पोषक तत्वों की पूर्ति में जैविक खादों का महत्व
पोषक तत्वों की पूर्ति में जैविक खादों का महत्व
हमारे देश में मवेशियों की संख्या लगभग 29 करोड़ होगी जिससे प्रति वर्ष अनुमानतः 122.8 करोड़ टन गोबर और 80 करोड़ टन मूत्र प्राप्त हो जाता है।यदि सम्पूर्ण मल-मूत्र का संरक्षण कर लिया जाये तो इससे 34.42 लाख टन नाइट्रोजन,13.07 लाख टन फास्फोरस और 22.14 लाख टन पोटाश की वार्षिक पूर्ति हो सकती है। किन्तु ऐसा व्यवहारिक रूप से संभव नहीं है। जाड़े में अनुमानतः 40 प्रतिशत गोबर का उपयोग उपले बनाने में और 58 प्रतिशत कम्पोस्ट बनाने या गोबर का ढेर लगाकर खाद तैयार करने में किया जाता है। इसके विपरीत बरसात के मौसम में 13 प्रतिशत गोबर उपले बनाने में, 85 प्रतिशत खाद के रूप में और शेष 2 प्रतिशत भाग घर की लिपाई पुताई के काम आता है। एक अनुमान के अनुसार 70 के दशक के प्रारम्भ में केवल 30 प्रतिशत गोबर का उपयोग ईंधन के रूप में होता था जबकि 90 के दशक के प्रारंभ में 75 प्रतिशत उपयोग ईंधन के रूप में होने लगा है। यदि किसी तरह 50 प्रतिशत गोबर का इस्तेमाल खाद के रूप में कर दिया जाये तो इससे प्रतिवर्ष 17.21 लाख टन नाइट्रोजन, 6.54 लाख टन फास्फोरस और 11.07 लाख टन पोटाश की पूर्ति हो सकती है।
हरी खाद:
मिट्टी की उवर्राशक्ति बनाये रखने तथा फसलों को संतुलित मात्रा में पोषक तत्व प्रदान करने में हरी खाद का विशेष महत्व है, परन्तु फिर भी इसका प्रचलन बहुत ही कम है। दिन प्रतिदिन मिट्टी की उत्पादकता में हो रही कमी को दृष्टिगत रखते हुए मिट्टी की उर्वराशक्ति तथा भैतिक गुणों में सुधार हेतु हरी खाद का प्रयोग बड़े पैमाने पर करना आवश्यक प्रतीत होता है। धान की फसल में हरी खाद का प्रयोग विशेष लाभकर सिद्ध हुआ है। उत्तर भारत में धान-गेहूँ फसल चक्र में गेहूँ कटने के बाद हरी खाद तैयार करने के लिये मई के दूसरे सप्ताह में ढैंचा बोने की संस्तुति की जाती है। 50 दिन की हरी खाद की फसल को पलटाई करके धान की रोपाई करने पर प्रति हैक्टर
60 कि0ग्रा. नाइट्रोजन की बचत की जा सकती है, अर्थात हरी खाद के साथ 60 किग्रा0 नाइट्रोजन देने पर प्राप्त उपज बिना हरी खाद 120 किग्रा0 नाइट्रोजन के साथ-साथ अन्य आवश्यक पोषक तत्वों की न्यूनाधिक मात्रा में पूर्ति हो जाती है तथा इससे मिट्टी के भौतिक गुणों में भी सुधार होता है जो कि अनवरत् उत्पादकता के लिये आवश्यक है।
ढैंचे की नयी प्रजाति सैस्बेनिया रोस्टेªटा है जिसमें जडों के अतिरिक्त तनों में नाइट्रोजन यौगिकीकरण करने वाली गांठे पायी जाती है। इस प्रजाति की नाइट्रोजन यौगिकीकरण क्षमता ढैंचा की अपेक्षा अधिक है। यह जलमग्न दशा में सफलतापूर्वक उगती है।
अतः धान की हर 10-12 लाइनों के बाद एक लाइन सेस्बेनिया रोस्टेªटा की लगा देने पर धान की फसल की वृद्धि प्रभावित नहीं होती और इससे प्रति हैक्टर लगभग 1.5 टन जैव पदार्थ पैदा हो जाता है जिससे फसल को लगभग 15 किग्रा नाइट्रोजन प्राप्त हो जाता है।
इसी प्रकार अन्य फसलें जैसे आलू, गन्ना आदि फसलों में भी हरी खाद की उपयुक्त फसलों का चुनाव करके पोषक तत्वों की पूर्ति की जा सकती है।
प्रक्षेत्र अपषिष्ट:
हमारे देश में प्रतिवर्ष बहुतायत में फसलों के अवशिष्ट उपलब्ध होते है। उल्लेखनीय है कि केवल पांच फसलों अर्थात धान, गेहूं, ज्वार, बाजरा और मक्का से लगभग 23.60 करोड़ टन भूसा/कर्बी प्राप्त हो जाती है औसत रूप में इन फसल अपशिष्टों में 0. 5 प्रतिशत नाइट्रोजन, 0.60 प्रतिशत फास्फोरस तथा 1.5 प्रतिशत पोटेशियम पाया जाता है। इस प्रकार केवल इन पांच प्रमुख फसलों से 11.3 लाख टन नाइट्रोजन, 14.1 लाख टन फास्फोरस और 35.4 लाख टन पोटाश की पूर्ति हो सकती है। यदि इनके कुल उत्पादन का 50 प्रतिशत जानवरों को चारे के रूप में खिला दिया जाये फिर भी शेष मात्रा का उपयोग पोषक तत्वों की पूर्ति के लिए किया जा सकता है। फसल अपशिष्टो का उपयोग
खाद-सामग्री के रूप में अथवा सीधे मिट्टी में मिलाकर सड़ा-गला कर पोषक तत्वों की पूर्ति की जा सकती है। परन्तु वास्तविकता यह है कि गेहूं का सारा भूसा चारे के रूप में प्रयोग होता है। धान का पुआल चारे की दृष्टि से अच्छा नहीं माना जाता है क्योंकि इसमें सिलिका और आक्जैलिक अम्ल की बहुलता होती है। पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में यद्यपि इसका प्रयोग चारे के लिये नहीं होता फिर भी या तो इसे जला दिया जाता है या इसका अन्य उपयोग जैसे पैकिग आदि में कागज और इमारती बोर्ड, गँावों में झोंपडी आदि बनाने में कर लिया जाता है। पूर्वी एवं मध्य उत्तर प्रदेश में चारे में रूप में भी इसे उपयोग कर लेते है। वनों में नीचे गिरी पत्तियों को जला देते है। गन्ने की खोई गन्ना मिलों में ईंधन के रूप में काम आती है। इससे कागज, बोर्ड, लुगदी भी बना लेते है। कपास के अपशिष्टों का उपयोग ईधन के रूप में करते है। इन उपयोगों के कारण फसलों के अवशेषों से खाद तैयार करके पोषक तत्वों की पूर्ति करना सम्भव नहीं हो पाता है। मृदा उर्वरता पोषक फसल चक्र: दलहनी फसलो का मिट्टी की
उर्वराशक्ति पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है। इसीलिए दलहनी फसल आधारित फसल चक्र को मृदा उर्वरता पोषक फसल चक्र कहा जाता है। अतः अनाज वाली फसलें लेने से पूर्व यदि दलहनी फसल ली गयी है तो इसका मिट्टी की उर्वराशक्ति पर लाभकारी प्रभाव पड़ा है। ऐसी दशा में अगली फसल में दिये जाने वाले उर्वरकों की मात्रा में कुछ हद तक कटौती भी की जा सकती है।
पोषक तत्व- सम्वर्द्धित कम्पोस्ट:
कम्पोस्ट या अन्य स्थूल जैविक खादों में पोषक तत्वों की मात्रा बहुत कम होने के कारण इन्हें अधिक मात्रा में प्रयोग करना पड़ता है। हाल में किये गये शोध कार्य से अब यह स्पष्ट हो गया है कि खाद सामग्री को पोषक तत्वों से सम्बर्द्धित कर देने पर तैयार खाद मे पोषक तत्वों की मात्रा कई गुना बढ़ जाती है। फलतः ऐसी खाद का प्रयोग कम मात्रा में करने की आवश्यकता पड़ती है। परीक्षणों से पता चला है कि खाद सामग्री में भार के आधार पर 25 प्रतिशत मसूरी राक फास्फेट मिला देने से तैयार कम्पोस्ट में फास्फोरस की मात्रा 0.25 प्रतिशत से बढ़कर 7 प्रतिशत हो जाती है।
इस प्रकार एक टन कम्पोस्ट का प्रयोग करने पर 70 किलोग्राम फास्फोरस की पूर्ति हो सकती है। साथ ही राक फास्फेट में मौजूद अघुलनशील फास्फोरस घुलनशील रूप में (लगभग एक तिहाई) परिवर्तित हो जाता है जो पौधों को सुलभ हो जाता है।
खाद सामग्री में पाइराइट (5 से 10 प्रतिशत भारानुसार) मिलाकर सड़ाव क्रिया कराने से नाइट्रोजन का छीजन रूक जाता है तथा लोहे और गंधक की मात्रा मे उल्लेखनीय वृद्धि हो जाती है। कम्पोस्ट सामग्री में जिंक सल्फेट मिला देने से तैयार कम्पोस्ट में जिंक की मात्रा बढ़ जाती है। सम्बर्द्धित कम्पोस्ट में मौजूद जिंक की अधिक क्षमता को दृष्टि में रखते हुए जिंक सल्फेट की मात्रा में 50 प्रतिशत तक कटौती की जा सकती है। कुछ ऐसे अणुजीवों की खोज की गयी है जिनसे खाद सामग्री का विघटन तेजी से होता है। कम्पोस्ट तैयार करने पर से लुलोटिटिक फंजाई की महत्वपूर्ण भूमिका की पुष्टि हुई है। प्रति टन खाद सामग्री में 300 ग्राम फंगलकल्चर एवं 10 प्रतिशत की दर से राक फास्फेट का प्रयोग के उपरान्त उचित नमी बनाये रखने पर 8-10 सप्ताह में खाद तैयार हो जाती है। सेलेलोटिक फंजाई, एजोटोबैक्टर तथा फास्फोरस को घुलनशील बनाने वाले जीवाणुओं का टीका लगानेपर तैयाद खाद के गुणों में उल्लेखनीय वृद्धि हो जाती है। इससे नाइट्रोजन की मात्रा में वृद्धि हो जाने के फल-स्वरूप कार्बन: नाइट्रोजन अनुपात काफी कम हो जाता है जो कि एक अच्छी खाद का गुण है।
जैव उर्वरक
ऐसा अनुमान है कि जैव उर्वरकों से 19 लाख टन पोषक तत्व की पूर्ति हो सकती है। दलहनी फसलों के लिये राइजोबियम, धान के लिये नीलहरित शैवाल व एजोला, अन्य खरीफ एवं रबी धान्यों के लिये एजोस्पिरिलम तथा फास्फोरस को घुलनशील बनानेवाले सूक्ष्म जीव उपयोगी सिद्ध हुए हैं। जैव उर्वरकों की कृषि उत्पादन में महत्वपूर्ण भूमिका के बावजूद इनकी गुणवत्ता में कमी, किसानों को इनके सही प्रयोग के बारे में अनभिज्ञता, सुनिश्चित आपूर्ति का अभाव आदि अभी तक इनके प्रचार-प्रसार और उपयोग में बाधक रहा है।
मृदा उर्वरता पोषक फसल चक्र
दलहनी फसलो का मिट्टी की उर्वराशक्ति पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है। इसीलिए दलहनी फसल आधारित फसल चक्र को मृदा उर्वरता पोषक फसल चक्र कहा जाता है। अतः अनाज वाली फसलें लेने से पूर्व यदि दलहनी फसल ली गयी है तो इसका मिट्टी की उर्वराशक्ति पर लाभकारी प्रभाव पड़ा है। ऐसी दशा में अगली फसल में दिये जाने वाले उर्वरकों की मात्रा में कुछ हद तक कटौती भी की जा सकती है।
पोषक तत्व- सम्वर्द्धित कम्पोस्ट
कम्पोस्ट या अन्य स्थूल जैविक खादों में पोषक तत्वों की मात्रा बहुत कम होने के कारण इन्हें अधिक मात्रा में प्रयोग करना पड़ता है। हाल में किये गये शोध कार्य से अब यह स्पष्ट हो गया है कि खाद सामग्री को पोषक तत्वों से सम्बर्द्धित कर देने पर तैयार खाद मे पोषक तत्वों की मात्रा कई गुना बढ़ जाती है। फलतः ऐसी खाद का प्रयोग कम मात्रा में करने की आवश्यकता पड़ती है। परीक्षणों से पता चला है कि खाद सामग्री में भार के आधार पर 25 प्रतिशत मसूरी राक फास्फेट मिला देने से तैयार कम्पोस्ट में फास्फोरस की मात्रा 0.25 प्रतिशत से बढ़कर 7 प्रतिशत हो जाती है।
इस प्रकार एक टन कम्पोस्ट का प्रयोग करने पर 70 किलोग्राम फास्फोरस की पूर्ति हो सकती है। साथ ही राक फास्फेट में मौजूद अघुलनशील फास्फोरस घुलनशील रूप में (लगभग एक तिहाई) परिवर्तित हो जाता है जो पौधों को सुलभ हो जाता है।
खाद सामग्री में पाइराइट (5 से 10 प्रतिशत भारानुसार) मिलाकर सड़ाव क्रिया कराने से नाइट्रोजन का छीजन रूक जाता है तथा लोहे और गंधक की मात्रा मे उल्लेखनीय वृद्धि हो जाती है। कम्पोस्ट सामग्री में जिंक सल्फेट मिला देने से तैयार कम्पोस्ट में जिंक की मात्रा बढ़ जाती है। सम्बर्द्धित कम्पोस्ट में मौजूद जिंक की अधिक क्षमता को दृष्टि में रखते हुए जिंक सल्फेट की मात्रा में 50 प्रतिशत तक कटौती की जा सकती है। कुछ ऐसे अणुजीवों की खोज की गयी है जिनसे खाद सामग्री का विघटन तेजी से होता है। कम्पोस्ट तैयार करने पर से लुलोटिटिक फंजाई की महत्वपूर्ण भूमिका की पुष्टि हुई है। प्रति टन खाद सामग्री में 300 ग्राम फंगलकल्चर एवं 10 प्रतिशत की दर से राॅक फास्फेट का प्रयोग के उपरान्त उचित नमी बनाये रखने पर 8-10 सप्ताह में खाद तैयार हो जाती है। सेलेलोटिक फंजाई, एजोटोबैक्टर तथा फास्फोरस को घुलनशील बनाने वाले जीवाणुओं का टीका लगानेपर तैयाद खाद के गुणों में उल्लेखनीय वृद्धि हो जाती है। इससे नाइट्रोजन की मात्रा में वृद्धि हो जाने के फल-स्वरूप कार्बन: नाइट्रोजन अनुपात काफी कम हो जाता है जो कि एक अच्छी खाद का गुण है।
जैव उर्वरकों की कृषि
उत्पादन में महत्वपूर्ण भूमिका के बावजूद इनकी गुणवत्ता में कमी, किसानों को इनके सही प्रयोग के बारे में अनभिज्ञता, सुनिश्चित आपूर्ति का अभाव आदि अभी तक इनके प्रचार-प्रसार और उपयोग में बाधक रहा है
मृदा उर्वरता पोषक फसल चक्र:
दलहनी फसलो का मिट्टी की उर्वराशक्ति पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है। इसीलिए दलहनी फसल आधारित फसल चक्र को मृदा उर्वरता पोषक फसल चक्र कहा जाता है। अतः अनाज वाली फसलें लेने से पूर्व यदि दलहनी फसल ली गयी है
तो इसका मिट्टी की उर्वराशक्ति पर लाभकारी प्रभाव पड़ा है। ऐसी दशा में अगली फसल में दिये जाने वाले उर्वरकों
की मात्रा में कुछ हद तक कटौती भी की जा सकती है।
पोषक तत्व- सम्वर्द्धित कम्पोस्ट:
कम्पोस्ट या अन्य स्थूल जैविक खादों में पोषक तत्वों की मात्रा बहुत कम होने के कारण इन्हें अधिक मात्रा में प्रयोग करना पड़ता है। हाल में किये गये शोध कार्य से अब यह स्पष्ट हो गया है कि खाद सामग्री
को पोषक तत्वों से सम्बर्द्धित कर देने पर तैयार खाद मे पोषक तत्वों की मात्रा कई गुना बढ़ जाती है। फलतः ऐसी खाद का प्रयोग कम मात्रा में करने की आवश्यकता पड़ती है। परीक्षणों से पता चला है कि खाद सामग्री में भार के आधार पर 25 प्रतिशत मसूरी राक फास्फेट मिला देने से तैयार कम्पोस्ट में फास्फोरस की मात्रा 0.25 प्रतिशत से बढ़कर 7 प्रतिशत हो जाती है।
इस प्रकार एक टन कम्पोस्ट का प्रयोग करने पर 70 किलोग्राम फास्फोरस की पूर्ति हो सकती है। साथ ही राक फास्फेट में मौजूद अघुलनशील फास्फोरस घुलनशील रूप में (लगभग एक तिहाई) परिवर्तित हो जाता है जो पौधों को सुलभ हो जाता है।
खाद सामग्री में पाइराइट (5 से 10 प्रतिशत भारानुसार) मिलाकर सड़ाव क्रिया कराने से नाइट्रोजन का छीजन रूक जाता है तथा लोहे और गंधक की मात्रा मे उल्लेखनीय वृद्धि हो जाती है। कम्पोस्ट सामग्री में जिंक
सल्फेट मिला देने से तैयार कम्पोस्ट में जिंक की मात्रा बढ़ जाती है। सम्बर्द्धित कम्पोस्ट में मौजूद जिंक की अधिक क्षमता को दृष्टि में रखते हुए जिंक सल्फेट की मात्रा में 50 प्रतिशत तक कटौती की जा सकती है। कुछ ऐसे अणुजीवों की खोज की गयी है जिनसे खाद सामग्री का विघटन तेजी से होता है। कम्पोस्ट तैयार करने पर से लुलोटिटिक फंजाई की महत्वपूर्ण भूमिका की पुष्टि हुई है। प्रति टन खाद सामग्री में 300 ग्राम फंगलकल्चर एवं 10 प्रतिशत की दर से राक फास्फेट का प्रयोग के उपरान्त उचित नमी बनाये रखने पर 8-10 सप्ताह में खाद तैयार हो जाती है। सेलेलोटिक फंजाई, एजोटोबैक्टर तथा फास्फोरस को घुलनशील बनाने वाले जीवाणुओं का टीका लगानेपर तैयाद खाद के गुणों में उल्लेखनीय वृद्धि हो जाती है। इससे नाइट्रोजन की मात्रा में वृद्धि हो जाने के फल-स्वरूप कार्बन: नाइट्रोजन अनुपात काफी कम हो जाता है जो कि एक अच्छी खाद का गुण है। खाद का गुण है।