जब किसान समृध्द होगा तभी देश समृध्द होगा

किसान

आज विश्व में कैन्सर, ब्लड, प्रेशर, हार्ट अटैक, मानसिक रोग, लीवर, किडनी की बीमारी, त्वचा रोग बढ रहे है। इससे साबित हो चुका है सब बीमारियों के मूल में रासायनिक उर्वरक , रासायनिक दवा और दूषित दवा है। इस लक्ष्य से भारत के किसानों को अपनी खेती (कृषि) को बेहतर करने के लिए अपने ऋषियों और पूर्वजों के द्वारा बताई गई ऋषि-कृषि पध्दति को अपनाना चाहिए। इससे दीर्घ कालीन अधिकतम कृषि उत्पादन होता है।

रासायनिक खाद और रासायनिक दवा के उपयोग से किसानों को तुरंत तो लाभ मिलता है लेकिन लंबे समय के लिए यह नुकसान दायक है। किसानों को अपनी सुविधा के अनुसार अग्निहोत्र और गोवंश पर आधारित जैविक  शाश्वत कृषि पध्दति अपनानी चाहिए। इस पध्दति से धरती माँ पुन: चैतन्यमय हो सकेगी। यह प्रकृति को दोहन करने वाली पध्दति है इस पध्दति में शोषण नहीं होता है।
ऋषि पाराशर ने कहा है कि 'जन्तुनाम जीवनम कृषि' कृषि का आधार भूमि पर रहने वाले सूक्ष्म जीवाणु है। जिस भूमि में ज्यादा सूक्ष्म जीवाणु और केचुएं होते है उस भूमि में कृषि उत्पादन अच्छा होता है। जैविक खाद और अग्नि होत्र से तैयार होने वाले वातावरण में सूक्ष्य जीवाणु अच्छे पनपते है। जमीन को उपजाऊ और चैतन्यमय रखने के लिए भूमि में उत्पन्न हुआ मूल-पत्ता, कूडा-कचरा गोवर-मूत्र और अयल्प मात्रा में अग्नि होत्र भस्म डालने से अच्छा जैविक खाद वन सकता है। यह खाद भूमि में डालने से भूमि चैतन्यमय बनती है। भारत वर्ष के किसान हजारो वर्षो से इस पध्दति से पौष्टिक धन धान्य फलफूल पैदा करते थे और आज भी कर रहे हैं।

ई. स. 1840 में जर्मन वैज्ञानिक लिविक ने संशोधन कर रासायनिक पोषक एन.पी. के. का तत्व प्रस्थापित करके रासायनिक खाद भूमि में डालने के लिए प्रोत्साहित किया। यह प्रक्रिया गलत है ऐसा फ्रांस तथा विश्व के अन्य देशो के वैज्ञानिकों ने साबित किया। भारत वर्ष में अंग्रेज शासन के समय वैज्ञानिक सर अल्वर्ट हावर्ड सन्1936 में किसानो को रासायनिक कृषि सिखाने के लिए आये, परन्तु वह स्वयं भारत की शाश्वत जैविक कृषि के अनुयायी हो गये। उन्होंने इंदौर में 'इंदौर मैथड आफ कंपोस्ंटिग'' का संशोधन किया।

स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरांत हरित क्रांति ने नाम पर किसानों को ज्यादा उत्पादन करने के लिए रासायनिक उर्वरक और रासायनिक रोग नाशक और जन्तुनाशक दवा का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित किया गया। उसके परिणाम स्वरूप आज अपनी ही जमीन में ज्यादा रासायनिक उवर्रक डालने के पश्चात उत्पादन में कमी हो रही है। उत्पादन की कमी ने किसान पर कर्ज का बोझ बढ़ाया है। इससे उन्हें काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा रहा है। पूरे विश्व में किसानों के सम्मुख यह गंभीर समस्या है। वर्ष 1972 में विश्व में जैविक कृषि शाश्वत कृषि की शुरूआत हुई केवल एक ही शब्द में शाश्वत कृषि की व्याख्या कर सकते हैं। (फरफारमेंस) किसानों के अपने ही खेत में होने वाला कचरे का उपयोग जैविक खाद बनाने में करना है।
भूमि संस्कार- भूमि में जैविक खाद- कैचुआ खाद 100 किलो को जिसमें 200 ग्राम अग्नि होत्र भस्म मिली हो इसे डालना चाहिए अथवा 15 किलो बरगद के नीचे की मिट्टी 100 ग्राम अग्निहोत्र भस्म मिलाकर एक एकड में छिडकना चाहिए।

बीज संस्कार- आर्य चाणक्य ने कहा है कि गौवर, घी और गौमूत्र का लेप करके बीज अग्निहोत्र भस्म से संस्कारित कर बोना चाहिए। रोग मुक्त फसल आयेगी बीज अच्छा होना चाहिए। देशी बीज धरती माता का दोहन करता है । हायब्रिड बीज या जैनेटीकली इंजीनियर्ड बीज भूमि का शोषण करता है।

जल संस्कार- 10 किलो गोवर में 250 ग्राम देशी गाय का घी डालकर अच्छी तरह हिलाकर संयोग करना उसमें 500 ग्राम शहद तथा 200 ग्राम अग्निहोत्र भस्म मिलाकर फिर से अच्छी तरह मिलाना चाहिए। उपरोक्त तैयार रसायन में 200 लीटर पानी मिलाना चाहिए। यह जल सिंचाई के पानी में मिलाना चाहिए अथवा बारिश के साथ एक एकड़ में छिडकाव करें।

वायु संस्कार- यह एक महत्वपूर्ण संस्कार है। फसल रोग मुक्त पौष्टिक तथा सशक्त हो इसलिए प्रात: सूर्योदय के समय सायं सर्यास्त के समय 'अग्निहोत्र' करना चाहिए। यह हर किसान को सहज संभव है। इसे करने के लिए सिर्फ पांच-सात मिनट लगते है और परिवार का कोई भी सदस्य इसे कर सकता है।

वनस्पति संस्कार- 5 लीटर गौमूत्र में वनोषधि, नीम के पत्ते, तुलसी अन्य औषधीय पत्ते तथा 100 ग्राम 'अग्निहोत्र भस्म' मिलाकर इस रसायन को 100 लीटर पानी में डालकर फसल पर छिडकना चाहिए इससे फसल निरोगी और पौष्टिक होगी।

हर संस्कार में अग्निहोत्र तथा अग्निहोत्र भस्मी का उपयोग आवश्यक रूप से करना चाहिए। ऐसा करने से उप संस्कार की ताकत कई गुना बढकर मिलती है। किसानों को कृषि में लाभ के लिए और समस्त जीव प्राणी, मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए अग्निहोत्र और गोवंश आधारित शाश्वत कृषि पध्दति अपनाना चाहिए। हर किसान को देशी गौ का पालन अवश्य करना चाहिए। भारत भूमि को शाश्वत कृषि के माध्यम से ऋषि मुनियों की प्रेरणा से सुजलाम-सुफलाम करना चाहिए इससे किसान सुखी और समृध्द होगा। किसानों को लागत मूल्य आधारित फसल का लाभदायी भाव मिलेगा। किसान सफलता की चोटी पर पहुंचेगा। किसान समृध्द होगा तो देश समृध्द होगा।

 

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