गन्ने की फसल में सम-सामयिक (अप्रैल व मई माह के) कार्य

गन्ना पच्छिमी उत्तर प्रदेश  की एक प्रमुख फसल है, जिसकी बुआई दिसम्बर से अप्रैल मध्य तक होती है। फरवरी माह में बोयी गई फसल में इस माह (60 दिन की अवस्था पर) सिंचाई के बाद 50 किलोग्राम नत्रजन/ हेक्टेयर (110 किलोग्राम यूरिया) की टॉपड्रेसिंग कर खुदाई करें। शरदकालीन गन्ने में यदि नत्रजन की टॉपड्रेसिंग न की गई हो तो 60 किलोग्राम नत्रजन (132 किलोग्राम यूरिया) की टॉपड्रेसिंग का गुड़ाई कर दें। शरदकालीन गन्ने में यदि अन्तःफसल ली गई हो तो उसकी कटाई के तुरन्त बाद सिंचाई करके यूरिया की टॉपड्रेसिंग करके गुड़ाई करें। 
 
यदि गन्ने की लाइनों में दो थानों के बीच 45 सेंटीमीटर का रिक्त स्थान हो तो इस स्थान पर पूर्व अंकुरित पैडों की रोपाई कर गैप फिलिंग करें। गन्ने की कटाई के पश्चात यदि उसकी पेड़ी रखनी हो तो चढ़ाई हुई मिट्टी को तोड़कर ठूँठों को सतह से मिलाकर कट दें। सूखी पत्तियों को समान रूप से बिखेरकर, सिंचाई करके उसपर लिंडेन धूल 1.3% का 25 किलोग्राम/हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें। सिंचाई से पूर्व गैप फिलिंग करें तथा 90 किलोग्राम नत्रजन/हेक्टेयर (200 किलोग्राम यूरिया) का जड़ के पास प्रयोग करें। 
 
इस समय गन्ने की फसल में अधिकांश रोगों के लक्षण प्रकट होते हैं अतः नियमित रूप से खेत की निगरानी करते रहें तथा रोगग्रस्त पौधों को निकालकर नष्ट कर दें। गन्ने के प्रमुख रोग  हैं :
 
1. लाल सड़न -  नई निकालने वाली पत्ती पीली पड़ने लगती है तथा उसके पिछले भाग पर मध्य शिरा पर काले धब्बे दिखाई देने लगेंगे। 15-20 दिन में पौधा सूखने लगेगा। 
2. कंडुआ – गन्ने के सिरे पर काली चाबुक जैसी संरचना दिखाई देती है। 
3. पर्णदाह (लीफ स्काल्ड) – नवनिर्मित पत्तियों में पर्णशिरा के समानांतर सफ़ेद धारियाँ दिखती हैं तथा बाद में पत्ती सूखने लगती है। 
4. घासी प्ररोह (ग्रासी शूट) – पौधा घास जैसा दिखाई देगा तथा पत्तियाँ सफ़ेद हो जाती हैं। 
5. अप्रैल के अंतिम सप्ताह में निचली पत्तियों की नीचे पायरिल्ला के सफ़ेद रंग के अण्डसमूह दिखाई देते हैं। प्रारम्भिक अवस्था में इन अण्डसमूहों को सावधानी से पत्ती सहित काटकर नष्ट कर दें। इसी समय खेत में काला चिकटा का आक्रमण होता है। इनके नियंत्रण हेतु 1600 लीटर पानी में क्लोरोपायरीफॉस 20 ई॰सी॰ 1.0 लीटर सक्रिय तत्व (6.75 लीटर) के साथ 3-4% यूरिया घोल बनाकर गन्ने की गोफ में छिड़काव करें। 
6. चोटीबेधक व अंकुरबेधक से ग्रस्त पौधों को खुरपी से भूमि की सतह से निकाल कर नष्ट कर दें। 
7. गेहूँ, चना, सरसों, मटर, मसूर आदि की कटाई के बाद यदि अब गन्ना बोना हो तो तुरन्त पलेवा कर खेत की तैयारी करें। यदि संभव हो तो गन्ने का ऊपरी 1/3 भाग ही बीज के लिये प्रयोग करें और गन्ने के 2 या 3 आँख के टुकड़े करें। इन्हें रातभर पानी में भिगोकर सुबह 100 लीटर पानी में 100 ग्राम कार्बण्डाजिम घोलकर इसमें 10 मिनट के लिये डुबोकर उपचारित कर लें। लाइन से लाइन की दूरी 60 सेंटीमीटर और लाइनों में 10-12 आँख/मीटर रखते हुये या 90:30 सेंटीमीटर की दोहरी पंक्तियों में बुवाई कर नमी संरक्षण के लिये पाटा अवश्य लगायें। कम नमी की अवस्था में बुवाई के बाद हल्का पानी लगा दें और ओट आने पर पपड़ी तोड़ने के लिये हल्की गुड़ाई कर दें। 
8. भूमि की उर्वरा शक्ति को बनाए रखने तथा खाद एवं उर्वरक की लागत को कम करने के लिये 10 किलोग्राम ऐजैटोबैक्टर तथा 10 किलोग्राम पी॰एस॰बी॰ कल्चर का प्रयोग जड़ों के पास करके गुड़ाई कर दें। खरपतवार प्रबन्धन हेतु कस्सी, फावड़े, कल्टीवेटर या पावरटिलर का प्रयोग करें। 
9. प्रत्येक 15-20 दिन के अन्तर पर आवश्यकतानुसार सिंचाई करते रहें। पानी हल्का व कम अन्तर पर लगायें। 
   
डॉ आर के सिंह,
अध्यक्ष कृषि विज्ञान केंद्र बरेली
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