जैविक कीटनाशक का प्रयोग उत्तम भविष्य की शुरुआत

 जैविक कीटनाशक

हमारी देश की ७०% जनसंख्या आज भी खेती पर निर्भर है हमारे किसान बंधू   फसल पैदावार बढ़ाने के लिए किसान उन्नत बीज, संतुलित खाद व ¨सचाई आदि सभी संभव प्रयास करते हैं, फिर भीकई बार उन्हें निराशा हाथ  लगती है कारण  फसल में रोग व कीटों का प्रकोप। उनकी रोकथाम के लिए किसान रासायनिक कीटनाशकों का इस्तेमाल करते हैं, जो फसल और भूमि के साथ-साथ किसानों के लिए भी हानिकारक है। कीटनाशकों से जहां फसल के जरिए कुछ विषैले तत्व मनुष्य के शरीर में पहुंचते हैं, वहीं कीटनाशकों के छिड़काव के दौरान कई किसान अपनी जान भी गंवा बैठते हैं । कीटनाशकों के विषैले तत्व हमारे पर्यावरण को भी प्रभवित करते है  नतीजा ........

...........कैंसर , टी.बी. मधुमेह थाईरेड, ब्लड प्रशेर  असमय मौत अंधापन नवजात शिशुओं में अंग विकृत होना 

कीटनाशकों के छिड़काव से फसल में मौजूद मक्खी, च्च्छर, सांप जैसे दूसरे कीट भी मर जाते हैं। हानिकारक कीटों में प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाती है और अवशेष पर्यावरण को प्रदूषित करते हैं। इस नुकसान से बचने और फसल की सुरक्षा का एकमात्र उपाय जैविक खेती है, इसलिए वैज्ञानिक भी किसानों को जैविक खेती के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं।

जीवाणु आधारित जैविक कीटनाशक

बीटी बैक्टीरिया (जीवाणु) पर आधारित यह कीटनाशक सुंडियों पर तुरंत लकवा, आंतों का फटना, भूखापन, संक्रमण आदि द्वारा दो-तीन दिन में असर करके उन्हें मार देता है। इससे फूलगोभी, पत्ता गोभी, टमाटर, बैंगन, मिर्च, ¨भडी, मटर, कपास व चना इत्यादि फसलों में कीटों की रोकथाम होती है।

जीवाणु आधारित जैविक फफूंदनाशी

जीवाणु स्यूडोमोनास व बेसिलस पर आधारित यह कीटनाशक टमाटर, बैंगन, कपास इत्यादि फसलों में जड़गलन, उकठा जैसे फफूंद रोगों को नियंत्रित करता है।

विषाणु आधारित जैविक कीटनाशक

एनपीवी पर आधारित इस कीटनाशक के छिड़काव से पौधों की पत्तियां, फूल व फलियां विषाणु मुक्त हो जाती हैं। सुंडी अवस्था वाले कीटों द्वारा पौधों के भाग को खाने के पश्चात विषाणु सुंडियों के शरीर में पहुंचकर उन्हें खत्म कर देता है।

फफूंद आधारित जैविक कीटनाशक

ब्यूवेरिया बेसियाना फफूंद पर आधारित कीटनाशक विभिन्न प्रकार के फुदकों को नियंत्रित करता है। दीपक की रोकथाम में भी प्रभावकारी है।

फफूंद आधारित जैविक फफूंदनाशी

ट्राइकोडरमा फफूंद पर आधारित जैविक फफूंदनाशी फसलों में जड़गलन, तना गलन, सड़न व फफूंद जनित उकठा रोग के नियंत्रण में लाभकारी है। इसका उपायोग बीज उपचार, पौध उपचार, मिट्टी उपचार के रूप में किया जा सकता है।

हानिकारक जीवों द्वारा होने वाले नुकसान को कम करने या रोकने के लिए किसी जैविक स्त्रोत का उपयोग किया जाए तो वह जैविक जीवनाशी कहलाता है। जीवनाशी वातावरण को प्रदूषण रहित रखने में सहयोगी हैं। इसका विघटन शीघ्र हो जाता है तथा इसके अवशेष नहीं बचते। हानिकारक जीवों में प्रतिरोधक क्षमता उत्पन्न नहीं होती।