रासायनिक खाद बर्बादी का कारण

रासायनिक खाद बर्बादी का कारण

भारत एक कृषि प्रधान देश है | प्राचीन काल में मानव स्वास्थ्य के अनुकूल तथा प्राकृतिक वातावरण के अनुरूप खेती की जाती थी। जिससे जैविक और अजैविक पदार्थाें के बीच आदान-प्रदान का चक्र निरन्तर चलता रहा था। जिसके फलस्वरूप जल, भूमि, वायु तथा वातावरण प्रदूशित नहीं होता था। आज भी भारत की 70 प्रतिशत जनता कृषि पर निर्भर है तथा कृषि देश की अर्थव्यवस्था का प्रमुख साधन है | भारत की अधिकतर जनसंख्या गावों में रहती है, जहाँ अनेक प्रकार के खाद्यान्नों का उत्पादन किया जाता है | भोजन मनुष्य की मूलभूत आवश्यकता है | अत: खाद्यान्नों का सीधा सम्बन्ध जनसंख्या से है | भारत की जनसंख्या बहुत तेजी से बढ़ रही है | इस प्रकार बढ़ती हुई जनसंख्या को भोजन खिलाने के लिए कृषि उत्पादन बढ़ाने पर जोर दिया गया और पश्चिमी देशों की तर्ज पर 1967-68 में हरित क्रांती का अभियान चलाया गया और “ अधिक अन्न उपजाओ ” का नारा दिया गया, जिसके परिणामस्वरूप अधिक उपज प्राप्त करने के लिए रासायनिक खाद, रासायनिक कीटनाशकों एवं रासायनिक खरपतवारनाशकों के कारखाने लगाये गए | रासायनिक खाद, रासायनिक कीटनाशकों एवं रासायनिक खरपतवारनाशकों का अन्धाधुन्ध व असन्तुलित उपयोग प्रारम्भ हुआ | रासायनिक खाद को “ जादुई पुड़िया ” मानने वाले किसान 20 प्रतिशत के फेर में पड़ गये | कृषि विशेषज्ञों के अनुसार पौधा 80 प्रतिशत खुराक स्वयं ही प्रकाश संश्लेषण की क्रिया द्वारा प्राप्त करता है |

केवल 20 प्रतिशत खुराक ही जमीन से लेता है | किसानों ने 20 प्रतिशत पर ही अधिक ध्यान देकर अन्धाधुन्ध रसायनों का उपयोग किया और यह जानने का प्रयास भी नहीं किया गया कि इससे आगे चलकर प्रभाव क्या होंगे ? हरित क्रांती से फसल की उपज में तो वृद्धि हुई लेकिन रासायनिक खाद, रासायनिक कीटनाशकों एवं रासायनिक खरपतवारनाशकों के उपयोग से मृदा में उपस्थित ह्यूमस, बायोमास, सूक्ष्म जीवाणुओं एवं केंचुओं को नष्ट कर दिया, फसल में हानिकारक कीट और रोगों का प्रकोप बढ़ता गया, फसलों के उत्पाद में रसायनों के अवशेषों से विषैलापन आ गया, पर्यावरण में प्रदूषण फैल गया, लाभदायक परभक्षी, परजीवी जीव-जन्तु नष्ट हो गए, मृदा स्वास्थ्य खराब हो गया, भूमि ऊसर होने लगी, प्राकृतिक संतुलन पूरी तरह से बिगड़ गया, तथा पहले जितनी ही पैदावार लेने के लिए खेती में लगातार पहले से ज्यादा रासायनिक खाद, रासायनिक कीटनाशकों एवं रासायनिक खरपतवारनाशकों का प्रयोग करना पड़ रहा है जिससे खेती के लिए रासायनिक खाद, रासायनिक कीटनाशकों एवं रासायनिक खरपतवारनाशकों में अत्यधिक खर्च जैसी समस्याएं सामने आने लगी हैं जिससे किसान कर्ज में डूब रहे हैं और आत्म हत्याएं कर रहे हैं | पिछले कुछ समय से रासायनिक खाद, रासायनिक कीटनाशकों एवं रासायनिक खरपतवारनाशकों के अन्धाधुन्ध व असन्तुलित उपयोग का प्रभाव मनुष्य व पशुओं के स्वास्थ्य पर ही नहीं हुआ, बल्कि इसका कुप्रभाव हवा, पानी एवं भूमि पर भी स्पष्ट दिखाई देने लगा है | रासायनिक खेती ने किसान और जमीन के बीच सदियों से चले आ रहे मां-बेटे के सम्बन्ध को तहस-नहस कर दिया है | किसान अपनी जुबान से तो आज भी धरती को माँ मानता है, परन्तु व्यवहार में उससे हर तरह की दुश्मनी निकाल रहा है | भारत माता की जय बोलने वाला किसान इसी माँ को जहर खिला भी रहा है, और जहर से नहला भी रहा है | हकीकत में वह ऐसा कुपुत्र बन गया है जो अपने लालच में अन्धा होकर गर्त तक चला गया है | जो मिट्टी पिछले 2000 वर्षों से उपजाऊ रही है उसकी उपजाऊ शक्ति में हरित क्रांति के पिछले 50 वर्षों में गिरावट आ गयी है |

पहले कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए पशुधन को विशेष महत्व दिया जाता था | उनके मल-मूत्र से भूमि की उपजाऊ शक्ति को कायम रखा जाता था | पारम्परिक तरीके से अदल-बदल कर खेती करना, गोबर की खाद एवं अन्य जैविक खादों का उपयोग किया जाता था जिसके कारण जल, वायु मृदा, पशु-पक्षी, मानव व अन्य जीवों पर कोई भी बुरा प्रभाव नहीं था | परन्तु बाद में खेती के इन परम्परागत तरीकों को छोड़ दिया गया और रासायनिक खाद, रासायनिक कीटनाशकों एवं रासायनिक खरपतवारनाशकों का अन्धाधुन्ध व असन्तुलित उपयोग किया गया | इसका नतीजा यह हुआ कि भूमि की उपजाऊ शक्ति में कमी आती गयी और उत्पादन क्षमता घटती गयी | साथ ही अनाज, दाल, सब्जी, फल आदि की शुद्धता, गुणवत्ता एवं स्वाद में कमी आती गयी | कम शब्दों में कहा जाये तो आज के युग में रासायनिक खेती ने किसानों की कमर तोड़ कर रख दी है | अत: इन सभी समस्याओं का समाधान केवल  “ जैविक खेती ” ही है |
रासायनिक खेती से होने वाले हानिकारक प्रभाव
मृदा की उपजाऊ शक्ति कम हो रही है | मृदा की जल धारण क्षमता कम हो रही है |मृदा की सरंचना एवं सरन्ध्रता खराब हो रही है |मृदा प्रदूषण बढ़ रहा है जिसके कारण मृदा के लाभदायक सूक्ष्म जीवाणु एवं केंचुए आदि समाप्त होते जा रहे हैं |जमीन के ऊपर एवं जमीन के नीचे का पानी प्रदूषित हो रहा है |
वायुमंडल प्रदूषित हो रहा है |
अनाज, दाल, सब्जी एवं फल आदि की शुद्धता, गुणवत्ता एवं स्वाद में कमी आ रही है |
पेड़-पौधों, जीव-जन्तुओं एवं पशु-पक्षिओं की बहुत सारी प्रजातियाँ विलुप्त हो गयी हैं और बहुत सी विलुप्त होने के कगार पर हैं |
महँगे रसायनों के उपयोग से किसानों का फसल उत्पादन पर खर्च बढ़ रहा है जिससे किसानों के लाभ में काफी कमी हो रही है |
मृदा के भौतिक, रासायनिक एवं जैविक गुणों में कमी हो रही है