समावेश करके उससे लगातार अधिक एवं अच्छी गुणवत्ता वाला उत्पाद प्राप्त किया जा सकता है। सघन बागवानी के लिए पौधों का बौना होना अत्यन्त आवश्यक होता है ताकि प्रति इकाई क्षेत्रफल में अधिकाधिक पौधों का समावेश हो सके। सघन बागवानी के लिए बौने मूलवृंतों और किस्मों की आवश्यकता होती है। इस तरह की बागवानी में पादप नियामकों,सधाई एवं काट-छांट, कोणीय आधार पर बाग की स्थापना तथा विषाणुओं का उपयोग भी महत्वपूर्ण है।

सघन बागवानी के लिए फलों की कई बौनी किस्मों का विकास किया गया है। आम की आम्रपाली किस्म सघन खेती के लिए सबसे उत्तम किस्म है और इसके अलावा अर्का, अरुणा और अर्का अनमोल भी अपेक्षाकृत बौनी किस्में हैं। अन्य फलों में नीबू की कागजी कला, केले की बसरई, सेब की रैडचीफ, ऑरेगन स्पर, रैड स्पर, अनन्नास की क्यू, अमरूद में लखनऊ 49,इलाहाबाद सफेदा, हरिझा, अर्का म्रिदूला और अर्का अमुध्या जैसी किस्में महत्वपूर्ण हैं। आम में जहां सामान्य खेती में हम 10 गुणा 10 मीटर की दूरी पर एक हैक्टेयर में  केवल 100 पौधे ही लगा सकते हैं वहीं सघन खेती में हम 1600 तक पौधे लगा सकते हैं। आम की सघन खेती में उत्पादन में भी तीन गुणा वृद्धि (18 टन प्रति हैक्टेयर) पाई गई है। इसी तरह अमरूद में भी किसान सामान्य खेती में 278 पेड़ों की तुलना में 5000 पेड़ एक हैक्टेयर में लगा सकते हैं। लीची में 400 से 700 पेड़ लगा सकते हैं और केले में करीब 3000 पेड़प्रति हैक्टेयर लगा सकते हैं। अनार में भी हम गणेश किस्म के साथ 4 गुणा 4 मीटर पर 625 पौधे प्रति हैक्टेयर लगा सकते हैं।

 

सघन बागवानी में बौने मूलवृंतों का प्रयोग भी सफल रहा है। बौने मूलवृंतों से फसल जल्दी पैदा हो जाती है और बागीचों से अधिक समय का इंतजार नहीं करना पड़ता है।सेब की खेती में एम-27, एम-7 और एम-9 जैसे बौने मूलवृंतों ने सेब की खेती में उल्लेखनीय लाभ पहुंचाया है। अन्य फलों में नीबू में लाइंग ड्रैगन, किन्नू संतरे में ‘ट्रायर सिटरेंज’, आम में ओलूर, कृपिंग और विलाई को लुम्बन जैसे मूलवृंतबौने पाये गये हैं। नाशपाती में ‘क्विंस सी मूलवृंत बौना औरसघन खेती के लिए उपयुकत पाया गया है।

 

पौधोंमें बौनापन लाने के लिए पौधों के वृद्धि नियामकों का प्रयोग भी किया जा सकता है।ऐसे वृद्धि नियामकों में ए.एम.ओ.-1618, फास्फोन-डी. तथा कुलतार का उपयोग नीबू वर्गीय फलों,सेब, नाशपाती और आम में प्रभावी पाया गया है।

सघनबागवानी में बागीचों की संस्थापना कोणीय आधार पर होनी चाहिए जिसमें किसानों कोकृषि विज्ञान केंद्र या बागवानी के किसी अन्य संस्थान से जानकारी लेनी चाहिए। सधाईएवं काट-छांट का भी सघन खेती में विशेष महत्व है। सेब में सघन बाग स्थापित करने केलिए ‘स्पिंडल बुश’विधि का उपयोग करना चाहिए और आड़ू में ‘टैट्राट्रैलिस’ सधाई की विधि उचित पाई गई है। आम में आम्रपाली किस्म को सघन बागवानी में लाने के लिए शुरू के 3 वर्षों में ‘पिंचिंग ऑफ’करने की सलाह दी जाती है।  सघन बाग की स्थापना के लिए सधाई ऐसे की जाती है जिससे शुरू में ही एक तने के बजाय दो या तीन तने तैयार किये जायें।

 

भारत वर्षमें सघन बागवानी की शुरुआत अनन्नास और केले में की गयी जिसके बहुत अच्छे परिणाम सामने आये हैं। अब इस तकनीक का उपयोग आम, किन्नू, सेब और कई अन्य फलों में किया जा रहा है। सघन बागवानी से फलों के उत्पादनमें 2 से 5 गुणा तक वृद्धि की जा सकती है और वो भी केवल उसी क्षेत्र से जिसमें आजफल उत्पादन हो रहा है।

 

सघन बागवानी की हमारे देश में आम, नीबू प्रजाति, फलों,केला, अनन्नास, अंगूर,अनार,नाशपाती, सेब,कीवी, अमरूद, जैतून, आड़ू, पपीता और चीकू जैसे फलों में अच्छी संभावनाएं हैं। इस तरह की खेती में बागीचों में खाली जगह का पूरा उपयोग हो जाता है और खरपतवारों की संख्या में भी काफी कमी आती है। इस तरह के बागीचों में सिंचाई की टपक और स्प्रिंकलर जैसी प्रणालियों का अच्छा उपयोग होता है। इसके साथ रोगों व कीटों के प्रबंधन के लिए छिड़काव करना भी आसान होता है और फलों की तुड़ाई करने मेंभी सुविधा रहती है। आज भी हमारे अधिकतर फलों में विकसित देशों की तुलना में उत्पादकता बहुत कम है और अगर हमें बागवानी को अधिक लाभप्रद बनाना है तो हमें इसतरह की उन्नत तकनीकों का उपयोग करना होगा। देश में मौजूद बागवानी के अनुसंधान और तकनीकी विस्तार केंद्रों की ऐसी तकनीकों को किसान के लिए प्रदर्शित करना होगा जिन्हें किसान जल्दी से अपनायें। इसलिए सघन बागवानी में बागवानी विकास की अपार संभावनायें  हैं।