मौसमी बेरुखी से जूझने वाली फसलों पर जोर

रेणु की दुनिया, जिसके बिना हम अधूरे हैं बारिश से गेहूं उत्पादन में कमी

उत्तर प्रदेश में खेती को सुधारने के लिए उत्तर प्रदेश कृषि अनुसंधान परिषद (उपकार) ने एग्री विजन 2040 घोषित किया है। इसमें प्रदेश के कृषि विकास और उन्नत के लिए जरूरी बिंदु जारी किए हैं।इस मौके पर महानिदेशक प्रो. राजेन्द्र कुमार के साथ कृषि शिक्षा एवं अनुसंधान के सलाहकार डॉ रमेश यादव और उपकार अध्यक्ष हनुमान प्रसाद ने एग्री विजन जारी किया। पर किसान की मौत और उनको जल्द सहायता पहुंचाने के सवालों से यह अधिकारी बचते दिखें। इस विजन का उद्देश्य प्रदेश की कृषि क्षेत्र में विकास दर को तेज करना और शोध को गति देने के लिए अच्छे संसाधन जुटाना है। प्रदेश कई बड़ी फसलों का देश में सबसे बड़ा उत्पादक है लेकिन उत्पादकता दर में कई राज्यों से पीछे है।

देश का लगभग 38 प्रतिशत गेहूं, 20 प्रतिशत धान, 21 प्रतिशत गन्ना, 18 प्रतिशत सरसों, 7 प्रतिशत फल और 12 प्रतिशत सब्जियों का उत्पादन उत्तर प्रदेश करता है। आलू एवं दुग्ध उत्पादन में प्रदेश का देश में पहला स्थान है। देश के कुल बोए गए कृषि क्षेत्र का 11 प्रतिशत कृषि क्षेत्र उत्तर प्रदेश का है और कुल खाद्यान्न उत्पादन का 20 प्रतिशत उत्पादन प्रदेश करता है। रिपोर्ट में बताया गया देश के कुल कृषि उत्पादन में सबसे अधिक योगदान देने तथा प्रदेश की वृद्धि दर में कुछ सुधार के उपरान्त भी हम देश की औसत उत्पादकता से काफी पीछे हैं फलस्वरूप, प्रति व्यक्ति आय का अंतर समय के साथ बढ़ता जा रहा है। प्रदेश के सामने सबसे बड़ी चुनौती प्रति व्यक्ति आय के अंतर को कम करना और कृषि एवं पशुपालन की वृद्धि दर में सुधार करना हैं। जिसमें फसल, उद्यान, पशुपालन और मछली पालन को व्यापका विकास हो सके।

प्रदेश की कृषि सुधारने को एग्री विजन 2040 पर मंथन

1. प्रदेश में खाली व बंजर भूमि को फसल उगाने लायक बनाया जाएगा। यदि फसलें सम्भव न हुआ तो वहां बेल, आंवला, जामुन आदि फलों के पेड़ लगाए जाएंगे। जिससे खाद्यान्न बढ़ेगा और जलवायु परिवर्तन की समस्या से भी निपटने में सहायता मिलेगी।
2. वायु, जल व भूमि के प्रदूषण पर नियंत्रण को योजना तैयार की जाएगी, जिससे पारिस्थितिक संतुलन बना रहे।
3. आपदा से जूझने वाली फसलें तैयार करने के लिये शोध होगा, ताकि आपदा से होने वाली क्षति को रोका जा सके।
4. पुराने जलाशयों का पुनरूद्धार और नये जलाशयों के निर्माण पर विशेष ध्यान दिया जाएगा, जिससे भूमि जल रिचार्ज हो सके।
5. छोटी जोतों के लिए छोटे उपकरण तैयार होंगे।
6. फसलों की कम लागत, कम पानी व तापमान के उतार चढ़ाव सहन कर सकने वाली प्रजातियों के विकास के लिए शोध किए जाने की आवश्यकता है।
7. जीवांश पदार्थों को मिट्टी में बढ़ाने के लिए वर्मीकम्पोस्ट, गोबर की खाद, कम्पोस्ट व हरी खाद बढ़ाने पर विशेष ध्यान।
8. पशुपालन, मत्स्य पालन पर भी विशेष बल।