गाय

गाय एक महत्त्वपूर्ण पालतू जानवर है जो संसार में प्राय: सर्वत्र पाई जाती है। इससे उत्तम किस्म का दूध प्राप्त होता है। हिन्दू, गाय को 'माता' (गौमाता) कहते हैं। इसके बछड़े बड़े होकर गाड़ी खींचते हैं एवं खेतों की जुताई करते हैं।

भारत में वैदिक काल से ही गाय का विशेष महत्त्व रहा है। आरंभ में आदान प्रदान एवं विनिमय आदि के माध्यम के रूप में गाय उपयोग होता था और मनुष्य की समृद्धि की गणना उसकी गोसंख्या से की जाती थी। हिन्दू धार्मिक दृष्टि से भी गाय पवित्र मानी जाती रही है तथा उसकी हत्या महापातक पापों में की जाती है।

गाय व भैंस में गर्भ से संबन्धित जानकारी
सम्भोग काल - वर्ष भर, तथा गर्मिओं में अधिक
वर्ष में गर्मी के आने का समय - हर 18 से 21 दिन (गर्भ न ठहरने पर) ; 30 से 60 दिन में (व्याने के बाद)
गर्मी की अवधि - 20 से 36 घंटे तक
कृत्रिम गर्भधान व वीर्य डालने का समय - मदकाल आरम्भ होने के 12 से 18 घंटे बाद
गर्भ जांच करवाने का समय - कृत्रिम गर्भधान का टीका कराने के 60 से 90 दिनों में
गर्भकाल - गाय 275 से 280 दिन ; भैंस 308 दिन

फसलों को बीमारियों से बचायें

फसलों को बीमारियों से बचायें

वर्तमान समय में खेत की सतत निगरानी करते हुये फसल में रोगों से बचाव हेतु उपाय कर लें। बताया कि अरहर व धान का पत्ती लपेटक रोग से पीले रंग की सूड़ियाॅ पौधे की चोटी की पत्तियों को लपेटकर सफेद जाला बना लेती हैं और उसी में छिपी पत्तियों को खाती हैं और बाद में फूलों,फलों को नुकसान पहुॅचाती हैं। बचाव हेतु मोनोक्रोटोफास 36 प्रतिषत 1 लीटर या क्यूनालफास 25 प्रतिशत ईसी 1.250 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से 800 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें या नीम का तेल गौमूत्र के साथ स्प्रे करें ।
धान का गन्धी बग- 

धान पर टिड्डियों का हमला

धान पर टिड्डियों का हमला

पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पीएयू) के माहिरों को सर्वेक्षण में पता चला है कि धान और बासमती के कुछ खेतों में टिड्डियों का हमला हुआ है।

माहिरों ने सलाह दी है कि पीएयू की सिफारिशों के अनुसार इस हमले को रोकने के लिए फसलों पर दवा का छिड़काव किया जाए।

 

पंजाब में सफेद पीठ और भूरी पीठ वाला टिड्डा धान की फसल का नुकसान करता है। यह टिड्डे पौधे के तने के पास ही रस चूसते हैं और अक्सर दिखाई नहीं देते। इनके हमले से पौधे के पत्ते ऊपरी तरफ से पीले पड़ने शुरू हो जाते हैं और धीरे धीरे सारा पौधा सूख जाता है।