अब यूरिया से हटेगा सरकारी नियंत्रण, बाजार तय करेगा दाम

urea

डीजल और पेट्रोल के बाद यूरिया से सरकारी नियंत्रण हटाने  की तैयारी है. यानी अब बाजार के आधार पर यूरिया की कीमतें तय होंगी. वित्तीय साल 2015-16 के केंद्रीय बजट में इसकी घोषणा हो सकती है.

वित्त मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा, 'अगले तीन सालों तक यूरिया की एमआरपी (न्यूनतम खुदरा मूल्य) में 20 फीसदी का इजाफा हो सकता है.' इस सालाना बढ़ोतरी को 10-10 फीसदी के इंस्टॉलमेंट में भी बांटा जा सकता है.' यानी हर खरिफ और राबी मौसम के पहले यूरिया वाले खाद की कीमतों में 10 फीसदी बढ़ोतरी संभव है.

बारिश और ओलावृष्टि से फसल तबाह

फाल्गुन-चैत्र में मानसून की तरह वेस्ट में बरस रहे बादलों और ओलावृष्टि ने फसलों पर कहर ढा दिया है। गेहूं, सरसों, आलू जैसी मुख्य फसलों के उत्पादन में औसतन 15 फीसदी से ज्यादा गिरावट की आशंका है। बहुत से किसानों की तो आधे से ज्यादा फसल ही बर्बाद हो गई है। मौसम विभाग ने अगले दो दिन और बारिश की संभावना बताई है। ऐसे में किसान बस भगवान भरोसे ही हैं। जिले में प्रशासन फसलों को हुए नुकसान का आकलन भी अब तक नहीं कर पाया है।

ग्लोबल वार्मिग से कृषि पैदावार में कमी के संकेत

वातवरण में लगातार बढ़ रही कार्बन डाईऑक्साईड की मात्रा से न केवल वैश्विक तापमान में वृद्धि (ग्लोबलवार्मिग) तथा स्वास्थ्य संबंधी बीमारियां हो रही है, बल्कि फसलों की पैदावार कम होने से विश्व में खाद्यान्न संकट भी उभर रहा है । 

ताकि मिट्टी भी ले सके पूरी सांस

 देश के विभिन्न क्षेत्रों में मिट्टी की उर्वरता को बचाने की मुहिम की जानी चाहिए. खेती में रासायनिक कीटनाशक और उर्वरकों के प्रयोग दुष्परिणामों के बारे में किसानों को अवगत कराना चाहिए.

रसायनों व कीटनाशकों के प्रयोग से देशभर के खेतों की मिट्टी बेजान हो गई है. मिट्टी में मौजूद सूक्ष्मजीव और लाभदायक जीवाणु खत्म हो रहे हैं. इसका सीधा असर खेती के उत्पादन पर पड़ता है. केंद्र सरकार रासायनिक खाद के लिए सालाना 50 हजार करोड़ रुपए की सब्सिडी दे रही है. जो खेती में रसायनों के प्रयोग को प्रेरित करते हुए मिट्टी का स्वास्थ्य खराब कर रही है. सरकार को जैविक खेती को बढ़ावा देना चाहिए.

Pages