पीला रतुआ (यैलोरस्ट) रोग एवं जैविक उपचार
जनवरी और फरवरी में गेहूं की फसल में लगने वाले पीला रतुआ (यैलोरस्ट) रोग आने की संभाबना रहती है तापमान में वृद्धि के साथ-साथ गेहूं को पीला रतुआ रोग लग जाता है। हाथ से छूने पर धारियों से फंफूद के बीजाणु पीले रंग की तरह हाथ में लगते हैं। फसल के इस रोग की चपेट में आने से कोई पैदावार नहीं होती है और किसानों को फसल से हाथ धोना पड़ता है। इस बीमारी के लक्षण प्राय ठंडे व नमी वाले क्षेत्रों में ज्यादा देखने को मिलती है, साथ ही पोपलर व सफेदे के आसपास उगाई गई फसलों में यह बीमारी सबसे पहले आती है। पत्तों का पीला होना ही पीला रतुआ नही है, पीला पत्ता होने के कारण फसल में पोषक तत्वों की कमी, जमीन में नमक की मात्रा ज्यादा होना व पानी का ठहराव भी हो सकता है। हैपीला रतुआ बिमारी में गेंहु के पत्तों पर पीले रंग का पाउडर बनता हैं, जिसे हाथ से छुने पर हाथ पीला हो जाता हैं। ऐसे खेतों में जाने से कपड़े भी पीले हो जाते हैं।
उपचार -
जैविक उपचार 1 कि.ग्रा. तम्बाकू की पत्तियों का पाउडर 20 कि.ग्रा. लकड़ी की राख के साथ मिला कर बीज बुआई या पौध रोपण से पहले खेत में छिड़काव करें।
गोमूत्र नीम का तेल मिलाकर अच्छी तरह मिश्रण तैयार कर 500 मि. ली. मिश्रण को प्रति पम्प के हिसाब से फसल में तर-बतर कर छिडकाव करें |
गैामूत्र 10 लीटर व नीम की पट्टी 2.5 किलो व लहसुन 250 ग्राम काढ़ा बना कर 80 से 90 लीटर पानी के साथ प्रति एकड़ छिड़काव करें ।
5 लीटर मट्ठा को मिटटी के घड़े में भरकर 7 दिनों तक मिटटी में दाव देवे उसके बाद 40 लीटर पानी में 1 लीटर मट्ठा मिला कर स्प्रे करे |
रासायनिक करने वाले किसान पीला रतुआ का लक्षण दिखाई दे तो किसान तुरंत प्रोपिकोनाजोल 25 ईसी (टिल्ट) नामक दवाई 200 मिलीमीटर को 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ की दर से स्प्रे करे। दूसरा छिडक़ाव 15-20 दिन के अतंराल के अंदर जरूर करे।