केवल 60 दिनों में तैयार होगी लोबिया
आलू और गेहूं की फसल के बाद, धान से पहले के बीच की अवधि में किसान लोबिया की फसल उगा सकते हैं। वैज्ञानिकों ने समतल इलाकों में खेती के अनुकूल लोबिया की ऐसी किस्म विकसित की है, जो मात्र 60 दिन में तैयार हो जाती है।
आमतौर पर लोबिया की सामान्य किस्मों को तैयार होने में 120-125 दिन लगते हैं। ज़ायद में इस किस्म को बोने से किसान का खेत भी खाली नहीं रहेगा। लोबिया से किसानों की कमाई भी अच्छी हो जाएगी क्योंकि इस दौरान बाज़ार में हरी सब्जि़यां कम ही होती हैं। इस किस्म की एक और खासियत यह है कि इसमें पानी की बहुत कम आवश्यक्ता होती है। जिस वजह से किसानों को गर्मी बढऩे पर सिंचाई की चिंता नहीं करनी होगी।
उत्तराखंड के उधमसिंहनगर स्थित ‘गोविंद वल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय’ में सब्जी विभाग प्रमुख यशवीर सिंह ने लोबिया की छोटी अवधि की यह किस्म तैयार की है। ”हमने लोबिया की 60-65 दिनों में तैयार हो जाने वाली किस्म विकसित की है। इसका फायदा यह है कि किसान धान से पहले भी एक छोटी फसल ले सकता है” डॉ सिंह ने बताया।
पिछले वर्ष प्रायोगिकतौर पर लोबिया की इस किस्म की खेती मध्य प्रदेश के किसानों के साथ मिलकर की गई थी, जिसमें सफलता मिली। यशवीर सिंह ने बताया, ”हमने इस किस्म को मध्य प्रदेश के सतना, रीवा और शहडोल जिलों में किसानों को उगाने के लिए दिया था। वहां इसकी पैदावार जबरदस्त रही थी, किसानों को काफी लाभ मिला।”
अल्प अवधि लोबिया की प्रजातियों जैसे पन्त लोबिया-1, पन्त लोबिया-2 एवं पंत लोबिया-3 की बुआई 15 मार्च से अप्रैल के प्रथम सप्ताह के बीच की जा सकती है। लोबिया की बढिय़ा खेती के लिये उचित जल निकास वाली बलुई दोमट भूमि उत्तम रहती है। अच्छे अंकुरण के लिए बीज को थीरम दो ग्राम/किलोग्राम या बाविस्टीन एक ग्राम/किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करके बोना चाहिए। लोबिया की अच्छी वृद्घि के लिए एक गहरी जुताई के बाद दो हैरों से जुताई पर्याप्त होती है पर इस नई किस्म को जीरो टिलेज (बिना खेत जोते) भी उगाया जा सकता है।
खेती की तैयारी के समय गोबर की खाद या वर्मी कम्पोस्ट (चार हज़ार किलो प्रति एकड़) को मिट्टी में मिला देना चाहिए। सिंचित दशा में 25 किग्रा नत्रजन, 60 किग्रा फॉस्फोरस और 50 किग्रा पोटाश प्रतिहैक्टर के हिसाब से प्रयोग करना चाहिए। बीज की बुआई कतार में करें, जिसमें कतार से कतार की दूरी 40-45 सेमी और पौध से पौध की दूरी 10 सेमी रखें। बीज को दो-तीन सेमी की गहराई में बोएं और यह सुनिश्चित कर लें कि बुआई के समय उचित नमी हो।
पहली निराई, बुआई के तीन सप्ताह के अन्दर और दूसरीनिराई फूल आने से पहले कर देनी चाहिए। खरपतवार नियंत्रण के लिए बुआई के तुरन्त बाद पेन्डीमिथेलीन दवा (दो लीटर) 600-800 लीटर पानी के साथ घोल बनाकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव कर दें। ऐसा करने से एक निराई की बचत हो जाएगी है। लोबिया की फसल की प्रारम्भिक अवस्था में ग्रीष्म ऋतु में मुख्यत: छोटे-छोटे भिनकों (थ्रिप्स) से नुकसान होता है। इसकी रोकथाम के लिए मोनोक्रोटोफास दवा 1.5 लीटर को 600-800 लीटर पानी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर के साथ घोल बनाकर खड़ी फसल पर छिड़काव करें। आवश्यकतानुसार 15 दिन बाद दूसरा छिड़काव करें।
लोबिया कि ये नई प्रजातियां जून के प्रथम पखवाड़े में धान की रोपाई से पहले तैयार हो जाती है। इनकी उपज 14-18 क्विंटल दाना प्रति हेक्टेयर होती है। तराई क्षेत्र के किसान ग्रीष्म ऋतु में धान की फसल के स्थान पर यदि लोबिया की खेती करते हैं तो न सिर्फ उनको आर्थिक लाभ मिलेगा बल्कि पानी की बचत होगी और खेतों की उर्वराशाक्ति में भी सुधार होगा।