जैविक खाद और कृषि

जैविक खाद और कृषि

खेत में कीटनाशक दवाओं के प्रयोग का एक दुष्परिणाम यह निकलता है कि खेतों में पौधों और बाग़ों में वृक्षों की जड़ों में मौजूद पानी में इन दवाओं के घुलने से उत्पाद दूषित हो जाते हैं। इस प्रकार नाना प्रकार के रासायनिक खादों, कीटनाषक दवाओं व हारमोनों के प्रयोग के कारण बचे हुए पदार्थ लोगों के भोजन चक्र में प्रविष्ट हो जाते हैं और दीर्घकाल में बहुत से अज्ञात रोगों का कारण बनते हैं। इस चिंता को कम करने का एक मार्ग, जैविक खाद के प्रयोग द्वारा कृषि उत्पादन की शैली में परिवर्तन लाना है।

जैविक खाद द्वारा कृषि के विकास के मार्ग में बहुत सी चुनौतियां मौजूद हैं। इस मार्ग में सबसे बड़ी रुकावट आधुनिक कृषि के समर्थक हैं जो रासायनिक खाद, उत्पादों का क़द व आकार बढ़ाने वाले हारमोन, पशुओं को दी जाने वाली एंटीबायटिक दवाओं, रासायनिक पदार्थों के प्रयोग व विशेष कोड़ से सूरज की किरणों के प्रयोग से तय्यार किए गए कृषि उत्पादों को मुनाफ़ा दायक कृषि तक पहुंचने का मार्ग समझते हैं और इस बात में संदेह नहीं कि इस विचार की अधिकांश समर्थक वे बड़ी बड़ी कंपनियां हैं जो रासायनिक कीटनाषकों के उत्पादन में सक्रिय हैं। आधुनिक कृषि उत्पादन के समर्थकों का यह मानना है कि यदि देशों ने जैविक खाद द्वारा कृषि उत्पादन की शैली अपना ली तो विश्व भूखमरी व सूखे का शिकार हो जाएगा। कुछ शोध लेखों व मीडिया द्वारा यह दर्शाने का प्रयास किया जाता है कि जैविक कृषि स्थायी नहीं है और उसके उत्पाद आधुनिक उत्पाद की तुलना में निम्न कोटि के होते हैं।  वास्तव में इन बहानों से उत्पाद का आकार बढ़ाने वाले हार्मोन, पशुओं को दी जाने वाली एंटीबायटिक दवाओं, रासायनिक पदार्थों, तथा खेतों पर विशेष ढंग से सूर्य की किरण डालने के ख़तरों की अनदेखी की जाती है जबकि इन चीज़ों व शैलियों के दुष्परिणाम सिद्ध हो चुके हैं। रासायनिक खाद और कीटनाषक दवाओं के नाम पर कृषि क्षेत्र में हज़ारों टन रासायनिक व औद्योगिक पदार्थों के प्रयोग ने समाज व पर्यावरण के लिए ख़तरनाक स्थिति को जन्म दिया है। विषैले व रासायनिक पदार्थों से संपर्क में आने के कारण किसानों व उपभोक्ताओं के स्वास्थय पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव इन पदार्थों के प्रयोग के साइड इफ़ेक्ट हैं।

आंकड़े व सर्वेक्षण ये दर्शाते हैं कि जैविक शैली स्पष्ट विशेषताओं के दृष्टिगत यह शैली विस्तृत हो रही है हालांकि इसके मार्ग में रुकावटें मौजूद हैं। आंकड़ों के अनुसार विश्व में तीन करोड़ हेक्टेयर कृषि भूमि पर जैविक शैली में खेती की जा रही है। कृषि उत्पादों के उपभोग से नाना प्रकार के कैंसर जैसे बढ़ते रोगों के दृष्टिगत विश्व स्तर पर जैविक शैली से तय्यार उत्पादों का उपभोग बढ़ा है। वास्तव में जैविक खेती कृषि व पशु उत्पादों की सबसे पुरानी शैली है जिससे कृषि का परितंत्र सुरक्षित रहता है और इसके परिणाम में स्वास्थय के लिए लाभदायक उत्पादों की पैदावार होती है।

कृषि वैज्ञानिकों का मानना है कि जैविक शैली से कृषि व पशु उत्पादों के उत्पादन से कृष का परितंत्र, रासायनिक पदार्थ, खाद व कीटनाषक के कम प्रयोग के कारण सुदृढ़ और इसके परिणाम में स्वस्थय के लिए लाभदायक व प्राकृतिक गुणवत्ता वाले उत्पादों की पृष्ठिभूमि बेहतर होती है। दो फ़सलों का बारी बारी बोना, कीटाणुओं को मारने के लिए प्राकृतिक शत्रुओं का प्रयोग, जैविक खादों में विविधता, और नाना प्रकार के जलदी पकने वाले व आपदाओं से प्रतिरोध करने वाले बीजों का प्रयोग, जैविक खेती की विशेषताएं हैं। पशुओं को चारे में विविधता, रहने के स्थान, स्वास्थय स्थिति और पर्यावरण पर उनके प्रभाव तथा उनके विकास के लिए अनुकुल स्थिति के दृष्टिगत जैविक कृषि शैली के अंतर्गत पशु पालन के प्रबंधन की सुविधा मुहैया हो जाती है। इस प्रकार जैविक खेती से नेचुरल हैबिटेट की रक्षा के लिए उचित स्थिति उत्पन्न हो जाती है जिससे रासायनिक प्रदूषण फैलाने वाले तत्व कम हो जाते हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि पशुओं व पक्षियों को दिए जाने वाले हारमोन से वे तेज़ी से विकास करते हैं किन्तु उनमें पोषक तत्व कम हो जाते हैं। इसी प्रकार शोध से यह तथ्य भी सामने आया है कि पशुओं और पक्षियों को बीमार होने से रोकने के लिए दी जाने वाली एंटीबायटिक, मनुष्य के शरीर में एंटीबायटिक के प्रभाव को रोक सकती हैं। जबकि जैविक शैली से कृषि उत्पाद में कैल्शियम, लौह, फ़ास्फ़ोरस और मैग्नीशिम का स्तर अधिक प्राप्त होता है। इसी प्रकार शोध दर्शाते हैं कि ये पदार्थ ग़ैर जैविक उत्पादों की तुलना में 50 प्रतिशत अधिक कैंसर विरोधी पदार्थ से समृद्ध होते हैं क्योंकि औद्योगिक कीटनाषक के प्रयोग से वनस्पतियों में इन पदार्थों का स्तर कम हो जाता है कि जबकि जैविक कृषि में प्रयुक्त प्राकृतिक खाद, उत्पाद की गुणवत्ता को बढ़ा देती है। वर्तमान शैली से उत्पादों में किए जाने वाले परिवर्तनों में केवल उनके विदित रंग-रूप, टिकाउपन और लाने ले जाने में होने वाले नुक़सान से बचाने जैसे बिन्दुओं पर ध्यान दिया जाता है जबकि स्वाद और पोषक तत्वों जैसी विशेषताओं पर ध्यान नहीं दिया जाता कि जो जैविक उत्पादों से विशेष हैं
Radha Kant