बिना पानी के अब पैदा होगा गेहूं!

किसानों को जल्द ही गेहूं की ऐसी वैरायटी उपलब्ध कराई जाएंगी, जिसकी खेती बहुत कम पानी के इस्तेमाल से की जा सकती है। अब तक गेहूं की फसल कम से कम छह सिंचाई में अच्छी पैदावार देती है, लेकिन नई किस्में आने के बाद सिर्फ दो सिंचाई में ही गेहूं की फसल ली जा सकेगी। 

इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चर रिसर्च (नई दिल्ली) ने वैज्ञानिकों द्वारा ईजाद की गईं ऐसी आठ किस्मों को ट्रायल के लिए कृषि अनुसंधान केंद्रों को भेजा है। बुलंदशहर के अनुसंधान केंद्र पर एक सफल ट्रायल हो चुका है, जबकि दूसरे परीक्षण की रिपोर्ट अप्रैल तक आ जाएगी। 

जलवायु परिवर्तन का कृषि पर प्रभाव

climate change

जलवायु परिवर्तन की चुनौती भले ही रोजमर्रा की आजीविका के संघर्ष एवं व्यस्त दिनचर्या में लीन लोगों के लिए महज खबर या अकादमिक विषय सामग्री हो। लेकिन सच्चाई तो यह है कि हवा, पानी, खेती, भोजन, स्वास्थ्य, आजीविका एवं आवास आदि सभी पर प्रतिकूल असर डालने वाली इस समस्या से देर-सबेर, कम-ज्यादा हम सभी का जीवन प्रभावित होता है, चाहे वह समुद्री जल-स्तर बढ़ने से प्रभावित होते तटीय या द्वीपीय क्षेत्रों के लोग हों या असामान्य मानसून अथवा जल संकट से त्रस्त किसान। विनाशकारी समुद्री तूफान का कहर झेलते तटवासी हों अथवा सूखे एवं बाढ़ की विकट स्थितियों से त्रस्त लोग। असामान्य मौसम जनित अजीबो-गरीब बीमारियों से जूझते

जैविक कीटनाशक अपनाकर पानी प्रदूषण से बचाएं

जैविक कीटनाशक

विकास की अंधी दौड़ में हमने अपनी परम्परागत खेती को छोड़कर आधुनिक कही जाने वाली खेती को अपनाया। हमारे बीज- हमारी खाद- हमारे जानवर सबको छोड़ हमने अपनाये उन्नत कहे जाने वाले बीज, रसायनिक खाद और तथाकथित उन्नत नस्ल के जानवर। नतीजा, स्वावलम्बी और आत्मनिर्भर किसान खाद, बीज, दवाई बेचने वालों से लेकर पानी बेचने वालों और कर्जा बांटने वालों तक के चँगुल में फंस गये। यहां तक की उन्नत खेती और कर्ज के चंगुल में फँसे कई किसान आत्म हत्या करने तक मजबूर हो गये । खेती में लगने वाले लागत और होने वाला लाभ भी बड़ा सवाल है, किन्तु खेती केवल और केवल लागत और लाभ ही नहीं है हमारे समाज और बच्चों का पोषण, मिट्टी की गुण

दवाओं के कहर से जहर होती जमीन

chemical

खेती में कीटनाशकों के इस्तेमाल का बहुत कम हिस्सा अपने वास्तविक मकसद के काम आता है। इसका बड़ा हिस्सा तो हमारे विभिन्न जलस्रोतों में पहुँच जाता है और भूजल को प्रदूषित करता है। जमीन में रिसने से काफी जगहों का भूजल बेहद जहरीला हो गया है। ये रसायन बहकर नदियों और तालाबों में भी पहुँच जाते हैं, जिसका दुष्प्रभाव जल-जीवों और पशु-पक्षियों पर भी पड़ रहा है।

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