कृषि क्षेत्र में बढी महिलाओं की भागेदारी

कृषि क्षेत्र में बढी महिलाओं की भागेदारी

शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे सेक्टर में आगे चल रहीं महिलाएं अब खेती किसानी में भी आगे आ गई हैं। बुधवार को यह बात इंदिरागांधी प्रतिष्ठान में आयोजित महिला किसान संवाद सम्मेलन में गोरखपुर एनवायरमेंटल ग्रुप ने अपनी सर्वे रिपोर्ट के आधार पर कही। इस रिपोर्ट के मुताबिक मौजूदा समय में यूपी के किसानों के कुल प्रतिशत में 67 प्रतिशत महिलाएं हैं और इसकी मुख्य वजह क्लाइमेट चेंज है। सम्मेलन में किसानों के सवालों के जवाब देने के लिए बनाए गए एक्सपर्ट पैनल में राज्य परियोजना अधिकारी और राज्य आपदा प्रबन्ध प्राधिकरण अदिति उमराव, पर्यावरण निदेशालय से इंजीनियर सुब्रयंत, एक्शनन एठ संस्था के खालिद, अनुराग यादव रहे। पैनल में शामिल सदस्यों ने खेती किसानी में बढ़ती महिलाओं की संख्या की वजह क्लाइमेट चेंज को बताया। उन्होंने कहा कि मौसम में बदलाव से खेती प्रभावित हो

कृषि में महिलाओं का योगदान काफी अहम है। कृषि क्षेत्र में कुल श्रम की 60 से 80 फीसदी तक हिस्सेदारी महिलाओं की होती है। फूड एंड एग्रीकल्चर आर्गनाइजेशन (एफएओ) के एक अध्ययन से पता चला है कि हिमालय क्षेत्र में प्रति हैक्टेयर प्रति वर्ष एक पुरुष औसतन 1212 घंटे और एक महिला औसतन 3485 घंटे कार्य करती है। इस आंकड़े के माध्यम से ही कृषि में महिलाओं के अहम् योगदान को आंका जा सकता है। महिलाओं की कृषि में यह सहभागिता क्षेत्र विशेष की खेती पर निर्भर करती है फिर भी उनके योगदान को नकारा नहीं जा सकता है। कृषि कार्यों के साथ ही महिलाएं मछली पालन, कृषि वानिकी और पशु पालन में भी योगदान दे रही हैं।

कृषि में अहम योगदान देने के बावजूद महिला श्रमिकों की कृषि संसाधनों और इस क्षेत्र में मौजूद असीम संभावनाओं में भागीदारी काफी कम है। इस भागीदारी को बढ़ाकर ही महिलाओं को कृषि से होने वाले मुनाफे को बढ़ाया जा सकता है। भा.कृ.अनु.प. के डीआरडब्ल्यूए की ओर से नौ राज्यों में किए गए एक शोध से पता चला है कि प्रमुख फसलों के उत्पादन में महिलाओं की 75 फीसदी भागीदारी, बागवानी में 79 फीसदी और कटाई उपरांत कार्यों में 51 फीसदी महिलाओं की हिस्सेदारी होती है। पशु पालन में महिलाएं 58 फीसदी और मछली उत्पादन में 95 फीसदी भागीदारी निभाती हैं। कृषि क्षेत्र में महिलाओं की सबसे अधिक भागीदारी हिमाचल प्रदेश में है। यह आंकड़े काफी उत्साहजनक हैं। महिलाओं को कृषि क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के लिए यदि उन्हें उचित मौके दिए जाएं और जरूरी तकनीक उपलब्ध कराई जाए तो उनकी हिस्सेदारी को और अधिक लाभ के रूप में परिणित किया जा सकता है