पलवार ( प्लास्टिक मल्च) एक उन्नत तकनीक

पलवार ( प्लास्टिक मल्च) वह तकनीक है जिसमें भूमि की सतह पर जैविक व अजैविक दोनों प्रकार की सामग्री का प्रयोग फसल उत्पादन में इस प्रकार किया जाता है कि फसल में पानी या नमी की कमी ना हो, खरपतवार की रोकथाम हो, मृदा तापमान में स्थिरता रहे व मृदा की उर्वरता बढे। इन सब गुणों को बनाये रखने हेतु पलवार का प्रयोग किया जाता है। वैसे तो पलवार का प्रयोग जाड़े व गर्मी दोनों ही ऋतुओं में किया जा सकता है, पर मुख्यतः गर्मियों में बोई जाने वाली फसलों के लिए यह विशेष लाभदायक है।पलवार पौधे की विकास के लिए एक सूक्ष्म जलवायु प्रदान करता है जिससे मृदा में नमी, पर्याप्त तापमान, आर्द्रता, कार्बन डाइऑक्साइड और सूक्ष्म जीवो की गतिविधियां अच्छे ढंग से चलती रहती हैं ।पलवार सिंचाई की आवृत्ति को कम करता है, ग्रीन हाउस में मृदा तापमान प्रबंधन करता है ।इसके अतिरिक्त मृदा जनित बीमारियों में सोलराइजेशन (सूरज की रोशनी को बहुत लंबा समय तक खेत में लगाकर खरपतवार के बीजों, हानिकारक कवकों तथा जीवाणुओं को नष्ट करने की क्रिया) के लिए पलवार का प्रयोग होता है अधिक मूल्य वाली पशुओं में पलवार का प्रयोग होता है।
पलवार से लाभ :
1. जल की बचत व सिंचाई की आवृत्ति में कमी
2. खरपतवार नियंत्रण
3. मिट्टी में जल की उपलब्धता लंबे समय तक बनाए रखता है और आद्रता को भी स्थिर बनाए रखता है
4. यह अध : स्तर के रूप में कार्य करता है जिससे फल फूल और पौधे के अन्य भाग मृदा के संपर्क में नहीं आते हैं परिणाम स्वरूप फल व फूल की गुणवत्ता अच्छी बनी रहती है
5. यह कीटों को पौधों से दूर रखते हैं क्योंकि पलवार के लिए बिछाई हुई पालीथीन की चमक प्रतिबिंबित होती है अत: यह कीटों की रोकथाम में सहायक है
6. यह गर्मी और सर्दी में ऊष्मा रोधी के रूप में कार्य करता है जिससे सर्दी में ज्यादा ठंडी और गर्मी में सूखेपन से बचा जा सकता है
7. मृदा अपरदन को रोकने में महत्वपूर्ण है क्योंकि मृदा, वर्षा के पानी के सीधे संपर्क में आने से बच जाती है
8. यह उर्वरकों के रिसाव की समस्या को भी कम करता है
9. कई बार बीज अंकुरण, शीघ्र परिपक्वता एवं अधिक उत्पादन में मदद करता है
पलवार के प्रकार:
पलवार दो प्रकार के होते हैं यथा; जैविक - घास फूस, भूसा, सूखी पत्तियां, नवीन पल्लव व पीट मास आदि, तथा अजैविक - काली पालीथीन, पारदर्शी पालीथीन, दोहरी रंग की पालीथीन (पीली/काली, सफ़ेद /काली, सिल्वर /काली, लाल / काली)।
पलवार के प्रयोग:
• सब्ज़ी की फसलों पर 15-30 माइक्रोन मोटी पालीथीन की पलवार का प्रयोग करें।
• बाग - बगीचों में 100-150 माइक्रोन मोटी पालीथीन की पलवार का प्रयोग करें।
• कम अवधि वाली फसलों में 25 माइक्रोन प्रयोग करें ।
• बरसात -छिद्र पालीथीन का प्रयोग करें ।
• बागो में - मोटी पालीथीन का प्रयोग करें ।
• सोलराइजेशन - पतली पालीथीन का प्रयोग करें ।
• खरपतवार रोकने व सोलराइजेशन - पतली पालीथीन का प्रयोग करें ।
• जुता हुआ खेत जिसमे खरपतवार नियंत्रण करना हो, रेतीली मिट्टी, खारे पानी का प्रयोग करना हो - काली पालीथीन ।
• गर्मी की फसलों - सफ़ेद पालीथीन ।
• कीट नियंत्रण -सिल्वर पालीथीन ।
• बीज अंकुरण - पतली पालीथीन ।
पलवार बिछाने का तरीका:
सामान्यतः कम समय की फसलों में पतली पलवार बिछाई जाती है और अधिक समय की फसलों के लिए मोटी पलवार का प्रयोग किया जाता है।पॉलिथीन के मध्य मैं पौधे के व्यास के हिसाब से एक छिद्र किया जाता है, छिद्र करने के लिए गर्म पाइप या स्टैनलेस स्टील के कटर का प्रयोग किया जाता है।मिट्टी की भली प्रकार से जुताई करने के बाद, अच्छी प्रकार सड़ी हुई खाद लगाकर तथा उर्वरकों को मिलाकर ही पलवार बिछाये। पलवार बिछाते समय ध्यान रखें की गहरा रंग वाला हिस्सा मिट्टी की ओर बिछाया जाए और पलवार के कोने मिट्टी में दबाए जाये।
फसलों में प्रयोग - बंद गोभी, पत्ता गोभी, बैगन, टमाटर, मिर्च, भिंडी, आलू, अनार, नींबू, केला, पपीता, अमरूद और अंगूर की फसलों में अच्छे परिणाम देता है|

डॉ आर के सिंह, अध्यक्ष
कृषि विज्ञान केंद्र बरेली
+91 94366 06353

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