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कहां खो गई हम किसानों की स्वाधीनता

कहां खो गई हम किसानों की स्वाधीनता

वैश्विक तापवृद्धि, जलवायु परिवर्तन, कुदरती आपदाओं में इजाफा और बढ़ती लागत के चलते खेती पहले से ही घाटे का सौदा है। लेकिन, अब मुक्त व्यापार नीतियों के तहत सस्ते कृषि उत्पादों का बढ़ता आयात किसानों को गहरे संकट में डाल रहा है। इससे न केवल बढ़ती आबादी के अनुरूप खाद्यान्न उत्पादन में बढोतरी की रफ्तार धीमी पड़ गई है। बल्कि, सरकारी कोशिशों के बावजूद किसानों को उनकी उपज की वाजिब कीमत नहीं मिल पा रही है। इसका सीधा असर प्रति व्यक्ति खाद्यान्न उपलब्धता और किसानों की आमदनी पर पड़ रहा है। गौरतलब है कि देश 70 वां स्वाधीनता दिवस मना रहा है। जिस उदारीकरण की नीतियों को भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए वरदान माना

कृषि प्रधान देश में किसान क्यों है बेहाल ?

कृषि प्रधान देश  में किसान क्यों बेहाल ?

एक साल पहले फरवरी मार्च के दिनों में देश की राजधानी दिल्ली में तमिलनाडु के बदहाल किसान पहुंचे थे. उनके प्रतिरोध को हथकंडा, नाटक और फोटोशूट की संज्ञा देने वालों की कोई कमी नहीं थी. डॉयचे वेले में प्रकाशित एक आलेख में बताया गया था कि 2004-05 और 2007-08 में कृषि सेक्टर की सालाना औसत वृद्धि दर पांच फीसदी थी I  लेकिन 2008-09 और 2013-14  में ये गिर कर तीन फीसदी रह गई. इन्हीं अवधियों में अर्थव्यवस्था में क्रमशः नौ और सात फीसदी की सालाना औसत वृद्धि दर्ज की गी. कृषि की बदहाली का ठीकरा खराब मौसम की स्थितियों पर फोड़ा गया है I  

सबका साथ-सबका विकास में किसान शामिल क्यों नहीं ?

सबका साथ-सबका विकास में किसान शामिल क्यों नहीं ?

भाजपा सरकार का कहना है कि वो किसानों के मुद्दों को लेकर संजीदा हैं. बीते साल कई जनसभाओं में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि भाजपा सरकार 2022 तक किसानों की आय को दोगुना करने का संकल्प रखती है और इसी दिशा में आगे बढ़ रही है.

प्रधानमंत्री का कहना था कि किसानों की बेहतरी के लिए कृषि उत्पादों की मूल्य वृद्धि के लिए उन्होंने किसान संपदा योजना की घोषणा की है जो "सच्चे अर्थ में देश की अर्थव्यवस्था को एक नया आयाम देगा."

बजट 2018 में किसान

बजट 2018 और किसान

नरेंद्र मोदी की अगुआई वाली एनडीए सरकार के 2018-19 को किसानों और ग्रामीणों का बजट बताया जा रहा है। पहले वित्त मंत्री अरुण जेटली फिर प्रधानमंत्री ने बार-बार जोर देखकर कहा कि ये बजट किसानों और गांव का बजट है। हम किसानों की आमदनी 2022 तक दोगुनी करेंगे और हर फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य देंगे।

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