लीची की खेती

लीची (लीची चिनेंसिस) गर्मियों का उत्कृष्ट गुणवत्ता वाला एक स्वादिष्ट और रसदार फल है, जो लगभग सभी उम्र के लोगों के द्वारा पसंद किया जाता है। वानस्पतिक रूप से यह सैपिन्डाइसी कुल का सदस्य है। पारभासी, सुगंधित, स्वाद से भरपूर गूदा वाली लीची भारत में ताजे फल के रूप में लोकप्रिय है, जबकि चीन और जापान में इसे सूखे या डिब्बाबंद रूप में ज्यादा पसंद किया जाता है।

लीची मूल रूप से दक्षिणी चीन, विशेष रूप से क्वांगतुंग और फुकियन के प्रांतों में पैदा की जाती थी और वहाँ से दुनिया के अन्य हिस्सों में लीची का प्रसार हुआ। 18 वीं शताब्दी के दौरान म्यांमार और उत्तर पूर्व क्षेत्र से होते हुए लीची भारत पहुंची। आज चीन के बाद भारत विश्व में लीची का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है और समग्र विश्व के उत्पादन का लगभग 91% पैदावार इन्हीं दोनों देशों से आती है। अन्य प्रमुख उत्पादक देश थाईलैंड, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका, मेडागास्कर और अमेरिका का फ्लोरिडा क्षेत्र हैं।

भारत में लीची मूलतः बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा, उत्तर प्रदेश, उत्तरांचल, छत्तीसगढ़, पंजाब और हिमाचल प्रदेश में मई-जून में पैदा की जाती है, परंतु भा.कृ.अनु.प.-भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान, बेंगलुरु ने संकर किस्में विकसित की है जो दक्षिण भारत में नवम्बर-दिसम्बर माह में पक कर तैयार होती है। लीची पूर्वी भारत, खासकर बिहार में रहने वाले छोटे और सीमांत किसानों की आजीविका का सबसे आशाजनक आय स्रोत के रूप में सामने आयी है। इससे होने वाले लाभ को दृष्टिगत करते हुये बरेली परिक्षेत्र के कृषकों ने इसे अपनाया है और तराई क्षेत्र में लीची के काफी बड़े बाग लगाए गए हैं।

लीची के पेड़ों में इस समय फलों के दाने आ गए हैं, अतः कृषक भाइयों के लिए अप्रैल, मई एवं जून के माह में किये जाने वाले कार्यों हेतु कुछ सुझाव है, जिससे किसान भाइयों का फलोत्पादन अधिक एवं गुणवत्तापुर्ण होगा।

1. लीची के बाग का खरपतवार नियन्त्रण करें तथा समय-समय पर गुड़ाई करते रहें।

2. आवश्यकतानुसार सिचाँई करें, टपकन विधि (ड्रिप) से पानी की काफी बचत होती है, परंतु छिड़काव विधि (स्प्रिकलर) से करना अधिक लाभकारी होता है क्योंकी इससे पूरे बाग में नमी बनी रहती है और फलों का आकार ठीक रहता है।।

3. रोग/कीट ग्रसित टहनियों को तथा अनवांछित शाखाओं की छटाई करनी चाहिए। यह सुनिश्चित करें कि पौधों की उचाई 5 मीटर से अधिक नही होनी चाहिए। बाग में सूर्य का प्रकाश एवं वायु संचार की सम्पूर्ण व्यवस्था रखें।

4. इस अवधि में लीची में फल लगते हैं, उसमें फल एवं बीज भेदक कीट लगने की सम्भावना होती है अतः उससे बचाव के लिए साइपरमोथ्रिन 1.0 मि.लि. प्रति लीटर पानी में मिलाकर 2 छिड़काव 10 दिनों के उपरान्त करना उचित होता है।

5. लीची के फल पकते समय गहरे लाल रंग के हो जाते हैं, इस समय फलों की मिठास व उसकी गुणवत्ता अत्याधिक होती है अतः फलों की तुड़ाई का ये उचित समय है।

6. सुबह का प्रहर फल तोड़ने का सर्वोत्तम समय होता है। तुड़ाई के तुरन्त बाद फलों को पेटी में रखकर बाजार में भेजते है, जिससे दाब कर नष्ट न हों और फलों की उचित कीमत प्राप्त हो सके।

7. फलों का तोड़तें समय पकें फलों को 15 से 20 सेमी टहनी सहित काटें।

8. देर से पकने वाली लीची की प्रजातियों के फलों की तोड़ाई जून माह में करनी चाहिए।

9. यदि कटाई-छटाई पौधों/पेड़ों की पूर्ण नही हुयी हो तो फल लेने के उपरांत इनकी छटाई अवश्य करवाना चाहिए।

10. भविष्य में उवर्रकों के प्रयोग हेतु मृदा की जाँच करवाना चाहिए एवं उसके अनुरूप ही उवर्रक का प्रयोग करना चाहिए।

11. पेड़ के मुख्य तने से 150 से.मी. से 200 से.मी. तक दूरी पर 50 से 60 से.मी. गहरी नाली बनाकर एक सप्ताह के लिए खुला रखे उसके उपरान्त निर्धारित मात्रा में खाद, उवर्रक एवं मिट्टी के मिश्रण से भर दें यह कार्य 2 से 3 साल पर अवश्य करना चाहिए।

12. अन्य वर्षों में साधारण तरीके पेड़ के थाले में खाद एवं उवर्रक मिलाकर मिट्टी में गुड़ाई कर देनी चाहिए। इन क्रियाओं को नियमित समय पर करते रहेनें से लीची के पेड़ स्वस्थ रहेगें तथा फलों का उत्पादन भी अधिक एवं गुणवता पूर्ण होगा जिससे किसान की आय में वृद्धि होगी। डॉ

आर के सिंह, अध्यक्ष कृषि विज्ञान केंद्र बरेली
[email protected]

organic farming: 
जैविक खेती: