ट्राइकोडर्मा

ट्राइकोडर्मा पादप रोग प्रबंधन विशेष तौर पर मृदा जनित बिमारियों के नियंत्रण के लिए बहुत की प्रभावशाली जैविक विधि है। ट्राइकोडर्मा एक कवक (फफूंद) है। यह लगभग सभी प्रकार के कृषि योग्य भूमि में पाया जाता है। ट्राइकोडर्मा का उपयोग मृदा - जनित पादप रोगों के नियंत्रण के लिए सफलतापूर्वक किया जा सकता है।ट्राइकोडर्मा एक घुलनशील जैविक फफुंदीनाशक है जो ट्राइकोडर्मा विरडी या ट्राइकोडर्मा हरजिएनम पर आधारित है। ट्राइकोडर्मा फसलों में जड़ तथा तना गलन/सडन उकठा(फ्यूजेरियम ऑक्सीस्पोर्म्, स्केल रोसिया डायलेकटेमिया) जो फफूंद जनित है, में फसलों पर लाभप्रद पाया गया है। धान,गेंहू, दलहनी फसलें, गन्ना, कपास, सब्जियों फलों एवं फल व्रक्षो पर रोगों से यह प्रभावकारी रोकथाम करता है। ट्राइकोडर्मा के कवक तन्तु फसल के नुकसानदायक फफूंदी के कवक तन्तुओं को लपेटकर या सीधे अंदर घुसकर उनका जीवन रस चूस लेते हैं और नुकसानदायक फफूंदों का नाश करते हैं  इसके अतिरिक्त भोजन स्पर्धा के दुवारा तथा कुछ ऐसे विषाक्त पदार्थ का स्राव करते हैं जो बीजों के चारों ओर सुरक्षा दीवार बनाकर हानिकारक फफूंदों से सुरक्षा देते हैं।
ट्राइकोडर्मा से बीजों में अंकुरण अच्छा होकर फसलें फफूंद जनित रोगों से मुक्त रहती हैं एवं उनकी नर्सरी से ही वृद्धि अच्छी होती है।धान, गेहूं, दलहनी, औषधीय, गन्ना और सब्जियों की फसल में प्रयोग करने से उसमें लगने वाले फफूंद जनित तना गलन, उकठा आदि रोगों से निजात मिल जाती है। इसका प्रभाव फलदार वृक्षों पर भी लाभदायक है।
किसान अपनी फसलों सब्जियों को रोगों से बचाने के लिए बहुतायत में रासायनिक दवाओं का प्रयोग करते है। इससे जहां एक ओर फसल की लागत बढ़ जाती है। वहीं फसलों में विष का प्रभाव भी किसी न किसी रूप में रहता है। आधुनिक तकनीकी में ट्राईकोडर्मा का उपचार किसानों के लिए हर हाल में फायदेमंद है। इसकी कीमत या लागत भी रासायनिक दवाईयों से काफी कम है। किसान भाई पांच से दस ग्राम ट्राइकोडर्मा को 25 मिली लीटर पानी में घोल लें। यह घोल एक किलोग्राम बीज को शोधित करने के लिए पर्याप्त है। धान की नर्सरी और अन्य कन्द वाली फसलों में दस ग्राम ट्राइकोडर्मा का घोल एक लीटर पानी में बना लें। नर्सरी पौध को तैयार घोल में आधे घंटे तक भिगो ले, इसके बाद रोपाई कर दें। प्रति एकड़ खेत में एक किलो ग्राम ट्राइकोडर्मा सौ लीटर पानी में घोलकर उसका छिड़काव कर दें। भूमि शोधन के लिए एक किलो ग्राम ट्राइकोडर्मा सौ किलो ग्राम गोबर की खाद में मिलाकर एक सप्ताह तक छाया में रख दें। उसके बाद प्रति एकड़ के हिसाब से खेतों में मिला दें।
हमारे देश में फसलों को बीमारियों से होने वाले कुल नुकसान का  50 प्रतिशत से भी अधिक मृदा- जनित पादप रोग कारकों से होता हैं, जिसका नियंत्रण अन्य विधियों द्वारा सफलतापूर्वक नहीं हो पा रहा है। इसलिए ट्राइकोडर्मा की विभिन्न प्रजातियों से रोंगों का नियंत्रण प्रभावशाली रूप से किया जाता हैं इनमें से ट्राइकोडर्माहरजीनियम एवं विरिडी का प्रयोग होता है।

कैसे करें आलू की खेती की तैयारी

कैसे करें आलू की खेती की तैयारी

इसे सब्जियों का राजा कहा जाता है  भारत में शायद ही कोई ऐसा रसोई घर होगा जहाँ पर आलू ना दिखे । आलू की बोआई का समय आ चुका है। किसान बोआई की तैयारी में जुट भी चुके हैं। कहीं खेतों की तैयार किया जा रहा है तो कहीं बोआई को लेकर किसान बीज आदि जुगाड़ करने में लगे हैं। ऐसे में किसानों को बोआई करते समय कुछ सावधानी बरतनी जरूरी होगी। ताकि उनकी फसल सुरक्षित रहे व पैदावार बढ़े।