घर में उगाएं नीबू

विटामिन सी से भरपूर नीबू स्फूर्तिदायक और रोग निवारक फल है. इसका रंग पीला या हरा तथा स्वाद खट्टा होता है. इसके रस में ५% साइट्रिक अम्ल होता है तथा जिसका pH २ से ३ तक होता है. किण्वन पद्धति के विकास के पहले नीबू ही साइट्रिक अम्ल का सर्वप्रमुख स्त्रोत था. साधारणतः नीबू के पौधे आकार में छोटे ही होते हैं पर कुछ प्रजातियाँ ६ मीटर तक लम्बी उग सकती हैं.

चूंकि इसमें विटामिन सी भरपूर मात्रा में होता है इसलिए गर्मियों के मौसम में इसका इस्‍तेमाल ज्‍यादा लाभकारी होता है. अगर नींबू इतना ही लाभकारी हैं तो क्‍यूं न इसे आप अपने घर में ही लगाएं.

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कृषि से आगे सोचे ग्रामीण भारत: कलाम

कृषि से आगे सोचे ग्रामीण भारत

पूर्व राष्ट्रपति डा. एपीजे अब्दुल कलाम ने कहा है कि अगर ग्रामीण भारत कृषि से आगे जा कर सोचे तो रोजगार के अवसर बहुत बढ़ जाएंगे। कलाम ने कहा कि कुछ मामलों में, हमारे पास स्थानीय शिल्पकारी, ग्रामीण पर्यटन, ज्ञान आधारित उत्पादों और सेवा क्षेत्र आदि के अवसर हो सकते हैं। इस तरह से, विभिन्न अवसरों पर ध्यान केंद्रित करने से बेहतर रोजगार सृजन में मदद मिलेगी और बेरोजगारी की समस्या से निपटने का उपाय भी मिलेगा।

 

राष्ट्र-विकास में कृषि की घटती हिस्सेदारी

राष्ट्र-विकास में कृषि की घटती हिस्सेदारी

 देश के सकल विकास में कृषि की हिस्सेदारी साल दर साल घटती जा रही है। सरकार की अपनी ही रिपोर्ट बताती है कि यह छह वर्षों में 19 प्रतिशत से घटकर 14 प्रतिशत पर आ गई है। यह इस तथ्य के बावजूद है कि देश में अनाज का उत्पादन काफी बढ़ा है और सरकारी खरीद के कारण हमारे गोदाम न सिर्फ जरुरत से ज्यादा भरे हैं बल्कि तमाम अनाज बाहर खुले में भी रखना पड़ा है। कृषि की घटती हिस्सेदारी का एक दूसरा अर्थ यह भी है कि किसान खेती छोड़कर अन्य कार्यों में लग रहे हैं तथा कृषि योग्य जमीन घट रही व लागत बढ़ रही है। कृषि प्रधान देश होने के नाते भारत के लिए यह स्थिति ठीक नहीं कही जा सकती। देश में कृषि पर निर्भरता

भारत में बदहाल पशुधन और कृषि

भारत में बदहाल पशुधन और कृषि

सांस्कृतिक और सामाजिक ताने-बाने में कृषि प्रधानता और पशुधन की परिकल्पना प्राचीन समय से ही रही है। किसी भी समाज में खाद्य-सुरक्षा के लिए कृषि उत्पाद और पशुधन उत्पाद की उपल्बधता आवश्यक मानी जाती है। इस चीज को अगर हम भारतीय परिप्रेक्ष्य में देखें तो पता चलता है कि ग्रामीण भारत में कृषि के साथ ही साथ पशुपालन की परंपरा भी समानांतर ढ़ंग से चलती रही है। ग्रामीण जीवन में पशुपालन ही वो जरिया है जो किसानों की नियमित आय का साधन बनता है और यही वजह है कि कृषि के साथ ही साथ लगभग 72 फीसदी ग्रामीण घरों में पशुपालन किया जा रहा है। पूरे देश में पशुपालन ने उन लोगों के लिए संजीवनी का काम किया है जो भूमिहीन या

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