कृषि समस्याये

देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ अब भी कृषि ही हे. कृषि एक ऐसा उद्द्योग हे जिसमे हमेश लागत से अधिकउत्पादन होता हे. प्रकृति का  अनमोल  उपहार हे कृषि. कृषि के साथ जुड़ा  हुआ हे पशु पालन, मत्स्य पालन,फल, सब्जी,का उत्पादन, जल और भूमि  संरक्षण, पर्यावरण की रक्षा, और करोड़ो लोगो के रोजगार का अभूतपूर्वसाधन. इसके साथ ही पोषण की उचित व्यवस्था. लेकिन आज के समय में बीज-खाद माफिया के कारण देश काकिसान परेशान हे और आत्महत्या करने के लिए मजबूर हे. बड़े किसान तो फिर भी अपना काम चला रहे हे.लेकिन छोटे और मझोले किसान तो अपने जमीन से दूर हो चुके हे और शहरों में मजदूरी करने के लिए मजबूरहे. जो कल तक अपने खेत के मालिक होते थे वे भी अब छोटे मोटे नौकरी के लिए मजबूर हे.

इन सभी समस्याओ के लिए बीज-खाद माफिया जिम्मेदार हे. उनलोगो ने किसान के हाथ  की ताकत छीन ली.किसान बीज-खाद और कीटनाशक के चक्कर में इस तरह से उलझ गया की हमेशा के लिए कर्जदार बन गया.किसान बाजार का गुलाम बन अपना सब कुछ लूटा कर भी सुखी नहीं रह पा रहा हे. अंग्रेजो के ज़माने मेंसाहूकारों का गुलामी करने के लिए किसान मजबूर थे अब आधुनिक साहूकारों (बीज-खाद माफिया) के गुलामबन गए हे.

उत्पादन  बढ़ाने के नाम पर जैविक खाद को समाप्त कर दिया गया और रासायनिक खाद और कीटनाशक कोबढ़ावा दिया गया जिसे जल, भूमि, और वायु सभी प्रदूषित हो गए. फल सब्जियों की पौष्टिकता समाप्त होगयी.  

सूखे का संकट स्थायी क्यों है

सूखे का संकट स्थायी क्यों है

पिछले कुछ सालों से किसानों को बार-बार सूखे से जूझना पड़ रहा है और अब लगभग यह हर साल बना रहने वाला है। वर्ष 2009 में सबसे बुरी स्थिति रही है। पहले से ही खेती-किसानी बड़े संकट के दौर से गुज़र रही है। कुछ सालों से किसानों की आत्महत्याओं का सिलसिला रुक नहीं रहा है। इस साल भी सूखा ने असर दिखाया है, एक के बाद एक किसान अपनी जान दे रहे हैं।

सूखा यानी पानी की कमी। हमारे यहाँ ही नहीं बल्कि दुनिया में नदियों के किनारे ही बसाहट हुई, बस्तियाँ आबाद हुईं, सभ्यताएँ पनपीं। कला, संस्कृति का विकास हुआ और जीवन उत्तरोत्तर उन्नत हुआ। 

रासायनिक कृषि विनाश का नया आगाज

रासायनिक कृषि विनाश का नया आगाज

रासायनिक कृषि क्या है रासायनिक कृषि का प्रचलन कैसे हुआ 

 रासायनिक उर्वरक क्या हैं उनसे क्या लाभ हैं? क्या हानियाँ है ? इन सबको समझने के लिए इसके इतिहास को हमको जानना पड़ेगा

फ़्रांस के कृषि वैज्ञानिकों ने पता लगाया की पौधों के विकास के लिए मात्र तीन तत्व नाइट्रोजन, फास्फोरस एवं पोटास की अधिक आवश्यकता होती है अत: उनके अनुसार ये तीन तत्व पौधों को दी हैं तो पौधों का अच्छा विकास एवं अच्छी उपज प्राप्त हो सकती है १८४० में जर्मन वैज्ञानिक लिबिक ने इन तीनों के रासायनिक संगठक एन पी के खाद बनाकर फसलों की बढ़वार के लिए इस रसायन को भूमि पर डालने के लिए प्रोत्साहित किया

रासायनिक खाद बर्बादी का कारण

रासायनिक खाद बर्बादी का कारण

भारत एक कृषि प्रधान देश है | प्राचीन काल में मानव स्वास्थ्य के अनुकूल तथा प्राकृतिक वातावरण के अनुरूप खेती की जाती थी। जिससे जैविक और अजैविक पदार्थाें के बीच आदान-प्रदान का चक्र निरन्तर चलता रहा था। जिसके फलस्वरूप जल, भूमि, वायु तथा वातावरण प्रदूशित नहीं होता था। आज भी भारत की 70 प्रतिशत जनता कृषि पर निर्भर है तथा कृषि देश की अर्थव्यवस्था का प्रमुख साधन है | भारत की अधिकतर जनसंख्या गावों में रहती है, जहाँ अनेक प्रकार के खाद्यान्नों का उत्पादन किया जाता है | भोजन मनुष्य की मूलभूत आवश्यकता है | अत: खाद्यान्नों का सीधा सम्बन्ध जनसंख्या से है | भारत की जनसंख्या बहुत तेजी से बढ़ रही है | इस प्रका

किसान आज भी गुलाम

 किसान आज भी गुलाम

प्रथम विश्व युद्ध के समय केन नामक पाश्चात्य अर्थशास्त्री ने विकास की नई अवधारणा प्रस्तुत की जिसके अनुसार, कृषि को अर्थव्यवस्था के मूलाधार होने को नकारते हुए उद्योगों के आधार पर नई विश्व अर्थव्यवस्था को महत्व दिया गया। कारण कि प्रथम विश्व युद्ध में इंग्लैण्ड की माली हालात काफी पतली हो चुकी थी ऐसे में इस अवधारणा या सिध्दांत पर इंग्लैण्ड ने अमल करना प्रारंभ किया। प्रथम विश्व युद्ध के बाद इंग्लैण्ड ने अपने कब्जे वाले देशों के प्राकृतिक संसाधनों के बूते पर केन की इस अवधारणा को अमलीजामा पहनाना प्रारंभ कर दिया। भारत जैसे कई देशों से विभिन्न उद्योगों के लिए कच्चा माल मनमाने मूल्य पर खरीदा गया और इं

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