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फसल को किटक तथा रोग मुक्त बनाने का घरेलु उपाय.
किसान भाई को ऐसा लगता है की, खेती करना है तो जहरीली दवाओं का छिड़काव करना ही पडेगा, जबकि वास्तविकता यह नहीं है, फसल के स्वास्थ्य का सम्बन्ध मिटटी के स्वास्थ्य से सम्बंधित है, मिटटी का स्वास्थ्य सुधरते ही फसल पर आनेवाली बीमारियां अपने आप खत्म हो जाती है, इसकी पूरी जानकरी समझकर आप अपनी फसलों को किटक तथा रोगों से मुक्त बना सकते है |
खेती रासायनिक हो या आर्गनिक फसलों को मिटटी से जो भोजन मिलता है, वह सूक्ष्म जीवाणुओं के माध्यम से मिलता है, जिस मिटटी में सूक्ष्म जीवाणु कम से कम हो जाते है, उस मिटटी को बंजर, नापिक अथवा क्षारपड़ कहते है, उसमें कितना भी रासायनिक खाद डालो फिर भी कुछ पैदा नहीं होता
उपजाऊ मिटटी या जिस मिटटी में रासायनिक खाद कम डाला गया हो, उसमें १ ग्राम मिटटी में १० करोड़ सूक्ष्म जीवाणु होते है, रासायनिक खाद की मदत से खेती होनेवाली मिटटी में आज १ करोड़ या उससे कम जीवाणु है |
गोबर का खाद ( गुजराती में छानिया खाद ) डालने के बाद दूसरे साल अच्छी फसल क्यों आती है, क्योंकि गोबर का खाद सड़ने के बाद उसमें से जो कार्बन निकलता है, वह हमारे जीवाणुओं का भोजन है, दूसरे साल जीवाणुओं को भोजन मिलता है, इसलिए जीवाणुओं की संख्या बढ़ती है, परिणाम स्वरूप फसलों को ज्यादा भोजन मिलने के कारण ज्यादा उत्पादन मिलता है |
उपरोक्त ३ बातों से समझ में आता है की, हमारी फसलों को भोजन प्रदान करनेवाले सूक्ष्म जीवाणुओं की संख्या १० गुना कम हो गई है, इसलिए हम रासायनिक खाद ज्यादा मात्रा में डालते है, तब भी फसल को उतना ही मिलता है, जितना जीवाणु उपलब्ध कराते है,मतलब आज की खेती व्यवस्था में जीवाणुओं की संख्या कम हो जाने के कारण फसलों को भोजन कम मिल रहा है |
आवश्यकता से कम भोजन मतलब कुपोषण, कुपोषण के कारण फसलें कमजोर हो जाती है, इसलिए उनपर किटक तथा रोगों का अटेक होता है, जहरीली दवाओं के छिड़काव में कुछ किटक तो मर जाते है, परन्तु जो किटक छिड़काव के बाद जिन्दा रह जाते है, उनमें जहरीली दवाओं की प्रतिकारशक्ति आ जाती है, फिर उनको मारना मुश्किल हो जाता है |
एक और कारण है कुपोषण का, रासायनिक खादों के कारण मिटटी कड़क हो जाने से, सूक्ष्म जीवाणु मर जाने से, मिटटी में आक्सीजन समाप्त हो जाने से, विषाणु पैदा होते है, ये विषाणु फसल की जड़ों से भोजन की चोरी करते है, परिणाम स्वरूप फसलों का कुपोषण होता है |
अब एक बात आप समझ लीजिए, की सिर्फ कुपोषण के कारण हमारी फसलों पर किटक तथा रोगों का अटेक होता है, इतना ही नहीं, फसल के पत्ते छोटे-छोटे आते है, पत्तों का कलर लाइट ग्रीन या पीला हो जाता है, फसल की ग्रोथ अपेक्षा के मुताबिक नहीं होती, शाखाओं की संख्या कम होती है, अचानक फूल गिरने लगते है, अचानक फल गिरने लगते है, परिणाम स्वरूप उत्पादन कम आता है
उपरोक्त सभी लक्षण है, कुपोषण के, और हम कुपोषण का इलाज नहीं करते, हम लक्षणों का इलाज करते है, लक्षणों का इलाज करते-करते किसान भाई कंगाल बन गया, आत्महत्या करने लगा, जरुरत है मुख्य कारण का इलाज करने की, मतलब फसल के कुपोषण को रोकने की.
लक्षणों का इलाज जिंदगी भर करना पड़ेगा और अगर आप बिमारी का इलाज कर देंगे, तब एक बार का इलाज और जिंदगी भर बिमारी से मुक्ति, आज मार्किट में जो कम्पनियाँ है वह नहीं चाहती की, आपकी फसलों की बिमारी हमेशा के लिए समाप्त हो जाय, क्योंकी वो जिंदगी भर आपको उत्पादन बेचना चाहते है |
फसल के कुपोषण को रोकने का कारगर तरीका है, मिटटी में ट्रायकोडर्मा ट्रीटमेंट, इसे आपको खेत में ही बनाना है, इसकी विधि अलग से बताई गई है, आप २५० रुपये के खर्च में ५ एकड़ जमीन की फसल को कुपोषण मुक्त बना सकते हैं.