संकर धान की खेती

उपयुक्त भूमि:
संकर धान से भरपूर तथा उसकी पूरी अनुवंशिक क्षमता के अनुरूप उपज प्राप्त करने के लिये दोमट या मटियार खेत जिसमें पानी रोकने की क्षमता अधिक हों तथा उपयुक्त जल निकास हो।

संकर किस्में:
संकर किस्में दो विभिन्न आनुवंशिक गुणों वाली प्रजातियों के नर एवं मादा के संयोग/संसंर्ग/संकरण से विकसित की जाती है। इससे पहले पीढ़ी का बीज नई किस्मों के रूप में प्रयोग मे लाया जाता है। क्योकि पहली पीढ़ी में एक विलक्षण ओज क्षमता पाई जाती है। जो सर्वोत्तम सामान्य किस्मों की तुलना में अधिक उपजदेने की क्षमता होती है। अगली पीढ़ी मे उनके संकल्पित गुण विघटित हो जाते है। और उनकी ओज क्षमता में बहुत ह्रास जाता है। अतः संकर किस्मो का लाभ एक ही पीढ़ी तक सीमित रहात है। परिणामतः इसका बीज किसानो को हर साल क्रय करना पड़ता है | संकर धान की किस्मों से प्रजनित सामान्य किस्मों की तुलना में लगभग १०-१२ कुन्तल प्रति हेक्टेयर अधिक उपज मिलती है। क्योकि इसमें प्रति पौध बालियाँ तथा प्रति बाली दानो की संख्या अधिक होती है।

संस्तुत संकर धान/प्रजातियॉ:
क्र.सं. नाम प्रजाति अवधि उपज कुन्तल /हे.
१. पन्त संकर धान-१ ११५-१२० ६०-६५
२. नरेन्द्र संकर धान-२ १२५-१३० ६०-६५
३. प्रो.एग्रो.- ६१११ १२५-१३० ९०-९५
४ प्रो.एग्रो.- २ ६२०१ १२५-१३० ८५-९०
५ पी.एच.बी.-७१ १२५-१३० ८०-८५
६ के.आर.एच.- १२५-१३० ६५-७०
७ पी.आर.एच.-१० १२५-१३० ६५-७०
८ प्रो.एग्रो.-६४४४ १२५-१३० ६५-७०
९ उसर संकर धान -३ १२५-१३० ५५-६०

बीज दर:
२० किलोग्राम बीज प्रति हेक्टयर अर्थात बीज दर सामान्य की अपेक्षा आधी होती है।

पौध डालने का समय:
जून का प्रथम पखवाड़ा
रोपाई का समय :
जब पौध २५ दिन के हो जाय।
पौघ डालना या पौध प्रबंधन:
संकर धान प्रजातियों का पौध प्रबंधन धान की अन्य उपजाऊ प्रजातियों के पौध प्रबंधन से बिल्कुल भिन्न है। सबसे पहले पौध शाला की अच्द्दी तरह से जुताई करके खेत को सममतल कर ले। एक हेक्टेयर क्षेत्रफल में संकर धान रोपने हेतु ७०० से ८०० वर्ग मी. क्षेत्र की नर्सरी पर्याप्त होती हें। इसके लिए १ से १.२५ मी० चौड़ी क्रमशः १० मी० एवं ८ मी० लम्बी क्यारिया बनाये। इस प्रकार एक हेक्टेयर क्षेत्रफल में संकर धान रोपने हेतु लगभग ७० क्यारियॉ की आवश्यकता होती है। क्यारियॉ बनाते समय जल निकास की सुविधा का पूरा ध्यान रखे इसके पश्वात २५० किलोग्राम गोबर की खाद (१ किलोग्राम नत्रजन) ०.६ किलोग्राम फास्फोरस तथा ०.४ किलोग्राम पोटाश प्रति १०० वर्ग मी. की दर से अच्द्दी तरह मिला लीजिए।

बीज शोधन:
नर्सरी डालने से पूर्व बीज शोधन अवश्य कर लें| इसके लिए जहाँ पर जीवाणु झुलसा या जीवाणु धारी रोग की समस्या हो वहाँ पर २५ किग्रा. बीज के लिए ४ ग्राम स्ट्रेप्तोसाइक्लीन या ४० ग्राम प्लांटोमाइसीन को मिलाकर पानी में रात भर भिगो दें | दुसरे दिन छाया में सुखाकर नर्सरी डालें| यदि शाकाणु झुलसा की समस्या क्षेत्रों मैं नही है तो २५ किग्रा. बीज को रात भर पानी में भिगोने के बाद दुसरे दिन निकाल कर अतरिक्त पानी निकल जाने के बाद ७५ ग्राम. थीरम या ५० ग्राम. कार्बेन्डाजीम को ८-१० लीटर पानी में घोलकर बीज में मिला दिया जाये इसके बाद छाया में अंकुरित करके नर्सरी में डाली जाये | बीज शोधन हेतु बायोपेस्टीसाइड का प्रयोग किया जाये|

रोपाई हेतु खेत की तैयारी:
जिस खेत में संकर धान की रोपाई करनी है। उसकी मई जून में अच्द्दी तरह से जुताई की जाये। ताकि खरपतवार एवं हानिकारक कीड़ें नष्ट हो जायें।यदि गोबर खाद डालना है तो रोपाई से लगभग २ सप्ताह पूर्व खेत में १०-१५ दिन टन खाद प्रति हेक्टेयर अच्द्दी प्रकार खाद को मिला दे। खाद बिखरने के बाद एक सिचाई कर जुताईकरनी चाहियें ताकि मिट्‌टी में खाद अच्द्दी तरह से मिल जाय।

नर्सरी की रोपाई:
२५ दिन के २-३ कल्ले वाले १ से २ पौधों की रोपाई २-३ सेमी० गहराई पर २०×१० सेमी० या १५×१५ सेमी० की दूरी पर करे। ताकि प्रति वर्गमीटर मे कम से कम ४५ से ५० पूंजे (हिल) अवश्य रहे। भरे हुए पौधों के स्थान पर उसी संकर प्रजाति के पौधों की रोपाई एका सप्ताह के अंदर अवश्य करें।

उर्वरक आवश्यकता तथा प्रयोग:
उर्वरक की संस्तुत मात्रा मृदा परीक्षण के आघार पर प्रयोग की जानी चाहिये। अधिक लाभ के लिए संकर धान को सामान्य धान से अधिक समन्वित पोषक तत्वों की आवश्यकता पड़ती है। इसके लिए १५० किलोग्राम नत्रजन ७५ किलोग्राम फास्फोरस तथा ६० किलोग्राम पोटाश एवं आवश्यकतानुसार २५ किलोग्राम जिंक सल्फेट प्रति हे० की आवश्यकता होती है। रोपाई के समय नत्रजन की आधी मात्रा तथा फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा डाली जाय। शेष नत्रजन की मात्रा दो बराबर भागों में कल्ले निकलते है। समय तथा रेणते या गोभ बनते (बूटिंग) समय आप ड्रेसिंग के रूप में प्रयोग करना चाहिये।

सिचाई:
सिचाई की पर्याप्त सुविधा होने पर लगभग ५-६ सेमी. पानी खेत मे खडा रहना यदि लाभकारी होता है। धान की अवस्थाओं रोपाई व्यांत बाली निकलते समय तथा दाने भरते समय खेत में सर्वाधिक पानी की आवश्यकता पड़ती है। इन अवस्थाओं पर खेत में ५-६ सेमी० पानी अवश्य भरा रहना चाहियें। देर से निकलने वाले कल्लो को रोकने के लिए ४-५ दिन के लिए खेत से पानी निकाल दीजिये। और कटाई से १५ दिन खेत से पानी निकाल कर सिचाई बंद कर दीजिए।

खरपतवार नियंत्रण:
धान की खरपतवार नष्ट करने के लिए खुरपी या पैडीवीडर का प्रयोग करे। यह कार्य खरपतवार विनाशक रसायनों द्वारा भी किया जा सकता है। रोपाई वाले धान में घास जाति एवं चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार के नियंत्रण हेतु ब्युटाक्लोर ५ प्रतिशत ग्रेन्यूल३०-४० किग्रा. प्रति हे. अथवा बेन्थियोकार्ब १० प्रतिशत गे्रन्यूल १५ किग्रा० या बेन्थियोकार्ब ५० ई.सी. ३ ली. या पेण्डी मैथालीन (३० ई.सी.) ३.३ ली. या एनीलोफास ३० ई.सी. १.६५ लीटर प्रति हे. ३.४ दिन के अन्दर अच्छी नमी की स्थिति में ही करना उचित होगा। केवल चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार के नियंत्रण हेतु २-४ डी सोडियम साल्ट कार ६२५ ग्राम प्रति हेक्टर की दर से प्रयोग किया जा सकता है। इसका प्रयोग धान की रोपाई के एक सप्ताह बाद और सीधी बुवाई के २० दिन बाद करना चाहियें।
रसायनों द्वारा खरपतवार की रोकथाम के लिए यह अति आवश्यक है कि दानेदार रसायनों काप्रयोग करते समय खेत मे ४-५ सेमी० पानी भरा होना चाहिये। फ्यूक्लोरोलिन का प्रयोग २.० ली./हे. रोपाई के पूर्व करना चाहियें।

जीवाणु झुलसा:
पहचान:
इसमें पत्तियों नोक अथवा किनारे से एकदम सूखने लगती है। सूखे हुए किनारे अनियमित एवं टेढे मेढे होते है।

उपचार:
१. बोने से पूर्व बीजोपचार उपयुक्त विधि से करे।
२. रोग के लक्षण दिखाई देते ही यथा सम्भव खेत का पानी निकालकर १५ ग्राम स्ट्राप्टोसाइक्लीन व कॉपर आक्सीक्लोराइड के ५०० ग्राम अथवा १.०० किग्रा. ट्राइकोडार्म विरिडा सम्भव खेत में पानी निकालकर १५ ग्राम स्ट्रेप्टोसाइक्लीन के आवश्यक पानी में घोलकर प्रति हे. २ से ३ छिड़काव करें।
३. रोग लक्षण दिखाई देने पर नत्रजन की टापड्रेसिंग आदि बाकी है तो उसे रोक देना चाहियें।

झोंका रोग:
पहचान:
पत्तियों पर आँख के आकृति के धब्बे बनते है। जो बीज में राख के रंग तथा किनारों पर गहरे कत्थाई रंग के होते है। इनके अतिरिक्त बालियॉ डठलों पुष्पशाखाओं एवं गांठो पर काले भूरे धब्बे बनते है।

उपचार:
१. बोने से पूर्व बीजो २.३ ग्राम थीरम या १.२ ग्राम कार्बेन्डाजिम प्रति किलोग्राम की दर से उपचारित करे।
२. खड़ी फसल पर निम्न मे से किसी एक रसायन का द्दिडकाव करना चाहियें।
३. कार्बेडाजिम १ किग्रा. प्रति हे. की दर से २-३ छिड़काव १०-१२ दिन के अंतराल पर करें।

खैर रोग:
पहचान:
यह रोग जस्ते की कमी के कारण होता है। इसमें पत्तियॉ पीली पड़ जाती है। जिस पर बाद में कत्थई रंग के धब्बे पड़ जाते है।

उपचार:
फसल पर ५ किग्रा. जिंक सल्फेट को २० किग्रा. यूरिया अथवा २.५ किग्रा. बुझे चूने के ८०० लीटर पानी के साथ मिलाकर प्रति हे. छिड़काव करना चाहिये।

मिथ्या कण्डुआ रोग:
बाली निकलते समय कार्बेन्डाजिम ०.१ प्रतिशतघोल ७ दिन के अन्तराल पर दो बार छिड़क दिया जाता है। कर मिथ्या कंडुआ तथा बंट और कुरखुलेरिया जैसे रोगजनक से पैदा होने वाली बीमारियों के प्रकोप को कम किया जा सकता है।

फुदके:
यदि तनों के फुदको की औसत संख्या प्रति पौध ८-१० या इससे अधिक हो तथी कीटनाशी का प्रयोग कीजिए। यदि फसल कल्ला निकलने की अवस्था मे हो तो ३ प्रतिशत दानेदार कार्बोयूरान २०-२५ किलोग्राम प्रति हे.या कारटाप ४ जी. १८.५ किग्रा. की दर से प्रयोग कीजिए। यदि बालियॉ निकल आई हो और हापरबर्न होता हुआ दिखाई दे तो बी.पी.एम.सी. और डी.टी.वी.पी. (एक मिली+एक मिली.) अथवा इथोफेनप्राक्स २० ई.सी. के एक मिली. को एक ली. पानी के हिसाब से घोल तेयार करके घोल आवश्यक मात्रा का प्रयोग करे। घोल की मात्रा खेत के आकार और मशीन पर निर्भर करता है। दवा को हापरर्वन की जगह पर पहले बाहर की ओर से छिड़काव करे। फिर अंदर बढिये। इसके बाद किसी भी कीटनाशी धूल का प्रयोग किया जा सकता है। प्रभावी कीट नियंत्रण के लिए छिड़काव या बुरकाव पौधो के तनों की ओर करना चाहिये।

गन्धी कीट:
गन्धी कीट के नियंत्रण के लिए खेत और उसके आस पास के खरपतवारों को समय समय से नष्ट करते रहना चाहियें। इस कीट का प्रकोप शुरू होने पर ५ प्रतिशत मैनाथियान चूर्ण २०-२५ किलोग्राम प्रति हे. की दर से बुरकना चाहिये। बुरकाव प्रातः अथवा सांय हवा बन्द होने पर करे।

तना द्देदक:
तना द्देदक का प्रकोप कल्ले निकलने की अवस्था में ५ प्रतिशत हो तब ३ प्रतिशत फ्यूराडान २०-२५ किलोग्राम या ४ प्रतिशत कारटाप १७-१८ किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बुरकाव करें। अगर प्रकोप समाप्त न हो तों बालियों के निकलने से पहले उपयोक्त कीटनाशी का एक बुरकाव फिर कीजिये।

कटाई और मड़ाई:
बाली के निचले हिस्से के दाने जब कड़े हो जाये (फूल आने के १५ दिन बाद) उस समय सिंचाई बन्द कर दीजिये। और दानो को सख्त होने दीजिये। फूल आने के लगभग ३०-३५ दिन बाद अथवा दानों में जब नमी लगभग २० प्रतिशत रह जाय उस समय काट लीजिये। समय से कटाई करके दाने के झड़ने से होने वाली हानि से बचा जा सकता है। अगर कम्बाइन से फसल काटना हो तो दाने में नमी १४ प्रतिशत तक आ जाने के प्रतीक्षा कीजियें। कटाई के एक दिन बाद ही मड़ाई कर लीजिये। दानो को द्दाये मे सुखाकर नमी को १२-१४ प्रतिशत तक आने दीजिये। इससे चावल कम टूटता है। और गुणवत्ता बनी रहती है।

भण्डारण:
चावल और धान दोनो का ही भण्डारण किया जा सकता है। अगर धान का भण्डारण करना होतो दानों में नमी १२-१४ प्रतिशत के बीच होना चाहिये। भण्डारण किसी भी ऐसे धातितव/अधावित्तव पात्र में किया जा सकता है जिसमें हवा आसानी से न पार होती है। भण्डारण से पहले भण्डारण पात्र को मैलाथियान ५० ई.सी. (१:१०० डाईल्यूसन) से संक्रमण हीन कर लेना चाहिये। अगर पुराने बोरो का प्रयोग करना होतो उन्हे भी अच्द्दी प्रकार साफ मैलाथियान से क्रमण हीन कर लीजिए।
बेरो को लकड़ी के पटरों पर अथवा एक फीट पर भूसे की सतह पर दीवाल से एक फीट दूरी छोड़कर एक दूसरे के ऊपर रखकर भण्डार गृह को बंद कर दीजिये।

संकर धान की खेती में सावधानियॉ:
संकर धान का बीज एफ-१ एक माह ही बार फसल उत्पादन के लिए प्रयोग में लाया जाता है। संकर धान की फसल से प्राप्त बीज को दूसरे वर्ष इसलिए नही प्रयोग में लाया जाता है क्योकिं दूसरे वर्ष इसकी उपज पहले वर्ष की अपेक्षा घट जाती है। दूसरे वर्ष की फसल में पर्याप्त परिपवक्वता एवं दानो में विभिन्नता आ जाती है। संकर धान की पहली फसल में समरूपता रहती है। दूसरे साल प्रति बाली दानों की संख्या में कमी तथा कलियां भी कम हो जाती है। परिणाम स्वरूप उपज में कभी आ जाती है।
अतःकिसान भाई यदि वास्तव में संकर धान की किस्मों की आनुवांशिक क्षमता का भरपूर लाभ लेना चाहते है । तो इसका बीज हर साल नया खरीदे। इसके कारण यह है कि ये किस्में अस्थाई बंधन से सृजित की जाती है। जिनके ओज क्षमता एक पीढ़ी तक ही समिति रहती है। और यह बंधन दूसरी साल (पीढ़ी) में विघटित हो जाता है।
भारत वर्ष प्रमुख संकर किस्में एंव उनके गुण संलग्न सारिणी में परिलक्षित है।
सारिणी-१

(भारतवर्ष की प्रमुख संकर किस्में एवं उनके गुण):
क्र्र०सं० संकर स्थान/स्रोत वंशावली अवधि दाने का प्रकार उपज टन प्रति/हे.
१ ए.पी.एच.आर-१ आन्ध्र प्रदेश आई.आर.५८०२५३/बजरम १३०-१३५ लम्बा,गोल ७.१४
२ ए०पी०एच०आर-२ आन्ध्र प्रदेश आई.आर.६२५२९ ए/एम १२०-१२५ लम्बा,गोल ७.५२
३ एम.जी.आर.-१ तमिलनाडु आई.आर६२८२९ए/ आई.आर.१०११९८ ११०-११५ मोटा
६.०८
४ के.आर.एच.-१
कर्नाटक आई.आर .५८०२५ए/आई.आर.९७६१.१९१आर. १२०-१२५ लम्बा मोटा
६.०२
५ सी.एन.एच.आर-३ पश्चिम बंगाल आई.आर. ६२८२९ए/आगरया आर. १२५-१३० लम्बा,गोल ६.८०
६ पन्त संकर धान-१ पन्तनगर यू.पी.आर.नैनीताल ९५-१७ए/९२-१३३ १२०-१२५ लम्बा, गोल ६.८०
७ डी.आर.आर.एच.-१ आन्ध्र प्रदेश आई.आर.५८०२५ए/ आई.आर. ४०७५० १२५-१३० लम्बा, गोल ७.३०
८ नरेन्द्र संकर धान-२ एन.डी.यू.टी फैजाबाद आई.आर५८०२५ए/ एन.डी.आर ३०२६ ३ आर १२५-१३० लम्बा,गोल ६.१५
९ के.आर.एच.-२ कर्नाटक आई.आर. ५८०२५ए/ १३०-१३५ क्लम्बा, गोल ७.४०
१० सी.ओ.आर.एच.-२ हैदराबाद १२०-१२२ लम्बा, गोल ६.२५
११ ए.डी.टी.आर.एच.-१ तमिलनाडु ११५-१२० लम्बा गोल ७.१०
१२ साहयाद्री महाराष्ट्र १२५-१३० लम्बा गोल पतला ६.६४
१३ पी.एच.वी.-७१ पायनियर हाईब्रिड १३०-१३५ लम्बा गोल ७.८६
१४ पूसा आर.एच.-१० आई.ए.आर आई १२५-१३० लम्बा गोल ६.८०
१५. नरेन्द्र ऊसर धान -१

 

 

organic farming: 
जैविक खेती: