पोटाश

पोटैशियम (Potassium) एक रासायनिक तत्व है। इसका प्रतीक 'K' है। यह आर्वत सारणी के प्रथम मुख्य समूह का तत्व है। इसके दो स्थिर समस्थानिक (द्रव्यमान संख्या ३९ और ४१) ज्ञात हैं। एक अस्थिर समस्थानिक (द्रव्यमान संख्या ४०) प्रकृति में न्यून मात्रा में पाया जाता है। इनके अतिरिक्त तीन अन्य समस्थानिक (द्रव्यमान संख्या ३८, ४२ और ४३) कृत्रिम रूप से निर्मित हुए हैं।पोटैशियम के यौगिक पुरातन काल से ज्ञात हैं। चरकसंहिता में भस्म से क्षार बनाने की विधि का वर्णन आया है। चीनी तुर्किस्तान मे स्थित बुद्धमंदिर में एक चिकित्सा ग्रंथ की १८९० ई. में प्राप्ति हुई। इस ग्रंथ में यवक्षार (potassium carbonate) का वर्णन आया है। उपर्युक्त बातों से ज्ञात होता है कि पौटैशियम क्षारों का उपयोग पुरातन काल में ओषधि तथा रासायनिक क्रियाओं में होता था।
पोटैशियम तत्व का पृथक्करण १८०७ ई. में सर हंफ्री डेवी ने पोटैशियम हाइड्रॉक्साइड के विद्युद्विश्लैषण द्वारा किया। पोटाश शब्द के आधार पर डेवी ने इस तत्व का नाम पोटैशियम रखा।
पोटैशियम अत्यंत सक्रिय तत्व होने के कारण यौगिक अवस्था में ही पाया जाता है। इसके यौगिक पृथ्वी में समुचित मात्रा में फैले हैं। अनेक चट्टानों में इसके जटिल सिलिकेट उपस्थित रहते हैं। भूपर्पटी में २.६ प्रतिशत पोटैशियम रहता है। समुद्र में इस तत्व के यौगिकों का प्रचुर परिमाण है, परंतु प्रतिशत मात्रा में कम होने के कारण अभी उसका अधिक उपयोग नहीं हो पाया। जर्मनी में स्ट्रैसफुर्ट (Strassfurt) प्रदेश में इसके बहुत समृद्ध स्रोत हैं, जिनमें पोटैशियम क्लोराइड या सिलवाइट (sylvite) बड़ी मात्रा में मैग्नीशियम और कैल्सियम लवणों के साथ मिश्रित दशा में पाया जाता है। संयुक्त राज्य अमरीका, के कैलोफॉनिया प्रदेश में पोटैशियम के लवण पाए जाते हैं। भारत में शोरा (saltpetre), केनाइट (kanite, KCl, MgSO4, 3H2O) और लैंगबीनाइट (langbenie, K2SO4, 2MgSO4) पोटैशियम के मुख्य प्राप्य यौगिक है। ये सांभर झील में समुचित मात्रा में मिलते हैं।

मटर की बुवाई का सही समय

मटर की बुवाई का सही समय

शीतकालीन सब्जियों में मटर की सबसे ज्यादा मांग होती है। आजकल मटर की डिब्बा बंदी भी काफी लोकप्रिय है। इसमें प्रचुर मात्रा में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, फास्फोरस, रेशा, पोटेशियम एवं विटामिन्स पाया जाता है। देश भर मे इसकी खेती व्यावसायिक रूप से की जाती है।

खेत की तैयारी

सब्जी मटर के लिए बलुई दोमट सबसे उपयुक्त मानी जाती है। यह भी ध्यान रहे कि खेत में जल निकास का अच्छा प्रबन्ध हो और भूमि का पीएच मान 6-7 के बीच हो। पहले मिट्टी पलटने वाले हल से तथा बाद में देसी हल से खेत की जोताई कर पाटा चलाए।

बुवाई का समय