धान की फसल लहराएगी लेकिन खरपतवार पर नियंत्रण जरूरी

देश की बढ़ती हुई जनसंख्या के साथ खाद्यानों की मांग को पूरा करना एक गंभीर चुनौती बनी हुई है. धान हमारे देश की प्रमुख खाद्यान फसल है. इसकी खेती विभिन्न भौगोलिक परिस्थितियों में लगभग चार करोड़ 22 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में की जाती है आजकल धान का उत्पादन लगभग नौ करोड़ टन तक पहुंच गया है . राष्ट्रीय स्तर पर धान कीऔसत पैदावार 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है. जो कि इसकी क्षमता से काफ़ी कम है, इसके प्रमुख कारण है –  कीट एवं रोगों,  बीज की गुणवत्ता,  गलत शस्य क्रि याएं  तथा खरपतवार. धान की उत्पादन क्षमता को बढ़ाने के लिये सुधरी खेती की सभी प्रायोगिक विधियों को अपनाना आवश्यक है, हमारे देश में धान की खेती मुख्यतया दो परिस्थितियों में की जाती है. वर्षा आधारित व सिंचित. ऊंची भूमि में वर्षा आधारित खेती में नींदा नियंत्रण एक बड़ी समस्या है, यदि इसका समय से नियंत्रण न किया जाये तो फसल पूरी तरह नष्ट हो जाती है. जहां पर सिंचाई की सुविधा उपलब्ध है वहां पर रोपाई या बुवाई से पहले मचाई करने से नींदा पर काफ़ी नियंत्रण पाया जा सकता है.
खरपतवारों से हानियां 
खरपतवार प्राय: फ़सल से नमी ,पोषक तत्व,सूर्य का प्रकाश तथा स्थान के लिये प्रतिस्पर्धा करते हैं जिससे मुख्य फ़सल के उत्पादन में कमी आ जाती है. धान की फ़सल में खरपतवारों से होने वाले नुकसान को 15-85 प्रतिशत तक आंका गया है. कभी -कभी यह नुकसान 100 प्रतिशत तक पहुंच जाता है. सीधे बोये गये धान में रोपाई किये गये धान की तुलना में अधिक नुकसान होता है. पैदावार में कमी के साथ -साथ खरपतवार धान में लगने वाले रोगों के जीवाणुओं एवं कीट रोगों को भी आश्रय देते हैं.
कुछ खरपतवार के बीज धान के बीज के साथ मिलकर उसकी गुणवत्ता को खराब कर देते हैं. इसके अतिरिक्त खरपतवार सीधे बोये गये धान में 20-40 किग्राम नाइट्रोजन ,5-15 किग्राम स्फुर,15-50 किग्राम पोटाश तथा रोपाई वाले धान में 4-12 किग्राम नाइट्रोजन ,1.13 किग्राम स्फुर,7-14 किग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से शोषित कर लेते हैं तथा धान की फ़सल को पोषक तत्वों से वंचित कर देते है.
खरपतवारों की रोकथाम कब करें
धान की फ़सल में खरपतवारों से होने वाला नुकसान खरपतवारों की संख्या ,किस्म एवं फ़सल से प्रतिस्पर्धा के समय पर निर्भर करता है. घास कुल के खरपतवार जैसे सावां,कोदों फ़सल की प्रारंभिक एवं चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार बाद की अवस्था में अधिक नुकसान पहुंचाते हैं ।सीधे बोये गये धान में बुआई के 15-45 दिन तथा रोपाई वाले धान में रोपाई के 35-45 दिन बाद का समय खरपतवार प्रतिस्पर्धा की दृष्टि से नाजुक होता है. इस अविध में फसल को खरपतवारों से मुक्त रखना आर्थिक दृष्टि से लाभदायक  है तथा फसल का उत्पादन अधिक प्रभावित नहीं होता है .
खरपतवारों की रोकथाम कैसे करें
खरपतवारों की रोकथाम में ध्यान देने वाली बात यह है कि खरपतवारों का सही समय पर नियंत्रण किया जाये चाहे किसी भी तरीके से करें.धान की फ़सल में खरपतवारों की रोकथाम निम्न तरीकों से की जा सकती है.
निवारक विधि
इस विधि में वे क्रि यायें शामिल है जिनके द्वारा धान के खेत में खरपतवारो के प्रवेश को रोका जा सकता है ,जैसे प्रमाणकि बीजों का प्रयोग ,अच्छी सड़ी गोबर की खाद, कम्पोस्ट खाद का प्रयोग,सिचाई कि नालियों की सफाई ,खेत की तैयारी एवं बुवाई में प्रयोग किये जाने वाले यंत्रों की बुवाई से पूर्व सफाई एवं अच्छी तरह से तैयार की गई नर्सरी से पौध को रोपाई के लिये लगाना आदि.
यांत्रिक विधि
खरपतवारों पर काबू पाने की यह एक सरल एवं प्रभावी विधि है.  किसान धान के खेतों से खरपतवारों को हाथ या खुरपी की सहायता से निकालते हैं. कतारों में सीधी बोनी की गई फसल में  हो चला कर भी खरपतवारों को नियंत्रित किया जा सकता है इसी प्रकार  पैडीवीडर  चला कर भी खरपतवारों की रोकथाम की जा सकती है । सामान्यत: धान की फसल में दो निराई -गुड़ाई, पहली बुवाई व रोपाई के 20-25 दिन बाद एवं दूसरी 40-45 दिन बाद करने से खरपतवारों का प्रभावी नियंत्रण किया जा सकता है तथा फसल की पैदावार में काफी वृद्धि की जा सकती है. शस्य क्रि याओं में परिवर्तन द्वारा बुआई से पूर्व खरपतवारों को नष्ट करके . खरीफ़ की पहली बारिश के बाद जब खरपतवार दो-तीन पत्ती के हो जायें तो इनको शाकनाशी (ग्लाइफ़ोसेट या पैराक्वेट )द्वारा या यांत्रिक विधि (जुताई करके) से नष्ट किया जा सकता है जिससे मुख्य फसल में खरपतवारों के प्रकोप में काफी कमी आ जाती है. गहरी जुताई द्वारा रबी की फसल की कटाई के तुरन्त बाद या गर्मि के मौसम में एक बार गहरी जुताई कर देने से खरपतवारों के बीज व कंद ऊपर आ जाते हैं तथा तेज धूप में जलकर अपनी अन्कुरण क्षमता खो देते हैं. इस विधि से कीटों एवं बीमारियों का प्रकोप भी कम हो जाता है. रोपाई वाले खेतों में मचाई करके खरपतवारों की समस्या को कम किया जा सकता है. मचाई एवं हैरो करने के बाद खेत में पाटा लगाकर खेत को समतल करके एवं खेत में पानी भरकर लंबे समय तक रोककर खरपतवारों की रोकथाम आसानी से की जा सकती है।
किस्मों का चुनाव
जहां पर खरपतवारों की रोकथाम के साधनों की उपलब्धता में कमी हो वहां पर ऐसी धान की किस्मों का चुनाव करना चाहिये जिनकी प्रारंभिक बढ़वार खरपतवारों की तुलना में अधिक हो ताकि ऐसी प्रजातियां खरपतवारों से आसानी से प्रतिस्पर्धा करके उन्हे नीचे दबा सकें. प्राय: यह देखा गया है कि किसान भाई असिंचित उपजाऊ भूमि में धान को छिटकवां विधि से बोते है. छिटकवां विधि से कतारों में बोई गयी धान की तुलना में अधिक खरपतवार उगते है तथा उनके नियंत्रण में भी कठिनाई आती है. अत: धान को हमेशा कतारों में ही बोना लाभदायक रहता है.
 दूरी एवं बीज की मात्र
धान की कतारों के बीच की दूरी कम रखने स खरपतवारों को उगने के लिये पर्याप्त स्थान नही मिल पाता है. इसी तरह बीज की मात्र में वृद्धि करने से भी खरपतवारों की संख्या एवं वृद्धि में कमी की जा सकती है. धान की कतारों को संकरा करने (15. से.मी) एवं अधिक बीज की मात्र (80-100) किलोग्राम प्रति हेक्ेटर) का प्रयोग करने से खरपतवारों की वृद्धि को दबाया जा सकता है.
उचित फसल चक्र अपनाकर
एक ही फसल को बार-बार एक ही खेत में उगाने से खरपतवारों की समस्या और जटिल हो जाती है. अत: यह आवश्यक है कि पूरे वर्ष भर एक ही खत में धान -धान-धान लेने के बजाय धान की एक फसल के बाद उसमें दूसरी फसलें जैसे चना ,मटर गेहूं आदि लेने से खरपतवारों को कम किया जा सकता हैं.
सिंचाई एवं जल प्रबंधन 
रोपाई किये गये धान में पानी का उचित प्रबंधन करके खरपतवारों की रोकथाम की जा सकती है. अनुसंधान के परिणामों में यह पाया गया कि धान की रोपाई के दो-तीन दिन बाद से एक सप्ताह तक पानी एक-दो सेंटीमीटर खेत में समान रु प से रहना चाहिये. उसके बाद पानी के स्तर को पांच-दस सेंटीमीटर तक समान रु प से रखने से खरपतवारों की वृद्धि को आसानी से रोका जा सकता है. मचाई किये गये सीधे बोये धान के खेत में जब फसल 30-40 दिन की हो जाये तो उसमें पानी भरकर खेत की विपरीत दिशा में जुताई (क्र ास जुताई) करके पाटा लगा देने से खरपतवारों की रोकथाम की जा सकती है. इस विधि को उड़ीसा में बुशेनिंग एवं मध्यप्रदेश में बियासी कहा जाता है.
उर्वरकों का प्रयोग 
भूमि में पोषक तत्वों की मात्र ,उर्वरक देने की विधि एवं समय का भी फसल एवं ापतवारों की वृद्धि पर प्रभाव पड़ता है. फसल एवं खरपतवार देानो ही भूमि में निहित पोषक तत्वों के लिये प्रतिस्पर्धा करते है. खरपतवार नियंत्रण करने से पोषक तत्वों की उपलब्धता फसल को ही मिले सुनिश्चित की जा सकती है. पोषक तत्वों की अनुमोदित मात्र को ठीक समय एवं उचित तरीके से देने पर धान की फसल इनका समुचित उपयोग कर पाती हैं. असिंचित उपजाऊ भूमि में जहां खरपतवारों की समस्या अधिक होती है वहां नाइट्रोजन की आरंभिक मात्र को बुबाई के समय न देकर पहली निराई -गुड़ाई के बाद देना लाभदायक रहता है तथा नाइट्रोजन को धान की लाइनों के पास डालना चाहिये जिससे इसका ज्यादा से ज्यादा भाग फसल का मिल सकें.
रासायनिक विधि
धान की फसल में खरपतवारों की रोकथाम की यांत्रिक विधियां तथा हाथ से निराई- गुड़ाई यद्यपि काफी प्रभावी पायी गयी है लेकिन विभिन्न कारणों से इनका व्यापक प्रचलन नही हो पाया है. इनमें से मुख्य है, धान के पौधों एवं मुख्य खरपतवार जैसे जंगली धान एवं संवा के पौधों में पुष्पावस्था के पहले काफी समानता पायी जाती है, इसलिये पहले साधारण किसान निराई – गुड़ाई के समय आसानी से इनको पहचान नही पाता है. बढ़ती हुई मजदूरी के कारण ये विधियां आर्थिक दृष्टि से लाभदायक नहीं है. फसल खरपतवार प्रतिस्पर्धा के क्र ांतिक समय में मजदूरों की उपलब्धता में कमी ।खरीफ का असामान्य मौसम जिसके कारण कभी -कभी खेत में अधिक नमी के कारण यांत्रिक विधि से निराई -गुड़ाई संभव नही हो पाता है. अत: उपरोक्त परिस्थितियों में खरपतवारों का शाकनाशियों द्वारा नियंत्रण करने से प्रति हेक्टेयर लागत कम आती है तथा समय की भारी बचत होती है , लेकिन शाकनाशी रसायनों का प्रयोग करते समय उचित मात्र ,उचित ढंग तथा उपयुक्त समय पर प्रयोग का सदैव ध्यान रखना चाहिए अन्यथा लाभ के बजाय हानि की संभावना भी रहती है.
प्रयोग करने की विधि
खरपतवारनाशी रसायनों की आवश्यक मात्र को 600 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिये. अथवा 60 किलो ग्राम सूखी रेत में मिलाकर रोपाई के दो-तीन दिन के भीतर चार-पांच संटीमीटर खड़े पानी में समान रूप से बिखेर देना चाहिए.

organic farming: 
जैविक खेती: