व्यावसायिक फसलों को पैदा कर रहे छोटे किसान

देश में छोटे किसान व्यावसायिक खेती की ओर रुख कर रहे हैं. अब वो उन्नत किस्म के बीज बोते हैं. और नये-नये तरीके अपना रहे हैं. गन्ना देश में सबसे ज्यादा उगाई जाने वाली व्यवयायिक फसलों में से एक है. साल 2011 के आंकड़ों के अनुसार देश में 3,39,167 हज़ार टन गन्ने का उत्पादन हुआ जिसमें 35 प्रतिशत हिस्सा उत्तर प्रदेश का था, लगभग 12000 हज़ार टन के आसपास. इतने बड़े आंकड़ों को पढ़कर कोई भी यही सोचेगा कि देश में बड़े किसान बहुत हैं जो अच्छा उत्पादन कर रहे हैं पर ऐसा नहीं है. देश में लगभग 43 लाख 60 हजार हेक्टेयर भूमि पर गन्ने की खेती होती है जिसमें से ज्य़ादातर किसान छोटे और मझोले किसान हैं.

कभी सिर्फ खाने के लिए अनाज, फल, सब्जी पैदा करने वाले ये छोटी जोत के किसान अब अपने खेती के तौर-तरीके बदल रहे हैं. वो अब उन्नत किस्म लगाते हैं, बाज़ार भाव का ध्यान रखते हैं और वैज्ञानिक सलाह भी लेते हैं. उनके खेतों का आकार भले ही छोटा हो पर जानकारी का दायरा लगातार बढ़ रहा है.

उत्तर प्रदेश के छोटे किसान भी तरक्की की इस बयार से अछूते नहीं. भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिक डॉक्टर कामता प्रसाद बताते हैं, गन्ना उत्पादन की बात करें तो प्रदेश में गन्ने की व्यवसायिक खेती करने वाले 70 प्रतिशत किसान छोटे या मझोले किसानों की श्रेणी में आते हैं.

भारत में कृषि से होने वाली कमाई में छोटे व मझोले किसानों का बड़ा योगदान है. कृषि जनगणना 2011 के आंकड़े भी कुछ ऐसी ही कहानी कहते हैं. देश में कृषि की कमाई का 85 प्रतिशत हिस्सा उस सक्रिय भूमि से आता जिस पर छोटे और मंझोले किसान खेती करते हैं. गन्ने के अलावा टमाटर और मेंथा भी कुछ ऐसी फसले हैं जिनके उत्पादन में भारत कई देशों को टक्कर देता है. इन दोनों ही फसलों के उत्पादन का एक बड़ा हिस्सा कम भूमि वाले किसानों की ही समझदारी से की गई मेहनत का नतीजा है. 

देश में टमाटर के उत्पादन पर नज़र डालें तो पाएंगे कि भारत 16826 मीट्रिक टन (2011 के आंकड़ों के अनुसार) उत्पादन के साथ विश्व का दूसरा सबसे बड़ा टमाटर उत्पादक देश है. टमाटर उत्पादन में देश को यह सफलता इसलिए मिल पाई क्योंकि छोटे किसान भी अनाज उगाने की अपनी मजबूरी को पीछे छोड़ अधिक मुनाफा देने वाली फसलों की खेती में कूद पड़े. मेंथा या पिपरमिंट की खेती की बात करें तो साल 2012 में देश में लगभग 36 हज़ार टन मेंथा का उत्पादन हुआ. इस उत्पादन में छोटे किसानों के योगदान को सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिसिनल एण्ड ऐरोमेटिक प्लांट (सीमैप) की एक रिपोर्ट सत्यापित करती है.

साभार पलपलइंडिया