जैविक कचरा बनेगा फसलों के लिए वरदान

घरों-होटलों से निकलने वाले सब्जियों-फलों, अनाज के कचरे-छिलके, जानवरों के मलमूत्र, सिरदर्द बनते हैं फार्म अवशेष का सदुपयोग करने के लिए वर्मी कंपोस्ट तैयार करना एक अच्छा विकल्प है। वर्मी कंपोस्ट से मिट्टी में जैविक पदार्थ की मात्रा में वृद्धि होती है तथा पौधों को आवश्यक तत्त्व की संतुलित मात्रा में मिलते हैं।
स्थान
वर्मी कंपोस्ट बनाने के लिए बांस या लकड़ी के सहारे ढांचा बनाकर आसानी से उपलब्ध पदार्थों जैसे पराली, सरकंडे आदि का प्रयोग करें। यदि वर्मी कंपोस्ट व्यवसायी उद्योग के रूप में बनाया जा रहा हो तो शैड स्थायी चद्दर की छत व पक्के बेड वाली वर्मी कंपोस्ट इकाई बनाएं। अगर फलदार या जंगली पेड़ खेत में लगे हों तो उनके बीच में उपलब्ध स्थान में बेड लगाकर वर्मी कंपोस्टिंग की जा सकती है। सर्दियों के दिनों में बेड को पराली, सरकंडे आदि से ढक दें, ताकि पाले से बचा जा सके।
सामग्री
इसके लिए फसल अवशेष व कचरा 60 प्रतिशत, गोबर 20-25 दिन पुराना या ताजा 30 प्रतिशत, खेत की मिट्टी 10 प्रतिशत, ढकने के लिए पुरानी बोरी, पानी व आवश्यकतानुसार केंचुए चाहिए। एक गड्ढा बनाएं, जिसमें कार्बनिक पदार्थों को 2-3 हफ्ते तक रखकर वर्मी बेड में डालने योग्य बनाएं।
वर्मी बेड : तीन फुट चौड़े बेड बनाएं। बेड की लंबाई सुविधानुसार रखें। बेड की साइड की दीवार छह इंच ऊंची, दो बेड साथ-साथ बनाएं, ताकि बीच की दीवार साझी हो जाए। एक बेड वर्मी कल्चर हेतु अलग रखें तथा शेष में वर्मी कंपोस्ट तैयार करें।
वर्मी मिश्रण : इकाई को शुरू करने के लिए वर्मी मिश्रण की आवश्यकता होती है। इसके लिए अंडे, शिशु एवं प्रौढ़ केंचुओं का मिश्रण का उपयोग उचित रहता है।
जल आपूर्ति : पानी का साधन वर्मी कंपोस्ट इकाई के पास होना चाहिए। पानी छिड़कने हेतु फव्वारे का उपयोग किया जाता है।
मशीनरी एवं औजार
फसल अवशेषों की कटाई हेतु कटर/गंडासे की आवश्यकता होती है। इसे पशु चारा काटने के साथ वर्मी कंपोस्ट इकाई हेतु प्रयोग करें। अन्य उपकरण जैसे फव्वारा, कस्सी, हैंड कार्ट, झारना, तुलाई मशीन, आदि इकाई के आकार अनुसार जरूरत पड़ेगी।
हरी पट्टी
वर्मी कंपोस्ट बनाने के लिए उचित तापमान 27-35 सेंटीग्रेड होता है। तापमान उचित बनाए रखने के लिए कंपोस्ट बनाने के स्थान के चारों ओर गर्मियों में छायादार पेड़ लगाएं, ताकि छाया बनी रहे। सर्दियों में उचित तापक्रम बनाए रखने के लिए 8-10 दिन में एक बार ताजे गोबर की 2-3 सेंटीमीटर परत कंपोस्टिंग सामग्री पर लगानी चाहिए। ताजे गोबर से तापमान ऊंचा बना रहता है।
विधि : सबसे नीचे 12-15 सेंटीमीटर मोटी सरसों या अन्य भूसे की परत, इसके ऊपर 10-12 सेंटीमीटर गोबर की परत, उसके ऊपर 30-45 सेंटीमीटर मोटी फसल अवशेष या कूड़ा-कर्कट की परत, फिर 3-4 सेंटीमीटर मिट्टी की परत व सबसे ऊपर 5-6 सेंटीमीटर गोबर की परत लगाई जाती है। इसमें 400-500 प्रति घनमीटर या 150-200 प्रति क्विंटल केंचुए डाले जाते हैं। इसके बाद इस मेढ़ को पुरानी बोरी से अच्छी तरह ढक देते हैं। इससे केंचुओं का धूप से बचाव होता है। केंचुए हमेशा अंधेरे में काम करते हैं। इसलिए सामग्री को अच्छी तरह ढकना जरूरी होता है। सामग्री में 75 प्रतिशत नमी होनी चाहिए। इसके लिए गर्मियों में हर रोज दो- तीन बार, सर्दियों में एक बार और बरसात में आवश्यकतानुसार पानी का छिड़काव करें। शुरू में पानी की अधिक आवश्यकता होती है, जिसे धीरे-धीरे कम कर देना चाहिए। पानी की मात्रा अधिक भी नहीं होनी चाहिए। इससे केंचुओं की कार्यक्षमता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। वर्मी कंपोस्ट छाया में बनाएं तथा ऐसे स्थान को चुनें जहां पानी जमा न होता हो।

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