गन्ने की फसल में होने वाले रोग और निदान

हमारे देश में गन्ना प्रमुख रूप से नकदी फसल के रूप में उगाया जाता है, जिसकी खेती प्रति वर्ष लगभग 30 लाख हेक्टर भूमि में की जाती है, इस देश में औसत उपज 65.4 टन प्रति हेक्टर है, जो की काफी कम है, यहाँ पर मुख्य रूप से गन्ना द्वारा ही चीनी व गुड बनाया जाता है Iउत्तर प्रदेश में और ख़ास तौर से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अधिकांश खेती गन्ने की ही होती है। ऐसे में किसानों के लिए ये जानना बेहद ज़रूरी है कि गन्ने की फसल को कौन से रोग बर्बाद कर सकते हैं और उनके रोकथाम के लिए किसान क्या कर सकते हैं! 
 
 

प्रमुख कीट/रोग  

1. अंकुर बेधक
 
उपोष्ण जलवायु वाले क्षेत्रों में अंकुरण से चार माह तक इसका प्रकोप रहता है। इसके लारवा वृद्धि बिन्दुओं को बेधकर मृत केन्द्र बनाते है जिसमें से सिरके जैसी बदबू आती है।
 रोकथाम

  1. • अंकुर बेधक के प्रकोप से ग्रस्त गन्नों को निकाल कर नष्ट कर देना चाहिए।
  2. • एकीकृत नाद्गाीजीव प्रबन्धन के अन्तर्गत ट्राइकोग्रामा कीलोनिस के 10 कार्ड प्रति हे0 की दर से प्रयोग करना चाहिए अथवा
  3. • मेटाराइजियम एनिसोप्ली की 2.5 किग्रा0 मात्रा प्रति हे0 की दर से 75 किग्रा0 गोबर की खाद में मिलाकर प्रयोग करना चाहिए।
  4. • रसायनिक नियंत्रण हेतु निम्नलिखित कीटनाद्गाको में से किसी एक का प्रयोग करना चाहिए।
  5. • क्लोरपाइरीफास 20 प्रतिद्गात ई0सी0 1.5 ली0 प्रति हे0 800-1000 ली0 पानी में घोलकर छिडकाव करना चाहिए अथवा
  6. • कार्बोफ्‌यूरान 3 प्रतिद्गात सी0जी0 30 किग्रा0 प्रति हे0 की दर से बुरकाव करना चाहिए अथवा
  7. • फिप्रोनिल 0.3 प्रतिद्गात जी0आर0 के 2.5 किग्रा0 प्रति हे0 की दर से अथवा
  8. फोरेट 10 प्रतिद्गात सी0जी0 30 किग्रा0 प्रति हे0 की दर से बुरकाव करना चाहिए ।

 
2. अगोले की सड़न
(जुलाई से सितम्बर तक) 
ऊपर की नयी पत्तियॉ प्रारम्भ में हल्की पीली अथवा सफेद पड़ जाती है जो बाद में सड़ कर नीचे गिर जाती है। यह रोग वर्षाकाल में अधिक लगता है तथा गन्ने की बढवार पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है।
रोकथाम

  1. • रोग प्रतिरोधी प्रजातियों का ही प्रयोग करना चाहिए। यदि किसी बीज गन्ने के कटे हुए सिरे अथवा गॉठों पर लालिमा दिखे तो ऐसे सेट का प्रयोग नही करना चाहिए।
  2. • स्वस्थ बीज गन्ना की बुवाई करना चाहिए। जिसका बीज आर्द्र गर्म वायु उपचार(54 से0 ताप पर 2.5 घण्टों तक 99 प्रतिद्गात आर्द्रता पर ) विधि से पूर्वोपचारित किया गया हो।
  3. • पौधशालाओं के लिए खेत का चयन में समुचित जल निकास की व्यवस्था सुनिद्गिचत कर लेनी चाहिए। ताकि वर्षा ऋतु में पानी का जमाव न हो सके।
  4. ट्राइकोडरमा 2.5 किग्रा0 प्रति हे0 की दर से 75 किग्रा0 अध सडे गोबर की खाद में मिलाकर प्रयोग करना चाहिए अथवा
  5. स्यूडोमोनास फ्‌लोरिसेन्स 2.5 किग्रा0 प्रति हे0 की दर से 100 किग्रा0 अध सडे़ गोबर की खाद में मिलाकर प्रयोग करना चाहिए।

 
3. उकठा रोग
(अक्टूबर से फसल के अन्त तक) 
प्रभावित थान के गन्नों की पोरियों का रंग हल्का पीला हो जाता है। गन्ने का गूदा सूख जाता है तथा रंग भूरा हो जाता है। 
 रोकथाम 

  1. • रोग प्रतिरोधी प्रजातियों का ही प्रयोग करना चाहिए। यदि किसी बीज गन्ने के कटे हुए सिरे अथवा गॉठों पर लालिमा दिखे तो ऐसे सेट का प्रयोग नही करना चाहिए।
  2. • स्वस्थ बीज गन्ना की बुवाई करना चाहिए। जिसका बीज आर्द्र गर्म वायु उपचार (54 से0 ताप पर 2.5 घण्टों तक 99 प्रतिद्गात आर्द्रता पर ) विधि से पूर्वोपचारित किया गया हो।
  3. • पौधद्गाालाओं के लिए खेत का चयन में समुचित जल निकास की व्यवस्था सुनिद्गिचत कर लेनी चाहिए। ताकि वर्षा ऋतु में पानी का जमाव न हो सके।
  4. • ट्राइकोडरमा 2.5 किग्रा0 प्रति हे0 की दर से 75 किग्रा0 गोबर की खाद में मिलाकर प्रयोग करना चाहिए अथवा
  5. स्यूडोमोनास फ्‌लोरिसेन्स 2.5 किग्रा0 प्रति हे0 की दर से 100 किग्रा गोबर की खाद में मिलाकर प्रयोग करना चाहिए।

 
4. कडुआ रोग (चाबुक कडुआ)
(अप्रैल से मई तक)
रोग ग्रस्त गन्ने की पत्तियॉ पतली, नुकीली तथा पोरियॉ लम्बी हो जाती है। प्रभावित गन्नों में छोटे या लम्बे काले कोडे निकल आते है जिन पर कवक के असंखय वीजाणु स्थिति होते है। इस रोग का प्रभाव पेडी गन्ने में अत्यधिक होता है।
रोकथाम 

  1. • रोग प्रतिरोधी प्रजातियों का प्रयोग करना चाहिए।
  2. • बोने के लिए बीज गन्ने का चयन स्वस्थ एवं रोग रहित खेतों से करना चाहिए ताकि अगली फसल को रोग मुक्त रखा जा सके।
  3. • रोगी थान का समूल उखाड कर नष्ट कर देना चाहिए ताकि स्वस्थ गन्नों में दुबारा संक्रमण न हो सके।
  4. • प्रभावित खेत में कम से कम एक वर्ष तक गन्ना नही बोना चाहिए।
  5. समुचित जल निकास की व्यवस्था सुनिद्गिचत की जानी चाहिए। ताकि वर्षा ऋतु में फसल में पानी का जमाव न हो।
  6. • रोग से प्रभावित खेत में कटाई पद्गचात उसमें पत्तियों एवं ठूठे को पूरी तरह जलाकर नष्ट कर देना चाहिए तथा खेत की गहरी जुताई करनी चाहिए।
  7. बोने से पूर्व गन्ने के 50 कुन्तल बीज सेट को एम0ई0एम0सी0 6 प्रतिद्गात 830 ग्राम प्रति हे0 प्रति की दर से उपचारित कर बुवाई करनी चाहिए।

 
5. काला चिटका(ब्लैक बग)
(अप्रैल से जून तक)
यह कीट गन्ने की पेडी पर अधिक सक्रिय रहता है तथा पत्तियों का रस चूसता है जिससे फसल दूर से पीली दिखाई देती है।
 रोकथाम  

  1. • वर्टिसिलियम लैकानी 1.15 प्रतिद्गात डब्लू0पी0 2.5 किग्रा0 प्रति हे0 की दर से 400-500 ली0 पानी में घोलकर आवद्गयकतानुसार 15 दिन के अन्तराल पर सायंकाल छिड़काव करना चाहिए।
  2. • रसायनिक नियंत्रण हेतु निम्नलिखित कीटनाद्गाको में से किसी एक का प्रयोग करना चाहिए।
  3. • क्लोरपाइरीफास 20 प्रतिद्गात ई0सी0 1.5 ली0 प्रति हे0 800-1000 ली0 पानी में घोलकर छिडकाव करना चाहिए अथवा 
  4. क्यूनालफास 25 प्रतिद्गात ई0सी0 1.5 ली0 प्रति हे0 800-1000 ली0 पानी में घोलकर छिडकाव करना चाहिए 6. चोटी बेधक (टाप सूट बोरर)
  5. (मार्च से सितम्बर)
  6. इसका प्रकोप गन्ने की फसल में बृद्धि की सभी अवस्थाओं में होता है प्रभावित गन्ने में पत्तियों सूखकर डेड हार्ट बना देती है तथा गन्ने की मघ्य सिरा में एक लाल धारी सी पड़ जाती है। विकसित गन्ने में झाड़ीनुमा सिरा (बन्ची टाप) बन जाती है।
  7.  रोकथाम 
  8. • चोटी बेधक के प्रकोप से ग्रस्त गन्ने को निकाल कर नष्ट कर देना चाहिए।
  9. • मार्च से जुलाई तक 15 दिन के अन्तराल पर ट्राइकोग्रामा कीलोनिस के 10 कार्ड प्रति हे0 की दर से प्रयोग करना चाहिए अथवा
  10. • रसायनिक नियंत्रण हेतु निम्नलिखित कीटनाद्गाको में से किसी एक का प्रयोग करना चाहिए।
  11. • क्लोरपाइरीफास 20 प्रतिद्गात ई0सी0 1.5 ली0 प्रति हे0 800-1000 ली0 पानी में घोलकर छिडकाव करना चाहिए अथवा 
  12. • कार्बोफ्‌यूरान 3 प्रतिद्गात सी0जी0 30 किग्रा0 प्रति हे0 की दर से बुरकाव करना चाहिए अथवा 
  13. फोरेट 10 प्रतिद्गात सी0जी0 30 किग्रा0 प्रति हे0 की दर से बुरकाव करना चाहिए ।
  14. 7. जड़ बेधक (रूट बोरर)
  15. इस कीट की सूड़ी का प्रकोप छोटे बड़े दोनों ही पौधो ंपर पाया जाता है। सूड़ी जमीन से लगे हुए गन्ने के भाग में छिन्द्र बनाकर घुस जाती है तथा मृतसार (डेड हार्ट) बनाती है इन मृतसारों से कोई दुर्गन्ध नहीं निकलती है तथा इसे आसानी से निकाला नही जा सकता है।
  16. रोकथाम  
  17. • कीट के अण्ड समूहों को इकट्‌ठा करके तथा प्रभावित तनों को जमीन से काट कर नष्ट कर देना चाहिए।
  18. • तलहटी वाले खेतों में पेडी की फसल नहीं लेनी चाहिए।
  19. • रसायनिक नियंत्रण हेतु निम्नलिखित कीटनाद्गाको में से किसी एक का प्रति हे0 की दर से प्रयोग करना चाहिए।
  20. • इमिडाक्लोरप्रिड 17.8 एस0एल0 350 मिली0 अथवा 
  21. • क्लोरपाइरीफास 20 प्रतिद्गात ई0सी0 2.5 ली प्रति हे0 अथवा

फेनवलरेट 0.4 प्रतिद्गात धूल 25 किग्रा0 की दर से प्रयोग करना चाहिए।
8. तना बेधक (स्टेम बोरर)
कीट का प्रकोप वर्षा काल के बाद जल भराव की स्थिति में अधिक पाया जाता है। यह कीट तनों में छेद करके इसके अन्दर प्रवेद्गा कर जाता है तथा पोरी के अन्दर का गूदा खा जाता है जिसके कारण उपज में कमी आ जाती है।
रोकथाम 
• गन्ने की सूखी पत्तियों को काट कर अलग कर देना चाहिए।
• एकीकृत नाद्गाीजीव प्रबन्धन के अन्तर्गत ट्राइकोग्रामा कीलोनिस के 10 कार्ड प्रति हे0 की दर से 15 दिन के अन्तराल पर सायंकाल प्रयोग करना चाहिए अथवा
• रसायनिक नियंत्रण हेतु निम्नलिखित कीटनाद्गाको में से किसी एक का प्रयोग करना चाहिए।
• मोनोक्रोटोफास 36 प्रतिद्गात एस0एल0 2 ली0 प्रति हे0800-1000 ली0 पानी में घोलकर छिडकाव करना चाहिए अथवा
• क्लोरपाइरीफास 20 प्रतिद्गात ई0सी0 1.5 ली0 प्रति हे0 800-1000 ली0 पानी में घोलकर छिडकाव करना चाहिए अथवा 
• कार्बोफ्‌यूरान 3 प्रतिद्गात सी0जी0 30 किग्रा0 प्रति हे0 की दर से बुरकाव करना चाहिए अथवा 
फोरेट 10 प्रतिद्गात सी0जी0 30 किग्रा0 प्रति हे0 की दर से बुरकाव करना चाहिए ।
9. दीमक
बोये गये गन्ने के दोनो सिरों से घुस कर अन्दर का मुलायम भाग खाकर उसमें मिट्‌टी भर देता है। ग्रसित पौधों की बाहरी पत्तियॉ पहले सूखती है तथा बाद में पूरा गन्ना नष्ट हो जाता है। ऐसे पौधो से दुर्गन्ध नही आती तथा पौधा आसानी से खिचने पर मिट्‌टी से उखड आता है
रोकथाम 
• बुवाई से पूर्व खेत की गहरी जुताई करनी चाहिए।
• खेत में कच्चे गोबर का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
• फसलों के अवद्गोषों को नष्ट कर देना चाहिए।
• नीम की खली 10 कुन्तल प्रति हे0 की दर से बुवाई से पूर्व मिलाने से खेत में दीमक के प्रकोप में कमी आती है।
• ब्यूवेरिया बैसियाना 1.15 प्रतिद्गात बायोपेस्टीसाइड 2.5 किग्रा0 प्रति हे0 60-75 किग्रा0 गोबर की खाद में मिलाकर हल्के पानी का छिटा देकर 8-10 दिन तक छाया में रखने के उपरान्त बुवाई के पूर्व आखिरी जुताई पर भूमि में मिला देने से दीमक का नियंत्रण हो जाता है।
• कूड़ों में फेनवलरेट 0.4 प्रतिद्गात धूल 25 किग्रा0 की दर से बुरकाव करना चाहिए।
• खड़ी फसल में प्रकोप की स्थिति में निम्नलिखित कीटनाद्गाकों में से किसी एक का सिंचाई के पानी के साथ प्रयोग करना चाहिए।
इमिडाक्लोरप्रिड 17.8 एस0एल0 350 मिली0 अथवा
क्लोरपाइरीफास 20 प्रतिद्गात ई0सी0 2.5 ली प्रति हे0 की दर से प्रयोग करना चाहिए।
 10. पत्ती की लाल धारी
(जून से सितम्बर तक)
गन्ने की पत्तियों पर लाल रंग की धारियॉ निचली सतह पर पड़ जाती है जिसके अत्यधिक प्रकोप की दद्गाा में पूरी पत्ती लाल हो जाती है। पत्तियों का क्लोरोफिल समाप्त हो जाता है तथा बढवार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
रोकथाम 
• रोग प्रतिरोधी प्रजातियों का ही प्रयोग करना चाहिए। यदि किसी बीज गन्ने के कटे हुए सिरे अथवा गॉठों पर लालिमा दिखे तो ऐसे सेट का प्रयोग नही करना चाहिए।
• स्वस्थ बीज गन्ना की बुवाई करना चाहिए। जिसका बीज आर्द्र गर्म वायु उपचार (54 से0 ताप पर 2.5 घण्टों तक 99 प्रतिद्गात आर्द्रता पर) विधि से पूर्वोपचारित किया गया हो।
• पौधद्गाालाओं के लिए खेत का चयन में समुचित जल निकास की व्यवस्था सुनिद्गिचत कर लेनी चाहिए। ताकि वर्षा ऋतु में पानी का जमाव न हो सके।
• ट्राइकोडरमा 2.5 किग्रा0 प्रति हे0 की दर से 75 किग्रा गोबर की खाद में मिलाकर प्रयोग करना चाहिए अथवा
स्यूडोमोनास फ्‌लोरिसेन्स 2.5 किग्रा0 प्रति हे0 की दर से 100 किग्रा0 अध सडे़ गोबर की खाद में मिलाकर प्रयोग करना चाहिए।
11. पायरिला
(जुलाई से सितम्बर तक)
कीट का सिरा लम्बा व चोंचनुमा होता है। ये वयस्क गन्ने की पत्ती से रस चूसकर क्षति पहुॅचाते है।
रोकथाम 
• अण्ड समूहों को निकाल कर नष्ट कर देना चाहिए।
• फसल वातावरण में पायरिला कीट के परजीवी एपीरिकेनिया मेलोनोल्यूका को संरक्षण प्रदान करना चाहिए। परजीवी कीट की पर्याप्त उपस्थित में कीट की स्वतः रोकथाम हो जाती है।
• रसायनिक नियंत्रण हेतु निम्नलिखित कीटनाद्गाको में से किसी एक का प्रयोग करना चाहिए।
• क्यूनालफास 25 प्रतिद्गात ई0सी0 2 ली0 प्रति हे0 800-1000 ली0 पानी में घोलकर छिडकाव करना चाहिए अथवा 
डाइक्लोरोवास 76 प्रतिद्गात ई0सी0 375 मिली0 800-1000 ली0 पानी में घोलकर छिडकाव करना चाहिए अथवा 
क्लोरपाइरीफास 20 प्रतिद्गात ई0सी0 1.5 ली0 प्रति हे0 800-1000 ली0 पानी में घोलकर छिडकाव करना चाहिए
12. पोरी बेधक
(इन्टर नोड बोरर)
(जुलाई से अक्टूबर तक)
इसके लारवा गन्ने के कोमल व मुलायम भाग को क्षतिग्रस्त कर पोरी में बेधक करते हुए गन्ने के ऊपरी भाग में पहुॅच जाते है।
रोकथाम 
• गन्ने की सूखी पत्तियों को काट कर अलग कर देना चाहिए।
• नाइट्रोजन का अधिक उपयोग नही करना चाहिए।
• खेत में समुचित जल प्रबन्ध करना चाहिए।
एकीकृत नाशीजीव प्रबन्धन के अन्तर्गत ट्राइकोग्रामा कीलोनिस के 10 कार्ड प्रति हे0 15 दिन के अन्तराल पर सायंकाल में प्रयोग करना चाहिए अथवा 
• रसायनिक नियंत्रण हेतु निम्नलिखित कीटनाशको में से किसी एक का प्रयोग करना चाहिए।
• मोनोक्रोटोफास 36 प्रतिद्गात एस0एल0 2 ली0 प्रति हे0800-1000 ली0 पानी में घोलकर छिडकाव करना चाहिए अथवा 
• क्लोरपाइरीफास 20 प्रतिद्गात ई0सी0 1.5 ली0 प्रति हे0 800-1000 ली0 पानी में घोलकर छिडकाव करना चाहिए अथवा 
• कार्बोफ्‌यूरान 3 प्रतिद्गात सी0जी0 30 किग्रा0 प्रति हे0 की दर से बुरकाव करना चाहिए अथवा 
फोरेट 10 प्रतिद्गात सी0जी0 30 किग्रा0 प्रति हे0 की दर से बुरकाव करना चाहिए ।
13. लाल सड़न( काना रोग)
(जुलाई से फसल के अन्त तक)
ऊपर से तीसरी तथा चौथी पत्ती सूखने लगती है साथ ही पत्ती के बीच की मोटी नस में लाल या भूरे रंग के धब्बे पडने लगते है। गन्ने को बीच की चीरने पर गूदा मटमैला लाल दिखाई पड़ता है। जिसमें से सिरके जैसी गंध आती हैं। गन्ने की पिथ में सफेद अथवा भूरी रंग की फफूॅदी भी विकसित हो जाती हैं।
रोकथाम 
• रोग प्रतिरोधी प्रजातियों का ही प्रयोग करना चाहिए। यदि किसी बीज गन्ने के कटे हुए सिरे अथवा गॉठों पर लालिमा दिखे तो ऐसे सेट का प्रयोग नही करना चाहिए।
• स्वस्थ बीज गन्ना की बुवाई करना चाहिए। जिसका बीज आर्द्र गर्म वायु उपचार(54 से0 ताप पर 2.5 घण्टों तक 99 प्रतिशत आर्द्रता पर ) विधि से पूर्वोपचारित किया गया हो।
• पौधशालाओं के लिए खेत के चयन में समुचित जल निकास की व्यवस्था सुनिद्गिचत कर लेनी चाहिए। ताकि वर्षा ऋतु में पानी का जमाव न हो सके।
ट्राइकोडरमा 2.5 किग्रा0 प्रति हे0 की दर से 75 किग्रा0 गोबर की खाद में मिलाकर प्रयोग करना चाहिए अथवा
स्यूडोमोनास फ्‌लोरिसेन्स 2.5 किग्रा0 प्रति हे0 की दर से 100 किग्रा0 गोबर की खाद में मिलाकर प्रयोग करना चाहिए ।
14. सफेद गिडार वयस्क(गुबरैले)
कीट मानसून की पहली वर्षा के बाद से पत्तियों को खाकर क्षति पहुॅचाते है। कीट के गिडार सफेद मटमैले रंग की होते है जो पौधे की जड़ को खाकर क्षति पहुॅचाते है। फलस्वरूप गन्ने का थान जड़ से सूखकर गिर जाता है।
रोकथाम 
• खेत की गहरी जुताई करके फसलों एवं खरपतवारों के अवशेषों को नष्ट कर देना चाहिए।
• बुवाई समय से तथा पौधों की वांछित दूरी बनाये रखी जानी चाहिए।
• भूमिशोधन ब्यूवेरिया बैसियाना 1.15 प्रतिशत 2.5 किग्रा0 प्रति हे0 की दर से 60-75 किग्रा0 गोबर की खाद में मिलाकर 8-10 दिन रखने के उपरान्त प्रभावित खेत में प्रयोग करना चाहिए।
• खड़ी फसल में कीट की रोकथाम हेतु मेटाराइजियम एनिसोप्ली 2.5 किग्रा0 प्रति हे0 की दर से 400-500 ली0 पानी में घोलकर सायंकाल छिडकाव करना चाहिए जिसे आवश्यकतानुसार 15 दिन के अन्तराल पर दोहराया जा सकता है।
• रसायनिक नियंत्रण हेतु निम्नलिखित कीटनाशको में से किसी एक का प्रयोग वयस्क कीट के नियंत्रण हेतु करना चाहिए।
• क्लोरपाइरीफास 20 प्रतिद्गात ई0सी0 1.5 ली0 प्रति हे0 800-1000 ली0 पानी में घोलकर छिडकाव करना चाहिए । 
• कार्बोफ्‌यूरान 3 प्रतिशत सी0जी0 25-30 किग्रा0 प्रति हे0 अथवा फेनवलरेट 10 प्रतिद्गात सी0जी0 25 किग्रा0 की दर से बुरकाव करना चाहिए।

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जैविक खेती: