तेल

तेल शब्द का इस्तेमाल तीन भिन्न प्रकार के तेलों के लिए किया जाता है जो सरसों के बीज से बने होते हैं।

बीज को दबाकर बनाया गया एक वसायुक्त वनस्पति तेल,
एक गंध तेल जो बीज को पीस कर, उसे पानी में मिलाकर और आसवन द्वारा उदवायी तेल को निकाल कर बनाया जाता है।
सरसों के बीज के सार को दूसरे वनस्पति तेल के साथ मिश्रित कर बनाया गया एक तेल, जैसे सोयाबिन तेल।सहिजन (हॉर्सरैडिश) या वसाबी की तरह इस तेल की गंध तीव्र होती है, इसका स्वाद कषाय होता है और अक्सर इसका उपयोग उत्तर प्रदेश, गुजरात, उड़ीसा, बंगाल, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, असम और भारत के अन्य क्षेत्रों और बांग्लादेश में खाना पकाने के लिए किया जाता है। उत्तर भारत में मुख्य रूप से इसका इस्तेमाल पकौड़े को तलने के लिए किया जाता है। बंगाल में खाना पकाने के लिए इस तेल को पारंपरिक रूप से पसंद किया जाता है, हालांकि सनफ्लावर जैसे तटस्थ-स्वाद वाले तेलों का इस्तेमाल भी बड़े पैमाने पर किया जाता है। यह तेल लगभग 30% सरसों के बीज से बना होता है। इसका उत्पादन काले सरसों (ब्रैसिका निग्रा, भूरे रंग के भारतीय सरसों (ब्रैसिका जुनसिया) और सफेद सरसों (''ब्रैसिका हिर्टा) से किया जा सकता है।

खाद्य, तेल और दालों की कमी से जूझेगा देश

चालू रबी सीजन में दलहन व तिलहन की कम पैदावार को देखते हुए सरकार के लिए खाद्य प्रबंधन की चुनौतियां बढ़ गईं हैं। दाल की कमी का खामियाजा उपभोक्ता पहले से ही उठा रहे हैं। अरहर, मूंग व उड़द की दालें आम उपभोक्ता की पहुंच से बाहर हो गई हैं। रबी सीजन में भी इन दलहन फसलों की पैदावार में कमी आने का अनुमान है। खाद्य तेलों की कमी से सब्जियों का छौंका लगाना और महंगा हो सकता है।