अब तो बंद करो जहर की खेती

  जहर की खेती

 

हरित क्रांति के वक्त खाद्यान्न की पैदावार का संकट था इसलिए रासायनिक खाद और पेस्टिसाइड को प्रोत्साहन दिया गया। लेकिन उसके दुष्परिणामों पर वक्त रहते गौर नहीं किया गया। हरित क्रांति के अगले दस साल में ही इसका बुरा असर भी दिखने लगा था।

 

वैज्ञानिकों ने "मिड टर्म" करेक्शन नहीं किया। इन्होंने पैदावार का जो संकट आ रहा था, उसका समाधान ज्यादा से ज्यादा रासायनिक खाद ही बता डाला।

 

रासायनिक खाद जमकर इस्तेमाल होने लगे और उसका परिणाम ये हुआ है कि दुनिया में आज मानव शरीर और पर्यावरण को बहुत नुकसान हो रहा है। अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान लिया गया है कि ग्लोबल वार्मिग के लिए जिम्मेदार ग्रीन हाउस गैसों में 41 फीसदी कृषि और वन का योगदान है। कृषि में होने वाले रसायनों और पेस्टिसाइडों के कारण यह हो रहा है।

 

जमीन की उर्वरता खत्म हो गई है। आज रासायनिक खाद नहीं डालें तो जमीन की खुद की उर्वर क्षमता तो खत्म ही हो गई है। जितना भी रासायनिक खाद डालते हैं, उसमें से 60 फीसदी पानी के साथ नीचे जमीन में जाता है। पानी में नाइट्रोजन मिलकर नाइटे्रट बनाता है और यह हमारी किडनी, लीवर के लिए हानिकारक है। यानी पानी में प्रदूषण गहरा रहा है।

 

इसके साथ ही यह जमीन के माइक्रोऑर्गेनिज्म को भी खत्म करता है। मसलन केंचुआ जमीन में ही पनपता था, आजकल ये खत्म हो गए हैं। इसका कारण रहा रासायनिक खाद। ये जमीन की उर्वरता बढ़ाते थे पर खेती मेंजब 120 किलो नाइट्रोजन डाला जाएगा तो जमीन का पीएच स्तर बहुत बढ़ जाता है और केंचुए समेत माइक्रोऑर्गेनिज्म नष्ट हो जाते हैं।

 

यूरेनियम खा रहे हैं हम

डीएपी फर्टिलाइजर में तो यूरेनियम भी पाया गया है। कोयले में जितनी यूरेनियम की मात्रा होती है, उससे दस गुणा डीएपी में होती है। यानी मानव शरीर में यूरेनियम भी जा रहा है। साथ ही कोबाल्ट, निकल भी मानव शरीर में प्रवेश कर रहे हैं। जब हम यह दूषित खाना खा रहे हैं तो इसके नकारात्मक असर होने ही हैं। इसलिए कैंसर जैसी बीमारियां बढ़ रही हैं।

 

रासायनिक खाद ने पैदावार तो बढ़ा दी पर खाद्यान्नों की पोषक क्षमता कम हो गई है। यही वजह है कि बच्चे कुपोषण का शिकार हो रहे हैं। गेहूं की पुरानी किस्मों में कॉपर की मात्रा अधिक होती थी।

 

लेकिन पैदावार बढ़ाने के चक्कर में नई किस्मे बनाई गईं और अध्ययनों में पाया गया कि कॉपर की मात्रा 80 फीसदी तक गिर गई। देसी गेहूं के अभाव में कॉलेस्ट्रॉल की मात्रा मानव शरीर में बढ़ने लगी है। इसलिए अब क्यों न लोगों को बताया जाए कि आज हमें देसी खाद्यान्न की ओर मुड़ना होगा।

 

99.99 % पेस्टिसाइड पर्यावरण में

अब कीटनाशकों की बात। एक अमरीकी वैज्ञानिक हैं, डेविड पाइमेंटल। इन्होंने 1970 के दशक में एक रिपोर्ट छापी थी। इसमें लिखा गया था कि 99.99 फीसदी पेस्टिसाइड वातावरण में जाते हैं। यानी यह मालूम होते हुए कि पेस्टिसाइड वातावरण में जाएंगे और पर्यावरण एवं मानव स्वास्थ्य पर असर डालेंगे, हमने उस वक्त कोई उपाय नहीं किया।

 

आज भयंकर बीमारियां हम झेल रहे हैं। सिर्फ पैदावार बढ़ाने के फेर में अंधे होकर कीटनाशकों का जहर पर्यावरण और मानव शरीर में घुलने दिया। आज जब दुुनिया ग्रीन हाउस गैसों समेत तमाम बीमारियों से जूझ रही है तो क्यों न इस जहर की खेती को बंद किया जाए। जब भी विदेश से ऎसी कोई तकनीक आती है तो वह पैकेज में आती है। हमारी सरकारें उन पर सब्सिडी देती हैं और उन्हें बढ़ावा दिया जाता है। हमारी सरकारें रासायनिक खादों पर सब्सिडी देती हैं। किसानों को लुभाया जाता है। लेकिन सरकारें ऑर्गेनिक खेती पर सब्सिडी नहीं देती। इसलिए इसके महंगे होने का जुमला छोड़ दिया गया। बाजार, बैंकिंग और सरकार की नीतियां एक ही दिशा में चलती दिखाई देती हैं। मसलन, गांवों में क्रॉस ब्रीड गाय पर ही लोन दिया जाता है।

 

देसी गाय पर लोन ही नहीं मिलता। यही स्थिति ऑर्गेनिक खेती के साथ है। इसे बढ़ावा देने के लिए सरकार ने कुछ किया ही नहीं। रासायनिक खेती के खिलाफ ऑर्गेनिक खेती को नीतिगत, सब्सिडी और बाजार का समर्थन मिले, किसानों और लोगों को जागरूक किया जाए कि न सिर्फ स्वास्थ्य बचेगा बल्कि वातावरण भी साफ रहेगा तो इस जहर की खेती को रोका जा सकता है।

 

ऑर्गेनिक खेती से पैदावार कम होने की बात तो सिर्फ बहाना है। अब वैश्विक अध्ययन सामने आ चुके हैं। आईएएएसटीडी नामक अध्ययन (जिसका खुद भारत भी सिग्नेटरी है) कहता है कि हमें गैर-रासायनिक खेती पर जाना होगा। पैदावार कम होने की बात को यह रिपोर्ट भी खारिज करती है।

 

गैर रासायनिक पर हो सब्सिडी

रासायनिक खेती से भूमि में असंुतलन बढ़ता जा रहा है। इसमें जरूरी तत्वों की लगातार कमी होती जा रही है। आज रासायनिक खाद की बजाय देसी गाय का गोबर के इस्तेमाल पर जोर दिया जाना चाहिए। देसी गोबर बहुत लाभप्रद है। विदेशी गाय के गोबर की तुलना में इसमें 50 फीसदी ज्यादा जरूरी तत्व होते हैं। लेकिन उद्योग और मल्टीनेशनल कम्पनियां गैर रासायनिक खेती को प्रोत्साहन में अड़ंगा लगाती रही हैं।

 

उसका परिणाम हम भुगत रहे हैं। अमरीका में रासायनिक खेती से गैर रासायनिक खेती की ओर जाने पर सब्सिडी दी जाती है। हमारे यहां उलटा हो रहा है। भारत में सरकार सहकारिता के माध्यम से ऑर्गेनिक खेती को बढ़ावा दे सकती है।

 

वहां सस्ता देसी खाद्यान्न मुहैया कराया जा सकता है। अमरीका की तर्ज पर किसानों को घरेलू खाद, बायो खाद पर सहायता दी जा सकती है। देसी बीज पर सब्सिडी दी जाए। साथ ही सरकार ऑर्गेनिक खरीद की नीति भी लाए। जिस दिन किसान को मालूम लग जाएगा कि कैमिकल फर्टिलाइजर से सब्सिडी हट गई है तो वह खुद ब खुद ऑर्गेनिक खेती का रूख कर लेगा।