एप्पल बेर लगाएं ,सालोंसाल बगैर पूंजी का उत्पादन पाएं
एप्पल बेर लांग टाइम इंवेस्टमेंट है। इससे एक बार फसल लेने के बाद करीब 15 साल तक फसल ले सकते हैं। कम रखरखाव व कम लागत में अधिक उत्पादन के कारण किसान इसकी ओर आकर्षित हो रहे हैं।
बेर… लगभग सबने खाया और देखा होगा, लेकिन एप्पल जैसा आकार और खाने में बेर का स्वाद, यह शायद पहली बार ही सुना होगा, लेकिन यह सच्चाई है। थाईलैंड का यह फल इंडिया में थाई एप्पल बेर के नाम से प्रसिद्ध है। थाईलैंड में इसको जुजुबी भी कहते हैं।
राजस्थान के सीकर के रसीदपुरा गांव के अरविन्द और आनंद ने ऐसे ही बेर अपने 21 बीघा खेत में उगा रखे हैं। आनंद बताते हैं कि 14 माह पहले इस फल के 1900 पेड़ खेत में लगाए गए थे। यह दूसरा मौका है जब पेड़़ों में फल आए हैं।
पांच वर्ष बाद उन्हें 21 बीघा के इस खेत से सालाना करीब 25 लाख रुपए की आय होने वाली है। उन्हें इस वर्ष करीब आठ लाख रुपए की आय होगी। उनकी प्रेरणा लेकर करीब 50 और खेतों में थाई एप्पल बेर के पेड़ लगाए गए हंै।
चार माह में फल
बकौल अरविन्द और आनंद पेड़ लगाने के चार माह बाद इसमें फल आना शुरू हो जाता है। पहली बार फल प्रति पेड़ में दो से पांच किलो, दूसरी बार में प्रति पेड़ 20 से 40 और पांच वर्ष बाद प्रति पेड़ में एक से सवा क्विटल फल आते हैं। इसके लिए सीकर का क्षेत्र अनुकूल है। यह माइनस डिग्री से +50 डिग्री सेल्सियस तापमान में भी कारगर हुआ है। उनका कहना है कि अप्रेल माह में इसके पेड़ को नीचे से गन्ना की तरह काट दिया जाता है।
दिसंबर तक इसके फलों को बाजार में सप्लाई किया जा सकता है। यह बेर 60 से 120 ग्राम वजनी होता है। आनंद के पिता किशोर सिंह थाईलैंड गए थे। वहां पर थाई एप्पल बेर की खेती देखकर आए थे। इसके बाद हम दोनों भाइयों ने नेट पर इसके बारे में पढ़ा। अहमदाबाद जाकर इसकी खेती देखी। सीकर में इसका प्रयोग किया तो सफल रहा।
सेब व बेर के मिश्रित स्वाद वाले फल की मांग इंदौर, अहमदाबाद, वडोदरा, मुंबई समेत बड़े शहरों में बढ़ रही है। बेर के खरीदार अधिकांश निजी कंपनियां है। वे इन्हें विदेशों में निर्यात करती हैं। इसके आकर्षक रूप व स्वाद के कारण स्थानीय बाजारों में इसकी मांग बढ़ रही हैं। पहले साल में एक पौधे से 60 से 70 किलो का उत्पादन मिला। बाजार में इसका भाव 45 से 50 रुपए किलो तक जाता है।