रासायनिक कृषि विनाश का नया आगाज

रासायनिक कृषि विनाश का नया आगाज

रासायनिक कृषि क्या है रासायनिक कृषि का प्रचलन कैसे हुआ 

 रासायनिक उर्वरक क्या हैं उनसे क्या लाभ हैं? क्या हानियाँ है ? इन सबको समझने के लिए इसके इतिहास को हमको जानना पड़ेगा

फ़्रांस के कृषि वैज्ञानिकों ने पता लगाया की पौधों के विकास के लिए मात्र तीन तत्व नाइट्रोजन, फास्फोरस एवं पोटास की अधिक आवश्यकता होती है अत: उनके अनुसार ये तीन तत्व पौधों को दी हैं तो पौधों का अच्छा विकास एवं अच्छी उपज प्राप्त हो सकती है १८४० में जर्मन वैज्ञानिक लिबिक ने इन तीनों के रासायनिक संगठक एन पी के खाद बनाकर फसलों की बढ़वार के लिए इस रसायन को भूमि पर डालने के लिए प्रोत्साहित किया

द्वतीय विश्व युद्ध के बाद भारी मात्रा में बचे गोला , बारूद की रासायनिक सामग्रियों को एन पी के खाद एवं कीटनाशक बनाकर बेचने के लिए बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने व्यापक प्रचार-प्रसार प्रारंभ कर दिया इससे इन कंपनियों को भारी मात्रा में बचे गोला बारूद के रसायनों का अधिकतम मूल्य तो मिला ही साथ ही साथ कृषि बाजार में इन कंपनियों की गहरी जड़ें जम गई भारत तथा एशियाई देशों में औद्यौगिक क्रांति के बाद हरित क्रांति के नाम पर इन खाद और कीट नाशकों को बेचकर खूब पैसा कमाया

इस बात का एक एतिहासिक उदाहरण बताना चाहूँगा १९६५ में अमेरिका वियतनाम युद्ध के दौरान जंगलों में छिपे वियतनामी सैनिकों को ढूंढ़कर अपना निशाना बनाने की गरज से अमेरिका वायुसेना ने एजेंट ओरेंज नाम के रसायन का छिडकाव किया यह रसायन एक व्यापक असर वाला खरपतवार नाशक था जो हर रोज की हरियाली को नष्ट कर देता था अमरीकी वायुसेना ने लगभग एक करोड़ १० लाख गैलन एजेंट ओरेंज छिड़का था जिसके प्रभाव से वियतनाम के लाखों हेक्टेयर जंगल उसकी जैव विबिधता और जीव - जंतु तबाह हो गए जिन वियतनामी सैनिकों या नागरिकों पर इसका असर पड़ा

देश में बड़ते रासायनिक करण से कितनो को लाभ हुआ है और कितनों को हानि यह बताने की शायद अब जरुरत नही है फिर भी इतिहास के पन्नों लो अगर पलट कर देखे तो हमें साफ दिखनें लगेगा हम रसायन को अपने खेत में ढाल कर गर्व महसूस करते है लेकिन यह सच्चाई हम सभी जानते है कि देश आज रासायनिक खादों और कीटनाशकों की बजह से बर्बादी की कगार पर खड़ा है 

आजादी से पहले जब हम जैविक खेत करते थे तो कितने किसान आत्महत्या करते थे या कितने किसान बर्बाद होते थे आज ही किसान आत्महत्या क्यों कर रहा है जब देश में जैविक खादों का प्रयोग होता था तो हमारे यह कितनें लोग बीमार होते थे अब बिमारियां तो किसी मूवीज की तरह रिलीज होती हैं हर छः महीने या एक साल बाद एक नई बीमारी का पर्दा पर्ण  हो ही जाता है न जाने कितने मासूम जन्म लेने से पहले ही इन कामिक्ल की गिरफ्त में आ जाते है और जन्म ही नही ले पते है या जन्म ले भी लेते हैं तो हमारे समाज के मूह पर एक तमाचा के रूप में शाररिक विकलांगता को लेकर वो अपनी जिन्दगीं जीते है फिर भी हमारा समाज हमारी आने वाली पीढ़ी का अनजाने में ही दुश्मन बन बैठा है मई तो कहूँगा यह अनजाने में नही यह तो जानबूझ कर किये जाने वाली गलती है 

हाल में पैदा होने वाली उनकी दूसरी पीढ़ी तक विकलांग पैदा हुई रसायन की निर्माता बहुराष्ट्रीय रसायन कंपनी मोनसेंटो थी और आज यही रसायन राउंड अप नाम से खरपतवार नाशक कहकर भारतीय किसानों को बेचा जा रहा है हम अगर आज भी नही सुधरे तो शायद कभी मौका नही प् सकेंगे  क्या आप चाहेंगे की आपकी भावी पीढ़ी ऐसी ही विकलांग हो ?

तो कृषि रसायनों का और उनकी निर्माता कंपनियों का पूर्ण बहिष्कार करें । आप खुद सोचे समझे और निर्णय ले ।

 

राधाकान्त जी द्वारा किसान हेल्प लाइन के जपरूपता कार्यक्रम के कुछ अंश