अरहर

अरहर की दाल को तुवर भी कहा जाता है। इसमें खनिज, कार्बोहाइड्रेट, लोहा, कैल्शियम आदि पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है। यह सुगमता से पचने वाली दाल है, अतः रोगी को भी दी जा सकती है, परंतु गैस, कब्ज एवं साँस के रोगियों को इसका सेवन कम ही करना चाहिए।
अंग्रेज़ी में: pigeon pea (Cajanus cajan, syn. Cajanus indicus) बांग्ला: अरहर असमी: रोहोर नेपाली: रहर गुजराती/मराठी/पंजाबी: तूर/तूवर तमिल: तुवरम परुप्पू (துவரம்பருப்பு), मलयालम: तूवर परुप्पू ("തുവര പരിപ്പ്"), कन्नड़: तोगड़ी तेलुगु: कांडी

भारत में अरहर की खेती तीन हजार वर्ष पूर्व से होती आ रही है किन्तु भारत के जंगलों में इसके पौधे नहीं पाये जाते है। अफ्रीका के जंगलों में इसके जंगली पौधे पाये जाते है। इस आधार पर इसका उत्पत्ति स्थल अफ्रीका को माना जाता है। सम्भवतया इस पौधें को अफ्रीका से ही एशिया में लाया गया है।

दलहन प्रोटीन का एक सस्ता स्रोत है जिसको आम जनता भी खाने में प्रयोग कर सकती है, लेकिन भारत में इसका उत्पादन आवश्यकता के अनुरूप नहीं है। यदि प्रोटीन की उपलब्धता बढ़ानी है तो दलहनों का उत्पादन बढ़ाना होगा। इसके लिए उन्नतशील प्रजातियां और उनकी उन्नतशील कृषि विधियों का विकास करना होगा।

अरहर एक विलक्षण गुण सम्पन्न फसल है। इसका उपयोग अन्य दलहनी फसलों की तुलना में दाल के रूप में सर्वाधिक किया जाता है। इसके अतिरिक्त इसकी हरी फलियां सब्जी के लिये, खली चूरी पशुओं के लिए रातव, हरी पत्ती चारा के लिये तथा तना ईंधन, झोपड़ी और टोकरी बनाने के काम लाया जाता है। इसके पौधों पर लाख के कीट का पालन करके लाख भी बनाई जाती है। मांस की तुलना में इसमें प्रोटीन भी अधिक (21-26 प्रतिशत) पाई जाती है।
यह पूर्व उत्तरी भारत के दलहन की मुख्य फसल है। पूर्वी उत्तरप्रदेश में तो दाल माने अरहर की दाल। यह केवल उत्तर प्रदेश में ३० लाख एकड़ से अधिक रकबे में बोई जाती है। इसके लिये नीची तथा मटियार भूमि को छोड़कर सभी जमीनें उपयुक्त हैं। ऊँची दूमट भूमि में, जहाँ पानी नहीं भरता, यह फसल विशेष रूप से अच्छी होती है। यह बहुधा वर्षा ऋतु के आरंभ में और खरीफ की फसलों के साथ मिलाकर बोई जाती है। अरहर के साथ कोदो, बगरी-धान, ज्वार, बाजरा, मूँगफली, तिल आदि मिलाकर बोते हैं। वर्षा के अंत में ये फसलें पक जाती है और काट ली जाती हैं। इसके बाद जाड़े में अरहर बढ़कर खेत को पूर्णतया भर लेती है तथा रबी की फसलों के साथ मार्च के महीने में तैयार हो जाती है। पकने पर इसकी फसल काटकर दाने झाड़ लिए जाते हैं।

अन्य फसलों के साथ मिलाकर इसका बीज केवल दो किलो प्रति एकड़ के हिसाब से डाला जाता है। अरहर को वर्षा के पहले दो महीनों में यदि निकाई व गोड़ाई दो-तीन बार मिल जाय, तो इसका पौधा बहुत बढ़ता है और पैदावार भी लगभग दूनी हो जाती है। चने की तरह इसकी जड़ों में भी हवा से खाद नाइट्रोजन इकट्ठा करने की क्षमता होती है। अरहर बोने से खेतों की उर्वरा शक्ति बढ़ती है और इसे स्वयं खाद की आवश्यकता नहीं होती। इसको पानी की भी अधिक आवश्यकता नहीं होती। जब धान इत्यादि पानी की कमी से मर तथा मुर्झा जाते हैं तब भी अरहर खेत में हरी खड़ी रहती है। कमजोर अरहर की फसल पर पाले का असर कभी कभी हो जाता है, परंतु अच्छी फसल पर, जो बरसात में गोड़ाई के कारण मोटी हो गई है, पाले का भी असर बहुत कम, या नहीं, होता।

फसलों को बीमारियों से बचायें

फसलों को बीमारियों से बचायें

वर्तमान समय में खेत की सतत निगरानी करते हुये फसल में रोगों से बचाव हेतु उपाय कर लें। बताया कि अरहर व धान का पत्ती लपेटक रोग से पीले रंग की सूड़ियाॅ पौधे की चोटी की पत्तियों को लपेटकर सफेद जाला बना लेती हैं और उसी में छिपी पत्तियों को खाती हैं और बाद में फूलों,फलों को नुकसान पहुॅचाती हैं। बचाव हेतु मोनोक्रोटोफास 36 प्रतिषत 1 लीटर या क्यूनालफास 25 प्रतिशत ईसी 1.250 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से 800 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें या नीम का तेल गौमूत्र के साथ स्प्रे करें ।
धान का गन्धी बग- 

जुलाई में कृषि कार्यों में क्या करें

जुलाई में कृषि कार्यों में क्या करें

जुलाई महीने के प्रमुख कृषि कार्य

धनहा खेत में हरी खाद की फसल लगाते हैं। ये गहरे हल से जुताई करके किया जाता है।

धान का रोपा लगाया जाता है। जो धान जून के अन्त में बोयी गयी थी, उसकी निंदाई की जाती है।

मक्का, जो मई या जून में बोई गयी थी, उसकी निंदाइ की जाती है।

इस महीने में फिर से मक्का बाजरा, ज्वार, अरहर आदि लगाते हैं।

गन्ने पर मिट्टी चढ़ायी जाती है। कपास, मूंगफली की निंदाई-गुड़ाई करते हैं।

सूरजमुखी की बुवाई करना शूरु हो जाता है।

चारे के लिये सूडान घास, मक्का, नेथियर, रोड्स पारा आदि घास लगायी जाती है।

खाद्य, तेल और दालों की कमी से जूझेगा देश

चालू रबी सीजन में दलहन व तिलहन की कम पैदावार को देखते हुए सरकार के लिए खाद्य प्रबंधन की चुनौतियां बढ़ गईं हैं। दाल की कमी का खामियाजा उपभोक्ता पहले से ही उठा रहे हैं। अरहर, मूंग व उड़द की दालें आम उपभोक्ता की पहुंच से बाहर हो गई हैं। रबी सीजन में भी इन दलहन फसलों की पैदावार में कमी आने का अनुमान है। खाद्य तेलों की कमी से सब्जियों का छौंका लगाना और महंगा हो सकता है।

दूर होगी दाल की किल्लत आईएआरआई के वैज्ञानिकों ने अरहर की तैयार की एक नई किस्म

दूर होगी दाल की किल्लत आईएआरआई के वैज्ञानिकों ने अरहर की  तैयार की एक नई किस्म

दाल कभी गरीबों का भोजन माना जाता था लेकिन अब दाल गरीबों के लिए एक दिवा स्वप्न से अधिक नही है दाल की किल्लत को देखते हुए भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) के वैज्ञानिकों ने अरहर की एक नई किस्म तैयार की है जिसकी फसल न सिर्फ कम समय में पककर तैयार हो जाएगी बल्कि उससे उत्पादन भी अधिक होगा। इस किस्म के आने से जहां देश में दलहन का उत्पादन बढ़ने की उम्मीद है, वहीं यह किसानों के लिए विशेष फायदेमंद होगी।  दालों की आसमान छूती कीमतों के मद्देनजर एक राहत की खबर है।