मौसम

मौसम मूल रूप से राज्य है कि वातावरण में किसी भी दिए गए समय और जगह है, तापमान, हवा वेग, और अन्य कारकों के संबंध में किया जा सकता है।

मौसम का अर्थ है किसी स्थान विशेष पर, किसी खास समय, वायुमंडल की स्थिति। यहाँ “स्थिति” की परिभाषा कुछ व्यापक परिप्रेक्ष्य में की जाती है। उसमें अनेक कारकों यथा हवा का ताप, दाब, उसके बहने की गति और दिशा तथा बादल, कोहरा, वर्षा, हिमपात आदि की उपस्थिति और उनकी परस्पर अंतः क्रियाएं शामिल होती हैं। ये अंतक्रियाएं ही मुख्यतः किसी स्थान के मौसम का निर्धारण करती हैं। यदि किसी स्थान पर होने वाली इन अंतःक्रियाओं के लंबे समय तक उदाहरणार्थ एक पूरे वर्ष तक, अवलोकन करके जो निष्कर्ष निकाला जाता हैं तब वह उस स्थान की “जलवायु” कहलाती है। मौसम हर दिन बल्कि दिन में कई बार बदल सकता है। पर जलवायु आसानी से नहीं बदलती। किसी स्थान की जलवायु बदलने में कई हजार ही नहीं वरन् लाखों वर्ष भी लग सकते हैं। इसीलिए हम ‘बदलते मौसम’ की बात करते हैं, ‘बदलती हुई जलवायु’ की नहीं।

मौसम लोगों को तेवर से लेकर इतिहास तक को प्रभावित कर सकता है जबकि जलवायु किसी जीवधारी के समूचे वंश को प्रभावित कर सकती है। जलवायु में होने वाले परिवर्तन जीव-जंतुओं के समूचे वंशों को ही समाप्त कर सकते हैं। अतीत में ऐसा अनेक बार हुआ भी है। ये परिवर्तन हिमयुगों के आगमन अथवा उनके समापन जैसी बड़ी घटनाओं के फलस्वरूप बहुत धीरे-धीरे ही प्रगट होते हैं।

यह निर्विवाद तथ्य है कि किसी स्थान का मौसम ही अंततः उस स्थान या क्षेत्र की जलवायु का निर्माण करता है। लंबे समय तक चलने वाला मौसम ही जलवायु का रूप ले लेता है। उदाहरणार्थ उत्तर भारत में गर्मी की ऋतु में जलवायु गर्म और शुष्क रहती है, वर्षा गर्मी के अंत में होती है और सर्दियों में जलवायु ठंडी और शुष्क रहती है। हमारे तटीय प्रदेशों में जलवायु लगभग वर्ष भर गर्म और नम रहती है। इसका अर्थ यह नहीं है कि गर्मी में और सर्दी के महीनों में वर्षा कभी भी नहीं होती। उस वर्षा से सर्दी या गर्मी में मौसम बदल सकता है- जलवायु नहीं। 

यद्यपि वायुमंडल के विभिन्न घटकों की पारस्परिक क्रियाओं के फलस्वरूप ही मौसम का निर्माण होता है पर इन घटकों की गतिविधियों को कुछ “बड़े तत्व” अत्यधिक प्रभावित करते हैं। वे इनको नियंत्रित करते हैं। ये तत्व हैं सूर्य, पृथ्वी और पृथ्वी की भौतिक संरचनाएं। ये भौतिक संरचनाएं हैं पर्वत, घाटी, सागर, मरुस्थल आदि। वैसे स्वयं वायुमंडल की भी अपनी गतिविधियां हैं; उसके अपने स्वाभाविक गुण हैं। इन तत्वों में सबसे शक्तिशाली है सूर्य। इसलिए अपनी चर्चा सूर्य के गुणगान से ही आरंभ करें।

पारा गिरानें से आई किसानों के चेहरों की मुस्कान

पारा गिरानें से आई किसानों के चेहरों की मुस्कान

लगातार दो बार कमज़ोर मानसून की मार झेलने के बाद और इस बार अधिक ठंड ना पड़ने के कारण परेशान किसानों ने लगता है उम्मीद का दमन छोड़ा नहीं है। मौजूदा समय में लगातार तापमान बढ़ने से किसानों को रबी की फसल को लेकर चिंता सताने लगी थी लेकिन जब तापमान में गिरावट आई और ठिठुरन बढ़ी तो उनके चेहरों पर रौनक लौट आई है। गौरतलब है कि गेहूं जैसी मुख्य फसलों के लिए ज्यादा सर्दी की जरूरत होती है। माना ये जाता है कि सर्दी जितनी अधिक होगी, गेहूं की पैदावार उतनी ही बेहतर होती है।

 

बदले मौसम से रबी फसलों को राहत

बदले मौसम से रबी फसलों को राहत

 मकर संक्रांति के बाद मौसम के बदले मिजाज ने रबी फसलों की आस बढ़ा दी है। पिछले दो दिनों में बढ़ी सर्दी से रबी फसलों को भारी राहत मिली है।मौसम के बिगड़े तेवर का असर रबी फसलों पर पड़ने लगा है।

दिसंबर से मध्य जनवरी तक बढ़ी गरमी ने किसानों के होश उड़ा दिये थे। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और गुजरात के असिंचित क्षेत्रों में मिट्टी में नमी की कमी के चलते गेहूं की बुवाई नहीं हो पाई है।

रबी खेती पर छाया खतरा सरकार गंभीर

रबी खेती पर छाया खतरा सरकार गंभीर

दिसंबर के आखिरी दिनों में तापमान में ये उछाल और मौसम में गर्मी का अहसास किसानों के साथ आम जन के लिए चिंता का विषय बन गया है। मौसम विभाग के अनुसान जनवरी के पहले सप्ताह में तेज ठंड की उम्मीद नहीं है। 

गेहूं के लिए नुकसान
इन दिनों खेतों में खड़ी गेहूं की फसल के लिए तापमान की यह तेजी नुकसान का कारण बन सकती है। बढ़वार पर आई फसल के लिए अधिक तापमान नुकसान का कारण बन सकता है। जहां पहले बोवनी हो गई थी और फसल अधिक बड़ी हो गई है, उसके लिए और भी अधिक नुकसान होगा। 

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