खाद्य, तेल और दालों की कमी से जूझेगा देश

चालू रबी सीजन में दलहन व तिलहन की कम पैदावार को देखते हुए सरकार के लिए खाद्य प्रबंधन की चुनौतियां बढ़ गईं हैं। दाल की कमी का खामियाजा उपभोक्ता पहले से ही उठा रहे हैं। अरहर, मूंग व उड़द की दालें आम उपभोक्ता की पहुंच से बाहर हो गई हैं। रबी सीजन में भी इन दलहन फसलों की पैदावार में कमी आने का अनुमान है। खाद्य तेलों की कमी से सब्जियों का छौंका लगाना और महंगा हो सकता है।

खाद्य प्रबंधन को लेकर सरकार की मुश्किलें इस साल और बढ़ सकती हैं। दालों की मांग व आपूर्ति के अंतर को कम करने के लिए सरकारी प्रबंधकों को दाल व खाद्य तेलों के आयात पर जोर देना होगा। इसके लिए अंतरराष्ट्रीय बाजार में पहले ही इन दोनों जिंसों के सौदे तलाशने शुरू कर देने होंगे। खराब मौसम और बारिश न होने की वजह से जहां असिंचित क्षेत्रों में तिलहन व दलहन की बुवाई कम हुई है, वहीं बुवाई वाले क्षेत्रों में उत्पादकता में गिरावट की आशंका है। सरकार के लोग इससे अच्छी तरह वाकिफ हैं।

अरहर दाल ने सरकार को खून के आंसू रुलाया है जो चालू सीजन में कम होगी क्योंकि उसकी बुवाई का रकबा कम हुआ है। कीमतें 200 रुपये प्रति किलोग्र्राम को भी पार कर गई थीं। खाद्य तेलों में सरसों, सोयाबीन और मूंगफली समेत अन्य तिलहन की पैदावार में गिरावट का अनुमान है। उल्लेखनीय है कि खाद्य तेल की घरेलू मांग के मुकाबले आपूर्ति बहुत कम है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक खाद्य तेलों की कुल मांग का 50 फीसद से भी अधिक हिस्सा आयात से पूरा किया जाता है। इसीलिए खाद्य तेलों की कीमतें अंतरराष्ट्रीय बाजार के रुख पर निर्भर होती है।

घरेलू पैदावार कम होने की दशा में अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेजी का रुख बन सकता है जो घरेलू खाद्य तेल बाजार में कीमतें बढ़ाने वाला साबित होगा। इससे निपटने के लिए सरकार को दीर्घकालिक नीति बनाने की जरूरत है, जिसमें तिलहन की खेती को प्रोत्साहित करना होगा।

साभार नई दुनिया