जहरीली खेती का जवाब जैविक खेती खेती

जो जमीन हमारा भरण-पोषण करती है उसमें अच्छी पैदावार के लिए रासायनिक खाद और कीटनाशकों के रूप में जहर डाल दिया गया है। इसलिए जो फसल हो रही है उसके दानों में जीवन कम जहर अधिक समा गया है। जो अन्न हम ग्रहण कर रहे हैं वह पोषण न देकर स्वास्थ्य को बिगाड़ रहा है। इसलिए जैविक या प्राकृतिक खेती पर ज्यादा जोर दिया जाने लगा है। 
मध्य प्रदेश के बैतूल जिले के स्वेदश चौधरी प्राकृतिक खेती कर रहे हैं। विज्ञान से स्नातक स्वदेश चौधरी रासायनिक खादों के प्रयोग से बहुत परेशान थे। उनके खेतों की उर्वरा-शक्ति खत्म हो रही थी। वे बेहद दु:खी थे। तभी उन्हें 2010 में प्राकृतिक कृषि की जानकारी प्राप्त हुई। वे कहते हैं, ह्यआरंभ में मैंने इसका प्रयोग दो एकड़ की बंजर हो चुकी भूमि पर किया, लेकिन आज मेरी पूरी 30 एकड़ भूमि प्राकृतिक कृषि के माध्यम से स्वस्थ और सुरक्षित है।'
संकल्प: कागज से खेत तक
जीरो बजट कृषि यानी बिना लागत खेती का एक पाठ्यक्रम (कोर्स) है जो कि किसानों को बहुत कम लागत पर प्राकृतिक कृषि के बारे में बताता है। पाठ्यक्रम के दौरान स्वदेश चौधरी ने महाराष्ट्र में अनेक प्राकृतिक कृषि के सफल प्रयोगों को देखा। जो किसान प्राकृतिक कृषि कर रहे थे उन्होंने स्वदेश को प्राकृतिक कृषि की दिल को छूने वाली सच्ची और सफल कहानियां बताईं। इसके बाद उन्होंने भी प्राकृतिक कृषि करने का मन बनाया। 
स्वदेश ने एक कागज के टुकड़े पर दो एकड़ भूमि पर प्राकृतिक कृषि करने का संकल्प लिया। अब नतीजा बहुत ही सुखद है। अब वे अपनी पूरी जमीन पर प्राकृतिक खेती कर रहे हैं। 
जीरो बजट कृषि का कमाल
स्वदेश ने रासायनिक खादों और कीटनाशकों के इस्तेमाल को लेकर अपने अनुभवों की प्राकृतिक कृषि से तुलना करते हुए बताया, ह्यजब मैंने सोयाबीन उगाया था, 6 क्विंटल की पैदावार हुई थी। लेकिन मैंने देखा कि उसकी पूरी राशि फिर से रसायन खरीदने के ही काम आई, ऐसा प्राकृतिक कृषि में नहीं है। 
जब गन्ना खट्टा हुआ...
अनेक प्रकार के रसायन खेती में प्रयोग होते हैं, उनमें से एक थायम भी है, जो कि गन्ने के लिए प्रयोग होता है। इसके प्रयोग से स्वदेश के खेतों में गिलहरियों, सांपों, पक्षियों और कीटों की मृत्यु होने लगी। उन्होंने बताया कि यही वह महत्वपूर्ण कारण है, जिसकी वजह से वे रासायनिक खेती से दूर होने लगे। वह भोजन जो कि पशुओं के लिए खतरनाक है, दुर्भाग्य से हमारे समाज में उसका इतना बड़ा उपयोग होता है।
एक एकड़ भूमि के लिए प्राकृतिक खेती की लागत 300 रु. से अधिक नहीं होती है, और रसायन में यह 2000 रु. प्रति एकड़ होती है। स्वदेश ने इसका कारण बताते हुए कहा कि प्राकृतिक खेती के लिए खाद इसलिए सस्ती होती है, क्योंकि इसके स्रोत घर में ही उपलब्ध होते हैं।
अपना भविष्य संवारें
स्वदेश को अपनी कोमल मिट्टी और भूमि पर गर्व है। अब इसे हाथों से ही खोदा जा सकता है और इसमें केंचुए भी बहुतायत में हैं, जो कि मिट्टी के लिए अत्यंत उपयोगी हैं।
स्वदेश कहते हैं कि रासायनिक खेती करना बहुत बड़ा नुकसान है। बस यूं समझ लीजिए कि आपको तेल लेना है। दो प्रकार के तेल हैं- रिफाइंड और फिल्टर। अधिकतर भारतीय रिफाइंड का प्रयोग करते हंै और यह रसायन से बना होता है। किसानों को यह समझना होगा कि रसायन मिट्टी को जो नुकसान करते हैं वह करते ही हैं, इसके अलावा कृषि के पोषण के लिए खेत में मौजूद बैक्टीरिया को नष्ट करते हैं। वे वातावरण और स्वास्थ्य को बहुत नुकसान पंहुचाते हैं।
आप क्या चुनेंगे... 
स्वदेश ने साहस करके अपने भविष्य के लिए सकारात्मकता को चुना। ध्यान और प्राणायाम के नियमित अभ्यास ने उनकी इसमें काफी मदद की। अनेक परेशानियों के बावजूद उनका उत्साह बना रहता है। उन्होंने बताया कि विषमुक्त अर्थात् प्राकृतिक कृषि से मिले प्राकृतिक भोजन से जहां हम खोये स्वास्थ्य को पुन: पाने और गांवों में खुशहाली लाने की पहल कर सकते हैं, वहीं पूरी मानवता की उन्नति और सद्गुणों के रोपण का भी यह बहुत उत्तम तरीका है।
स्वदेश कहते हैं,ह्यमंदी के दौर में खेती के लिए रसायन काफी महंगे हो गए हैं और पहले से ही कर्ज में डूबे हुए किसानों के लिए तो उन्हें खरीद पाना असंभव सा है। फिर उनसे हम खेतों में अमृत की जगह जहर उगाते हैं, वह पाप अलग। जीरो बजट प्राकृतिक कृषि हमारे लिए वरदान है और हमारे उत्पाद को बाजार में भी सही सम्मान और भाव मिल रहा है। 

(स्रोत: आर्ट ऑफ लिविंग)