कृषि उत्पादन में कीटनाशकों की भूमिका

 कृषि उत्पादन में कीटनाशकों की भूमिका

कीटनाशक रासायनिक या जैविक पदार्थों का ऐसा मिश्रण होता है जो कीड़े मकोड़ों से होनेवाले दुष्प्रभावों को कम करने, उन्हें मारने या उनसे बचाने के लिए किया जाता है। इसका प्रयोग कृषि के क्षेत्र में पेड़ पौधों को बचाने के लिए बहुतायत से किया जाता है। कीटनाशकों को उनके उपयोग और अमल के तरीकों के अनुसार वर्गीकृत किया जा सकता है जैसे कीटनाशक, कवकनाशी, शाकनाशी इत्यादि |
उर्वरक पौध की वृद्धि में मदद करते हैं जबकि कीटनाशक कीटों से रक्षा के उपाय के रूप में कार्य करते हैं। कीटनाशक कीट की क्षति को रोकने, नष्टर करने, दूर भगाने अथवा कम करने वाला पदार्थ अथवा पदार्थों का मिश्रण होता है। कीटनाशक रसायनिक पदार्थ (फासफैमीडोन, लिंडेन, फ्लोरोपाइरीफोस, हेप्टासक्लोथर तथा मैलेथियान आदि) अथवा वाइरस, बैक्टी्रिया, कीट भगाने वाले खर-पतवार तथा कीट खाने वाले कीटों, मछली, पछी तथा स्तेनधारी जैसे जीव होते हैं।
बहुत से कीटनाशक मानव के लिए जहरीले होते हैं। सरकार ने कुछ कीटनाशकों पर प्रतिबंध लगा दिया है जबकि अन्यल के इस्तेंमाल को विनियमित (रेगुलेट) किया गया है।
भारतीय कृषि क्षेत्र में 1950 के दशक में कीटनाशकों का इस्तेमाल नगण्य था जिसमें प्रथम पंचवर्षीय योजना के शुरुआत में कीटनाशकों का केवल 100 टन का उपयोग किया गया | 2010-11 में कीटनाशकों(प्रौद्योगिक स्तर की सामग्री ) की खपत 55.54 हज़ार टन रही | हालांकि, यहाँ कीटनाशकों की खपत के स्तर में व्यापक अंतर-राज्य मतभेद हैं।

कीटनाशकों के  प्रभाव
हाल के दिनों (विशेष रूप से पिछले दो दशकों के दौरान) में, कीटनाशकों के बेरोकटोक उपयोग के कारण स्वास्थ्य पर खतरे तथा पर्यावरणीय समस्याओं की तरफ ध्यान गया है |  स्वास्थ्य को दोनों प्रकार से खतरा है प्रत्यक्ष व् अप्रत्यक्ष | 
कीटनाशकों के उपयोग के साथ एक और समस्या यह है कि लक्षित कीट उनके प्रति प्रतिरोधक  क्षमता विकसित कर रहे हैं । नतीजतन, अधिक से अधिक जहरीले रसायनों की खुराक का प्रयोग ज्यादा से ज्यादा किया जा रहा है | उर्वरकों और कीटनाशकों के उपयोग के कारण पौधों में कई शारीरिक परिवर्तन हो रहे हैं जिससे कई कीटों का गुणन और प्रसार हो रहा है | उपरोक्त कारणों को देखते हुए अब ना सिर्फ कीट उन्मूलन की आवश्यकता है परन्तु इसके अलावा कम से कम  पारिस्थितिक नुकसान के साथ कीटनाशी रसायनों का किफायती उपयोग भी शामिल है |

वर्तमान में पौध संरक्षण प्रणाली में उपयोग होने वाले तीन प्रमुख पहलु निम्न हैं - एकीकृत कीट प्रबंधन के माध्यम से कीट और रोग नियंत्रण (आईपीएम) योजनाएँ , टिड्डों की  निगरानी और नियंत्रण, और पौधे और बीज संगरोध | एकीकृत कीट प्रबंधन में  कीट निगरानी, कीटों के जैविक नियंत्रण को प्रोत्साहन, प्रदर्शन का आयोजन, आईपीएम प्रौद्योगिकी के बारे में प्रशिक्षण व जागरूकता को बढ़ावा देना शामिल है | आईपीएम प्रौद्योगिकी सुरक्षित कीटनाशकों के उपयोग को प्रोत्साहित करती है जिसमें वान्स्पतिक (नीम आधारित ) तथा जैव-कीटनाशक भी शामिल हैं |

भारत में इस्तेमाल होने वाले आम कीटनाशक क्या हैं?
भारत में इस्तेमाल होने वाले कीटनाशकों को रासायनिक प्रकृति के आधार पर पांच प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है।

1. ऑरगेनोक्लोराइड्स(Organochlorides): - ये अणु प्रति क्लोरीन की कई परमाणुओं के साथ मिलकर बने कार्बनिक यौगिक हैं। डीडीटी, BHC, एल्ड्रिन, डीएल्ड्रिन और एनड्रीन ये सब क्लोरीन कीटनाशक हैं । डीडीटी सबसे पुराना और सबसे लोकप्रिय कृत्रिम कीटनाशक है। BHC अकेले कुल कीटनाशक की मात्रा के 50% कीटनाशक है | एल्ड्रिन का प्रयोग  इमारतों की नींव/ तल में दीमक के हमलों को रोकने के लिए किया जाता है | ये सभी रसायन लिपोफिलिक (lipophillc) हैं और ये जानवरों की वसा ऊतकों में जाकर जैवसंचित हो जाते हैं |

2. ओर्गेनोफोस्फेट्स (Organophosphates): - मैलाथियॉन का प्रयोग मलेरिया रोधी योजनाओं में किया जाता है और पैराथियॉन (Parathion) फोस्फोरिक एसिड के साथ मिलकर बना कार्बनिक यौगिकों के यौगिक हैं | फेनिट्रेत्थियॉन( Fenitrethion),  मैलाथियॉन और पैराथियॉन तंत्रिका तंत्र पर बहुत प्रभावकारी होते हैं |

3. कार्बामेट (Carbamates): - ये एसिटीकॉलिन (acetylcholine) के समान एक रासायनिक संरचना वाले यौगिक हैं। कार्बोफ्युरेन (furadon), प्रोपोक्स़र (baygon) कार्बामेट कीटनाशक हैं ।

4.प्य्रेथ्रोईडस (Pyrethroids): - ये प्य्रेथिन (pyrethin,) से निकले संश्लेषिक उत्पाद हैं, गुलदाउदी सिनेरारिफोलियम से निकला गया एक संयंत्र रासायनिक |

5. त्रियाज़ींस (Triazines): - ये यूरिया से उत्पन्न हुए सिमाजीन (simazine),अल्ट्राजीन (altrazine) जैसे यौगिक हैं। ये प्रभावशाली शाकनाशी (herbicides) हैं जिन्हें  चाय, तंबाकू और कपास की निराई के खिलाफ इस्तेमाल किया जाता है |

कीटनाशकों के हानिकारक प्रभाव:-
आज हमारे देश के उत्तर-पूर्वी राज्यों के खेती में कीटनाशकों का अंधाधुंध प्रयोग हो रहा है। हमारे खाने में मीठा जहर परोसा जा रहा है, जो सिंचाई जल और कीटनाशकों के जरिए अनाज, सब्जियों और फलों में शामिल हो रहा है। कीटनाशक के ज्यादा इस्तेमाल से भूमि की उर्वरा शक्ति कम हो रही है तथा यह कीटनाशक जमीन में रिसकर भूजल को जहरीला बना रहा है। नदियों तालाबों तथा अन्य जलस्रोतों में बहकर वहां के पानी को जहरीला बनाता है जिससे इंसानों के साथ-साथ पशु-पक्षियों और पर्यावरण को खासा नुकसान पहुंच रहा है I

जैविक कीटनाशकों से लाभ:-
•  जीवों एवं वनस्पतियों पर आधारित उत्पाद होने के कारण, जैविक कीटनाशक लगभग एक माह में भूमि में मिलकर अपघटित हो जाते है तथा इनका कोई भी अंश अवशेष नही रहता | यही कारण है इन्हें परिस्तिथतकीय मित्र के रूप में जाना जाता है | 
•  जैविक कीटनाशक केवल लक्षित कीटों एवं बीमारियों को मारते है जब कि कीटनाशक से मित्र कीट भी नष्ट हो जाते है |
•  जैविक कीटनाशकों के प्रयोग के तुरंत बाद फलियों, फलों, सब्जियों की कटाई कर प्रयोग में लाया जा सकता है जबकि रासायिनक कीटनाशकों के अवशिष्ट प्रभाव को कम करने के लिए कुछ दिनों की प्रतीक्षा करनी पड़ती है | 
•  जैविक कीटनाशकों के सुरक्षित, हानिरहित तथा परिस्तिथतकीय मित्र होने के कारण विश्व में इनके प्रयोग से उत्पादित चाय, कपास, फल, सब्जियां, तम्बाकू तथा खाद्यानों, दलहन एवं तिलहन की मांग एवं मूल्यों में वृद्धि हो रही है, जिसका परिणाम यह है कि कृषकों को उनके उत्पादों का अच्छी कीमत मिल रही है | 
•  जैविक कीटनाशकों के विषहीन एवं हानिरहित होने के कारण ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में इनके प्रयोग से आत्महत्या की सम्भावना शून्य हो गयी है जबकि कीटनाशी रसायनों से अनेक आत्म हत्यांए हो रही है | 
•  जैविक कीटनाशक पर्यावरण, मनुष्य एवं पशुओं के लिए सुरक्षित तथा हानिरहित है | इनके प्रयोग से जैविक खेती को बढ़ावा मिलता है जो पर्यावरण एवं परिस्तिथतकीय का संतुलन बनाये रखने में सहायक है | 
हरित क्रान्ति की सफलता के बाद भारत में कीटनाशकों के उपयोग में काफी वृद्धि हुई है |हालांकि कीटनाशकों के उपयोग से भारतीय फसलों की रक्षा ज़रूर हुई है, परन्तु साथ ही साथ यह पर्यावरण क्षरण तथा  इंसान और जानवरों के लिए खतरे का कारण बन गया है।