कैसे करें आलू की खेती की तैयारी

कैसे करें आलू की खेती की तैयारी

इसे सब्जियों का राजा कहा जाता है  भारत में शायद ही कोई ऐसा रसोई घर होगा जहाँ पर आलू ना दिखे । आलू की बोआई का समय आ चुका है। किसान बोआई की तैयारी में जुट भी चुके हैं। कहीं खेतों की तैयार किया जा रहा है तो कहीं बोआई को लेकर किसान बीज आदि जुगाड़ करने में लगे हैं। ऐसे में किसानों को बोआई करते समय कुछ सावधानी बरतनी जरूरी होगी। ताकि उनकी फसल सुरक्षित रहे व पैदावार बढ़े।

आलू की बोआई का माकूल समय चल रहा है। आलू के कंद मिटटी के अन्दर तैयार होते है, अत मिटटी का भली भांति भुर भूरा होना नितांत आवश्यक है पहली जुताई मिटटी पलटने वाले हल से करे दूसरी और तीसरी जुताई देसी हल या हीरो से करनी चाहिए यदि खेती में धेले हो तो पाटा चलाकर मिटटी को भुरभुरा बना लेना चाहिए बुवाई के समय भूमि में पर्याप्त नमी का होना आवश्यक है यदि खेत में नमी कि कमी हो तो खेत में पलेवा करके जुताई करनी चाहिए . तैयारी के बारे में बताया कि प्रति हेक्टेयर ढाई सौ क्विंटल गोबर की सड़ी खाद का छिड़काव कर खेत की अच्छी तरह जोताई करानी चाहिए। ताकि मिट्टी पूरी तरह भूरभुरी हो जाय। साथ ही मिट्टी में पर्याप्त नमी रहना चाहिए। गोबर की सड़ी खाद 50-60 टन20 किलो ग्राम नीम की खली 20 किलो ग्राम अरंडी की खली इन सब खादों को अच्छी तरह से मिलाकर प्रति एकड़ भूमि में समान मात्रा में छिड़काव कर जुताई कर खेत तैयार कर बुवाई करे 
और जब फसल 25 - 30 दिन की हो जाए तब उसमे 10ली. गौमूत्र में नीम का काड़ा मिलाकर अच्छी प्रकार से मिश्रण तैयार कर फसल में तर-बतर कर छिड़काव करें और हर 15-20 दिन के अंतर से दूसरा व तीसरा छिड़काव करें |
रसायनिक उर्वरक में 120 किलो डीएपी, 80 किलो पोटास व 60 किलो यूरिया तथा 10 से 12 किलो साडा वीर प्रति हेक्टेयर के लिए पर्याप्त होता है। डीएपी व पोटास की पूरी मात्रा 3 किलो साडावीर व यूरिया की आधी मात्रा बोआई के समय ही प्रयोग करना चाहिए। जबकि यूरिया व साडावीर की बची हुई मात्रा पौधों की निराई-गुड़ाई के समय करना लाभप्रद होगा।
साडावीर फंगस फाईटर का स्प्रे करते रहने से फंगस की समस्या से निजात मिलती है।

अनिवार्य रूप से करें बीज शोधन

पौधों को रोग से बचाने व बेहतर जमाव के लिए बीज शोधन करना अनिवार्य होता है। किसान बीज को ट्राइकोडर्मा दवा से शोधित कर सकते हैं। शोधन के लिए दवा को बीज साथ अच्छी तरह मिलाकर ढक कर रख दिया जाता है। बस शोधन हो जाता है। इससे फसल में लगने वाले तमाम रोग जहां दूर हो जाते हैं वहीं बीज का जमाव भी अच्छा होता है।