बीज उत्पादन प्रौद्योगिकी

बीज उत्पादन प्रौद्योगिकी

फसल उत्पादन में वृद्धि के विभिन्न कारकों में से उन्नत बीज एक महत्वपूर्ण कृषि निवेष है। क्यों कि यदि बीज खराब है, तो शेष अन्य साधनों (उर्वरक, सिंचाई आदि) पर किया गया खर्च व्यर्थ हो जाता है। तात्पर्य यह है कि कृषि सम्बन्धी सभी साधन जैसे बीज, उर्वरक, कीटनाशी, सिंचाई तकनीकी जानकारी आदि महत्वपूर्ण एवं एक दूसरे के पूरक भी हैं, परन्तु इनमें बीज को सबसे महत्वपूर्ण कारक माना जाता है। भारत में कई गैर-सरकारी संस्थानों (जैसे-कृषि विश्वविद्यालयों, कृषि अनुसंधान, कृषि विभाग, बीज विकास निगम एवं प्राइवेट कम्पनियॉ) द्वारा बीज उत्पादन किया जा रहा है, परन्तु उसका उत्पादन उतना नहीं है जितनी कि मॉग हेै। लगभग समस्त फसलों की बीज प्रतिस्थापन दर बहुत ही कम है, जिसको बढ़ाने के लिये भारत सरकार द्वारा बीज विकास निगम के माध्यम से बीज ग्राम योजना का क्रियान्वयन किया गया है। कृषि विज्ञान केन्द्रों के माध्यम से भी बीज उत्पादन कार्यक्रम चलाया जा रहा है। क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों के आस-पास निकटवर्ती क्षेत्रों में उच्च गुणवत्तायुक्त बीजों की उपलब्धता न होने के कारण भी औसत उपज में कमीं आई है, इसलिये सिंचाई एवं उर्वरक के सीमित साधनों का प्रयोग एवं कृषकों द्वारा बीज उत्पादन कर कृषकों को गॉव स्तर पर ही उच्चकोटि का बीज उपलब्ध कराकर विभिन्न फसलों के बीजों की वर्तमान प्रतिस्थापन दर को बढ़ाया जा सकता है। जिससे फसल उत्पादन एवं उत्पादकता में वृद्धि होगी तथा कृषक एक उद्यमीं/व्यवसायी के रूप में उभरकर आयेंगे एवं आत्मनिर्भर बनेंगे।

उत्तम बीज

  • जिस स्थान एवं भूमि में बोना है, बीज उसके अनुकूल होना चाहिये।
  • भौतिक एवं अनुवांषिक रूप से शुद्ध होना चाहिये।  बीज की उपज क्षमता मानक अनुसार होनी चाहिये।
  • चूकि कीड़े एवं बीमारियॉ खेती में मुख्य अवरोधक हैं। अतः बीज को इनके प्रति अवरोधी होना चाहिये। उसके कृषि/सस्य गुण इच्छित होने चाहिये।

इनके अतिरिक्त उत्तम बीज में निम्न गुण भी व्याप्त होना चाहिये-

  • बीज की अंकुरण क्षमता बहुत अच्छी होनी चाहिये। क्यों कि इसी पर आगे की कृषि क्रियायें निर्भर करती है।
  • बीज में भौतिक समानता दिखनी चाहिये। बीज का रंग एवं भार अनुकूल होना चाहिये।
  • बहुत सी बीमारियॉ बीज में पायी जाती है और उसका संचरण भी बीज द्वारा होता है। अतः बीज को रोगों से पूर्णतः मुक्त होना चाहिये।
  • कई बार खरपतवारों के बीज फसल के बीज में मिले रहते हैं और कुछ स्थितियों में तो खरपतवार के बीज को पहचानना मुश्किल हो जाता है। जैसे- आर्जोमोन तथा लाही के बीजों को का मिश्रण। अतः उत्तम बीजों में खरपतवारों के बीज किसी भी दशा में न हों।

बीज के प्रकार-

  1. प्रजनक बीज- इस बीज से आधारीय बीज का उत्पादन किया जाता है। प्रजनक बीज के थैलों में लगने वाले टैग का रंग पीला होता हे। इसकी अनुवांशिक शुद्धता शत-प्रतिशत होती है।
  2. आधारीय बीज- इस बीज का उत्पादन प्रजनक बीज से किया जाता है, जिसे आधारीय प्रथम बीज कहा जाता है एवं आधारीय प्रथम से तैयार किये गये बीज को आधारीय द्वितीय बीज कहा जाता है। इस बीज का उत्पादन मुख्यतः राजकीय एवं कृषि विश्वविद्यालयों के कृषि प्रक्षेत्रों पर तथा कुछ चयनित प्रशिक्षित बीज उत्पादकों के प्रक्षत्रों पर कराया जाता है। इस बीज का प्रमाणीकरण संस्था द्वारा किया जाता है एवं बीज के थैलों में लगने वाले टैग का रंग सफेद होता है।
  3. प्रमाणित बीज-  इस बीज का उत्पादन आधारीय बीज से किया जाता है। सामान्यतः यही बीज किसानों को फसल उत्पादन हेतु बेचा जाता है। इस बीज का उत्पादन भी प्रमाणीकरण संस्था द्वारा किया जाता है एवं बीज के थैलों में लगने वाले टैग का रंग नीला होता है।
  4. सत्यापित बीज- यह बीज आधारीय या प्रमाणित बीज द्वारा तैयार किया जाता है। इसकी भौतिक शुद्धता एवं अंकुरण क्षमता के प्रति उत्पादक स्वयं जिम्मेदार होता है। यह बीज प्रमाणीकरण संस्था द्वारा प्रमाणित नहीं किया जाता है और न ही इस बीज में थैलों पर बीज प्रमाणीकरण संस्था का टैग लगा होता है।

तकनीकी जानकारियॉ-

बीज उत्पादन कार्यक्रम अन्तर्गत बीज प्रमाणीकरण मानक के अनुसार ही प्रक्षेत्र पर प्रत्येक फसल/प्रजाति के लिये कार्य करना चाहिये। बीज फसलों की बुवाई के समय उनके लिये निर्धारित पृथक्क दूरी रखना अति आवश्यक है अन्यथा बीज खेत/प्रक्षेत्र निरस्त कर दिया जाता है। बीज फसल खेत से अन्य प्रजाति के पौधों एवं अन्य अवांछनीय पौधों को बीज फसल से निकालना चाहिये। बीज फसल में बीज से फैलने वाले रोगों के नियंत्रण के लिये रोगग्रस्त पौधों को पुष्पावस्था से पूर्व निकालना आवश्यक है। बीज फसल की कटाई से पूर्व प्रमाणीकरण संस्था के निरीक्षकों द्वारा अन्तिम निरीक्षण कराना आवश्यक है, अन्यथा बीज खेत/प्रक्षेत्र निरस्त हो जायेगा। बीज प्रक्षेत्र से रोगिंग (बीज प्रक्षेत्र से अवांछनीय पौधों का निष्कासन) करना चाहिये। फसल की कटाई परिपक्व अवस्था पर ही करायें। फसल की कटाई के समय एवं कटाई के बाद उत्पादित बीजों को अन्य फसल/प्रजातियों के बीजों के मिश्रण से बचाये रखें। बीज को बोरांे में भरने से पूर्व वांछित नमीं स्तर तक सूखा लेना चाहिये। बीज उत्पादन करते समय बीज की अनुवांशिक भौतिक शुद्धता एवं अंकुरण क्षमता को बनाये रखने के लिये बीज की बुवाई से लेकर कटाई तक अनेक प्रकार की सावधानियॉ अपनानी चाहिये। अच्छी गुणवत्ता एवं अंकुरण क्षमता का बीज प्राप्त करने के हेतु बीज उत्पादक को मानक विधियों का पालन करना चाहियें।

चयन की तैयारी

बीज फसल को आवश्यकता के अनुसार मृदा को बीज फसल के अनुकूल बनाया जाना चाहिये। बीज खेत/प्रक्षेत्र खरपतवारों व अन्य फसलों के पौधों से मुक्त होना चाहिये। बीज खेत की मृदा को मृदाजनित रोगों व कीटों से मुक्त होना चाहिये। बीज खेत मे पिछले वर्ष वही फसल न उगाई गई हो, जिसका इस वर्ष बीज उत्पादन किया जा रहा हो। बीज प्रक्षेत्र में बीज फसल की पृथक्करण दूरी मानक के अनुसार होनी चाहिये। खेत की तैयारी करते समय बीज-प्रक्षेत्र अच्छी तरह तैयार होना चाहिये जिससे बीज का अंकुरण, खरपतवारों की रोकथाम जल प्रबन्धन अच्छा हो सके, अधिक वर्षा आदि के कारण जल भराव न हो एवं एकसार सिंचाई करने में सुविधा हो।

अवांछनीय पौधों को निकालना रोगिंग

अवांछनीय पौधों को उचित समय पर निकालने पर बीज फसल की अनुवांशिक एवं भौतिक शुद्धता निर्भर करती है। रोगिंग करते समय अवांछनीय पौधे जैसे- अन्य फसलों के पौधे, बीज फसल के दूसरी किस्मों के पौधे, खरपतवार वाले पौधे एवं रोग तथा कीट प्रभावित पौधों को हाथों द्वारा निकाल देना चाहिये। विभिन्न फसलों में अवांछनीय पौधे विभिन्न अवस्थाओं पर संदूषण फैलाते हैं। इसलिये पहले से ही ऐसे पौधों को उचित समय पर निकाल देना चाहिये। खेत में रोगिंग प्रक्रिया कई बार तथा दिन में भिन्न-भिन्न समय पर करना चाहिये। पर-परागित फसलों में, यदि सम्भव हो सके तो परागण से पहले ही रोगिंग करना चाहिये।

  • बीज उत्पादन कार्यक्रम में सहभागिता के लिये
  • बीज उत्पादन कार्यक्रम के अन्तर्गत कृषकों को निम्न कार्यवाही करनी चाहिये-
  • कृषकों द्वारा बीज उत्पादन शुरू करने के लिये उपलब्ध क्षेत्रफल के अनुसार फसल का चयन कर कृषि विभाग/कृषि विज्ञान केन्द्र के माध्यम से बीज निगम के निर्धारित प्रायप पत्र पर अपनी मॉग के अनुसार निगम को समय से प्रेषित करें।
  • निगम/संस्था द्वारा एक लोकेशन पर न्यूनतम 5 हेक्टेयर रबी व खरीफ में तथा 2 हेक्टेयर जायद में क्षेत्रफल पर निरीक्षण शुल्क लिया जाता है। भले ही उत्पादक द्वारा कम क्षेत्रफल बोया गया हो। इसलिये यदि किसी कृषक का क्षेत्रफल कम है तो अपने गॉव के अन्य कृषकों को प्रेरित करके खरीफ व रबी 5 हेक्टेयर तथा जायद में 2 हेक्अेयर क्षेत्र में बीज उत्पादन करना चाहिये।
  • बीज उत्पादन सामान्य फसल उतपादन की तुलना में तकनीकी रूप से भिन्न होता है इसलिये कृषकों को कृषि विभाग/कृषि विज्ञान केन्द्र के वैज्ञानिकों से जानकारी लेने हेतु प्रशिक्षण लेना चाहिये जिससे बताई गई विधि अनुसार कृषि निवेशों का समय से प्रयोग तथा खेतों की रोगिंग आदि सुनिश्चित करनी चाहिये।
  • बीज उत्पादन उन्हीं कृषकों के यहॉ आयोजित किया जाता है, जो प्रमाणीकरण कराने के लिये सहमत होते हैं। इसलिये यह आवश्यक है कि कृषक बीज का मूल्य, पंजीयन शुल्क एवं निरीक्षण शुल्क आदि का भुगतान करे।
  • बीज उत्पादकों के पास सिंचाई की समुचित व्यवस्था होनी चाहिये।
  • बीज उत्पादकों/कृषकों को प्रयुक्त आधारीय बीज की बोरी, टैग, बीज की कीमत की रसीद आदि सम्पूर्ण फसल सत्र तक अपने पास सुरक्षित रखना चाहिये। बीज प्रमाणीकरण संस्था एवं बीज निगम के अधिकारियों द्वारा निरीक्षण के समय मॉगने पर उन्हें दिखाना होगा अन्यथा बीज खेत निरस्त हो सकता है।
  • बीज खेत का वानस्पतिक, पुष्पावस्था एवं पकने की अवस्था पर निगम के प्रतिनिधि एवं बीज प्रमाणीकरण संस्था के निरीक्षकों से निरीक्षण कराने के साथ-साथ उनके द्वारा दिये गये निर्देशों का पालन करना चाहिये।
  • बीज खेत का अन्तिम निरीक्षण हो जाने एवं क्षेत्रफल के पास होने पर ही फसल की कटाई कराई जानी चाहिये अन्यथा बीज हेतु प्रक्षेत्र का उत्पाद निरस्त कर दिया जायेगा।
  • अन्य फसल/प्रजातियों के बीज एवं खरपतवारों के बीजों के मिश्रण न हो इसके लिये बीज फसल की कटाई कर थ्रेसिंग का कार्य ठीक प्रकार से किया जाना चाहिये।
  • बीजों का भण्डारण बीजों को भली-भॉति सुखाने के बाद ही साफ बोरों में करना चाहिये।
  • बोरों पर फसल/प्रजाति एवं पंजीयन का अन्तिम नम्बर अंकित करें।
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