मौसमी बेरुखी से जूझने वाली फसलों पर जोर

रेणु की दुनिया, जिसके बिना हम अधूरे हैं बारिश से गेहूं उत्पादन में कमी

उत्तर प्रदेश में खेती को सुधारने के लिए उत्तर प्रदेश कृषि अनुसंधान परिषद (उपकार) ने एग्री विजन 2040 घोषित किया है। इसमें प्रदेश के कृषि विकास और उन्नत के लिए जरूरी बिंदु जारी किए हैं।इस मौके पर महानिदेशक प्रो.

मृदा उर्वरता एवं उर्वरक उपयोग क्षमता बढ़ाने के मुख्य उपाय

मृदा उर्वरता एवं उर्वरक उपयोग क्षमता बढ़ाने के मुख्य उपाय

रासायनिक उर्वरकों की बढ़ती हुई कीमतों के कारण मध्यम वर्गीय किसान इनकी संतुलित मात्रा का प्रयोग भी नहीं कर पाते हैं। अतः अब यह जरूरी हो गया है कि हम किसी ऐसी कार्बनिक खाद का प्रयोग करें जिससे कि मृदा के गुणों में सुधार हो, फसलोत्पादन भी अधिक बढ़े तथा कृषकों को आसानी से सुलभ भी हो जाए। इसका एक महत्वपूर्ण उपाय है - हरी खाद का प्रयोग।

पौधों के लिए आवश्यक पोषक तत्वों में नाइट्रोजन का प्रमुख स्थान है क्योंकि यह-

बीज उत्पादन प्रौद्योगिकी

बीज उत्पादन प्रौद्योगिकी

फसल उत्पादन में वृद्धि के विभिन्न कारकों में से उन्नत बीज एक महत्वपूर्ण कृषि निवेष है। क्यों कि यदि बीज खराब है, तो शेष अन्य साधनों (उर्वरक, सिंचाई आदि) पर किया गया खर्च व्यर्थ हो जाता है। तात्पर्य यह है कि कृषि सम्बन्धी सभी साधन जैसे बीज, उर्वरक, कीटनाशी, सिंचाई तकनीकी जानकारी आदि महत्वपूर्ण एवं एक दूसरे के पूरक भी हैं, परन्तु इनमें बीज को सबसे महत्वपूर्ण कारक माना जाता है। भारत में कई गैर-सरकारी संस्थानों (जैसे-कृषि विश्वविद्यालयों, कृषि अनुसंधान, कृषि विभाग, बीज विकास निगम एवं प्राइवेट कम्पनियॉ) द्वारा बीज उत्पादन किया जा रहा है, परन्तु उसका उत्पादन उतना नहीं है जितनी कि मॉग हेै। लगभग सम

भारत को 450 साल पहले भी थी अलनीनो की जानकारी

अलनीनो

मौसम वैज्ञानिक भले ही अब अलनीनों को लेकर हल्ला मचाये हुये हैं। मौसम वैज्ञानिकों का दावा है कि अलनीनो के कारण किसानों पर अभी और मार पड़ेगी, क्योंकि प्रशांत महासागर पर बनने वाले अलनीनो के कारण आने वाली खरीफ की फसल पर भी असर पड़ेगा। इस अलनीनो के कारण बरसात के मौसम में मानसून ही नहीं आयेगा और सूखा पड़ेगा। जबकि इस सच को कवि घाघ ने 450 साल पहले अपनी कहावतों में ही लिख दिया था। घाघ ने लिखा है कि एक बून्द चैत में परे, सहस बून्द सावन की हरे। इसके अलावा उन्होंने लिखा है कि माघ में गर्मी जेठ में जाड़ तो कहे घाघ हम सब होवें उजाड़। इसका मतलब है कि चैत (मार्च) में एक बून

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