कृषि ही है बेरोजगारी का अन्तिम समाधान

कृषि ही  है बेरोजगारी का अन्तिम समाधान

बेरोजगारी का दंश झेल रहे युवा कृषि जागरूकता अभियानों का लाभ उठाकर फल, सब्जियों, मत्स्य पालन, मुर्गी पालन एवं मशरूम के उत्पादन द्वारा आत्मनिर्भरता की ओर कदम बढ़ाने के साथ-साथ प्रदेश को अनाज, सब्जियों एवं फल के मामले में आत्मनिर्भर बनाने में अपना सक्रिय योगदान दे सकते हैं…

अस्तित्व में आने के शुरुआती वर्षों में कृषि, शिक्षा, सड़क, औद्योगिक एवं आधारभूत संरचनाओं के क्षेत्र में हिमाचल प्रदेश एक पिछड़ा हुआ राज्य माना जाता था। लेकिन बीते 65 वर्षों में हालात बड़ी तेजी से बदले हैं। आज हिमाचल भारतीय संघ के राज्यों में प्रति व्यक्ति आय के मामले में चौथे स्थान पर खड़ा है। शिक्षा, सड़क एवं अन्य विकासात्मक पैमानों पर गत वर्षों में प्रदेश सरकार द्वारा हासिल 85 से ज्यादा अवॉर्ड प्रदेश की सफलता की कहानी को बयां करने के लिए पर्याप्त हैं। जहां तक प्रदेश में कृषि क्षेत्र में प्रगति का सवाल है, तो पिछले कुछ वर्षों से इस क्षेत्र में जहां व्यापक प्रगति देखने को मिल रही है, वहीं कुछ चुनौतियां भी हमारे किसानों के समक्ष नजर आती हैं। आज हिमाचली किसानों को सर्वाधिक नुकसान लावारिस पशुओं, उत्पाती बंदरों और सूअरों की टोलियां पहुंचा रही हैं, जिसकी वजह से प्रदेश का काफी बड़ा खेती योग्य क्षेत्र बंजर बनकर रह गया है। सरकार तो इस समस्या से निजात पाने हेतु भरसक प्रयास कर रही है, लेकिन अभी राहत मिलती नहीं दिखाई पड़ रही है।

हिमाचल प्रदेश के कृषि विभाग ने केंद्र की योजनाओं और सहायता के अलावा अपनी तरफ  से भी कृषि कार्यों को बढ़ावा देने का एक बड़ा कार्यक्रम अपने हाथों में लिया हुआ है। इन सभी स्कीमों के क्रियान्वयन के सकारात्मक परिणाम भी हासिल हो रहे हैं। 1951-52 में प्रदेश में कुल अनाज उत्पादन 200 हजार टन था, जो कि 2014-15 में बढ़कर 1619.77 हजार टन पर जा पहुंचा है। वर्तमान में कृषि विभाग द्वारा खरीफ  एवं रबी फसलों के लिए 38 बीज उन्नतिकरण केंद्रों में प्रतिवर्ष 35 सौ से चार हजार क्विंटल अनाज, दालों एवं सब्जियों का बीज उत्पादित किया जा रहा है। किसानों को मुफ्त मृदा जांच सुविधाएं उपलब्ध करवाने के लिए 11 मृदा जांच प्रयोगशालाओं के अलावा चार मोबाइल लैब भी कार्यरत हैं। गत वर्ष 991 विक्रय केंद्रों के माध्यम से लगभग 150 मीट्रिक टन कीटनाशकों का वितरण किसानों के बीच किया गया। शिमला में कीटनाशक जांच प्रयोगशाला के अलावा पालमपुर में एक बायो कंट्रोल लैब स्थापित की गई है। गत वर्ष राज्य में 13.5 लाख टन सब्जियों का उत्पादन एवं वितरण किया गया था। हमीरपुर, सुंदरनगर और शिमला में तीन गुणवत्ता नियंत्रण केंद्रों की स्थापना की गई है, जहां बीजों, उर्वरकों और कीटनाशकों की जांच की जाती है। फसलों के विविधीकरण परियोजना पर भी काम जारी है। इसके अलावा कृषि कार्यों को बढ़ावा देने के लिए कृषि विभाग द्वारा ‘रूरल इंफ्रास्ट्रक्चर डिवेलपमेंट फंड’ परियोजना के अंतर्गत सिंचाई एवं जल उपलब्धता को मजबूती देने में जुटा हुआ है। स्प्रिंकल, ड्रिप, फार्म टैंक, उथले कुओं, ट्यूबवेल, पंपिंग मशीनरी इत्यादि लगाने हेतु 80 प्रतिशत तक अनुदान राशि प्रदान की जा रही है।

‘डा. वाईएस परमार किसान स्वरोजगार योजना’ के तहत हिमाचल प्रदेश सरकार ने पोलीहाउस एवं माइक्रो सिंचाई परियोजना द्वारा कृषि को बढ़ावा देने का लक्ष्य रखा है। 2014-15 से 2017-18 की अवधि के दौरान कुल 111.19 करोड़ रुपए की राशि से 4700 पोलीहाउस और 2150 माइक्रो इरिगेशन सिस्टम को स्थापित किया जाएगा। ‘मुख्यमंत्री किसान एवं खेतीहर मजदूर जीवन सुरक्षा योजना’ के अंतर्गत जिन किसानों एवं मजदूरों ने कृषि कार्यों हेतु अपने ट्रेक्टर्स, पावर ट्रिलर्स, पावर थै्रशर्स, कॉफकटर्स, बीडर्स, शक्तियुक्त हल और अन्य तकनीकी एवं फार्म मशीनरी का कृषि विभाग के पास अपना पंजीकरण करवा रखा है, को किसी भी आकस्मिक दुघर्टना की स्थिति में 14 वर्ष से ऊपर की आयु वाले किसानों एवं खेतीहर मजदूरों को मृत्यु की स्थिति में एक लाख 50 हजार एवं पूर्ण अपंगता की स्थिति में 50 हजार रुपयों की सहायता राशि सरकार द्वारा प्रदान की जा रही है। वेजिटेबल नर्सरी प्रोडक्शन, उत्तम चारा उत्पादन योजना द्वारा भी कृषि कार्यों को बढ़ावा देने की दिशा में कृषि विभाग प्रयासरत है। जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकार ने 2010 में एक नई नीति का श्रीगणेश किया था, जिसके अंतर्गत 30 हजार, 110 किसानों ने 17 हजार, 848 हेक्टेयर जमीन पर जैविक खेती पद्धति द्वारा विभिन्न फसलों, सब्जियों को उगाया है। यह समय की मांग है कि कृषि विभाग अपनी योजनाओं एवं कार्यक्रमों का व्यापक प्रचार-प्रसार करे और वरिष्ठ माध्यमिक पाठशालाओं एवं महाविद्यालयों के विद्यार्थियों के लिए कार्यशालाओं एवं कृषि यंत्रों का प्रस्तुतिकरण करके युवाओं को स्वरोजगार अपनाकर कृषि क्षेत्र में आने हेतु प्रोत्साहित करे। बेरोजगारी का दंश झेल रहे युवा कृषि जागरूकता अभियानों का लाभ उठाकर फल, सब्जियों, मत्स्य पालन, मुर्गी पालन एवं मशरूम के उत्पादन द्वारा आत्मनिर्भरता की ओर कदम बढ़ाने के साथ-साथ प्रदेश को अनाज, सब्जियों एवं फल के मामले में आत्मनिर्भर बनाने में अपना सक्रिय योगदान दे सकते हैं।

 

( लेखक - अनुज कुमार आचार्य   )