चलें खेत की ओर

चलें खेत की ओर

अब हम ग्रामीण युवाओं की बात करते हैं। यदि इन्हें बुद्धि व विज्ञान से कृषि कार्य सिखाया जाए तो यह अपनी 2-3 एकड़ जमीन से भी सम्मान पूर्वक जीवन जीने योग्य अपने को बना सकते हैं और हम सारी दुनिया का पेट भर सकते हैं। हम अपने देश को कृषि प्रधान देश कहते हैं, परन्तु इसका वास्तविक मतलब हमें मालूम ही नहीं है। विश्व में केवल 20 प्रतिशत जमीन पर खेती होती है। हमारे यहां 60 प्रतिशत भूमि पर खेती होती, जिसे आसानी से 78 प्रतिशत तक किया जा सकता है। दुनिया का वार्षिक वर्षा आंकड़ा 63 से. मी. है। चीन में 61 से. मी. और अमेरिका में 48 से. मी. वर्षा होती है। भारत में वर्षभर में 104 से. मी. पानी गिरता है। यह हिमालय पर्वत की विशेषता के कारण है। समुद्र से उठने वाली मानसूनी हवाएं सारे देश में पानी बरसाते हुए जाती हैं। फिर उत्तर में हिमालय से टकराकर वापसी में फिर से देश में वर्षा करती हैं। हिमालय से निकलने वाली गंगा, सिन्धु, ब्रह्मपुत्र और इनकी सहायक नदियां वर्षभर पानी से भरी रहती हैं। 

समस्त भारत भूमि भूमध्य रेखा के उत्तर में स्थित है और इसका 60 प्रतिशत भाग कर्क रेखा के ऊपर है, इस स्थिति में भारत को यूरोप, चीन व रूस की तरह अत्यन्त ठंडा होना चाहिये था, परन्तु उत्तर में हिमालय की वजह से उत्तर की अत्यन्त ठंडी हवाएं चीन और तिब्बत पार कर जाती हैं, फिर वापस नहीं आ पातीं। इसी तरह समुद्र से उठने वाली मानसूनी हवाएं चीन और तिब्बत की ओर नहीं जा पातीं। इस वजह से हमारे देश में वर्ष भर में 2 से 3 फसलें आसानी से उगाई जाती हैं। वर्ष में दस महीने पूरे भारत में अधिकतर जगह सूरज चमकता रहता है, जो फसलों को बढ़ाने और पकाने के लिये आवश्यक है। आजादी के बाद हमने अपने कृषि प्रधान देश की इन विशेषताओं को समझ कर योजनाएं बनाई होतीं तो भारत का नाम दुनिया के विकसित राष्ट्रों में होता, विकासशील में नहीं। अब हम ग्रामीण युवाओं की बात करते हैं। यदि इन्हें बुद्धि व विज्ञान से कृषि कार्य सिखाया जाए तो यह अपनी 2-3 एकड़ जमीन से भी सम्मानपूर्वक जीवन जीने योग्य अपने को बना सकते हैं और हम सारी दुनिया का पेट भर सकते हैं।

आज देश में दो कृषि पद्धति सफलतापूर्वक कार्य कर रही हैं। इसमें एक सुभाष पालेकर जी की जीरो बजट कृषि तथा प्रो. दामोलकर जी की प्रयोग परिवार (श्रम खेती)। पालेकर बड़े किसानों के लिये अति उपयुक्त हैं तो दामोलकर जी का प्रयोग परिवार छोटे किसानों के लिए उपयुक्त है। दामोलकर जी का तो यहां तक कहना है कि एक चौथाई एकड़ (12000 वर्ग फुट) का मालिक किसान एक विश्वविद्यालय में पढ़ाने वाले प्रोफेसर के स्तर का जीवन प्राप्त कर सकता है। भारतीय पक्ष के अगस्त, 2009 में प्रकाशित लेख ‘किसान गांव में ही रहें इसलिये’ में (चलें खेत की ओर) योजना के बारे में जानकारी दी गई थी। अब यह योजना काफी आगे बढ़ चुकी है। शासकीय खेतों को बहुउद्देशीय कृषि फार्म के रूप में विकसित करने के लिए सभी 16 कृषि विद्यालयों को 10-10 लाख रुपया प्राप्त हो गया है तथा सभी जगह कार्य आरम्भ हो चुका है।

सागर में इस योजना का एक प्रशिक्षण केन्द्र विकसित किया जा चुका है, जिसमें 10-12 की टोली में ग्रामीण युवा आकर प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हैं और अपने खेत में जाकर नई पद्धत्ति से कृषि कार्य कर रहे हैं। इस बार इस योजना के अंतर्गत सागर में बिना किसी रसायनिक खाद्य व कीटनाशक का इस्तेमाल किये एक एकड़ में 32 बोरे (क्विंटल) गेहूं प्राप्त किया है। एक अन्य दामोलकर पद्धत्ति में बिना जमीन की जुताई किए एक एकड़ में गुल्ली पद्धत्ति से 18 बोरे गेहूं (शरबती) तथा 2 बोरे चना प्राप्त किया जा सकता है। हमारा विश्वास है कि एक गाय के गोबर व गौमूत्र से 15 से 20 एकड़ भूमि के लिये पर्याप्त मात्रा में देसी खाद और कीट नियंत्रक बनाया जा सकता है। आइये, हम सब मिल कर इस दशा में कार्य करें।