रासायनिक खेती न तो हमारा अतीत था और न ही भविष्य

रासायनिक  खेती न तो हमारा अतीत था और न ही भविष्य

रासायनिक  खेती न तो हमारा अतीत था और न ही भविष्य

किसान हेल्पलाइन के किसान जागरूपता कार्यक्रम में आज राधा कान्त जी ने कहा कि यह रासायनिक खादें और रासायनिक कीटनाशक इस देश के अतीत का हिस्सा नही था और ना ही देश का भविष्य होगा यदि इस देश में समय रहते इन रासायनिक खादों और कीटनाशक को नही रोका गया तो देश का बेडा गर्क हो जायेगा हमारे देश में रासायनिककरण आज़ादी से पहले आ गया था उन्होंने कहा विश्व भर में संश्लेषित कार्बनिक रसायनों का उत्पादन पिछले दशक में चौगुना हो गया है। आज नये-नये संश्लेषित रसायनों की अचानक बाढ़ सी आ गई है। एक अनुमान के अनुसार अब तक 40 लाख से अधिक रसायन प्राकृतिक पदार्थों से पृथक या संश्लेषित किए जा चुके हैं। इनमें से लगभग 60,000 से अधिक रसायनों का प्रयोग हमारे दैनिक जीवन में होता है- लगभग 1500 रसायन कीटनाशियों में सक्रिय घटक के रूप में, 4000 औषधियों और अर्द्ध-औषधियों के रूप में तथा 5,500 खाद्य योजकों के रूप में प्रयुक्त होते हैं। शेष 49,000 का वर्गीकरण मोटे तौर पर औद्योगिक और कृषि रसायनों ईंधन और रोगन, सीमेन्ट, सौन्दर्य प्रसाधन, प्लास्टिक तथा रेशों जैसे उपभोक्ता उत्पादों के रूप में किया जा सकता है। अपने देश में तथा विश्व के अन्य देशों में हुए अनुसंधानों में अब यह स्पष्ट हो चुका है कि इन रसायनों में से कुछ या सभी हमारे कामकाजी और आवासीय पर्यावरण में वायु, जल और मृदा प्रदूषकों के रूप में आ जाते हैं। उत्पादन और उपयोग के दौरान बचे रसायनों के लिए सारा पर्यावरण एक ‘रद्दी की टोकरी’ बना हुआ है। यदि रासायनिक प्रदूषण की यह प्रक्रिया अबाध गति से चलती रही तो जीवन के अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह लग जायेगा।

1990 के दशक से भारत में गरीबी और आर्थिक कमजोरी के कारण किसानों की आत्महत्या की रिपोर्ट प्रकाशित होना शुरू हुई थी जो अब तक थमी नहीं है। आर्थिक तंगी के चलते मुख्य रूप से महाराष्ट्र, आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल, पंजाब, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, हरियाणा जैसे राज्य किसानों की आत्महत्या का केन्द्र बनते गए।

कृषि मन्त्रालय एवं राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आँकड़ों के मुताबिक, साल 2009 में 17, 368, 2010 में 15,694, 2011 में 14,027 और साल 2013 में 11,772 किसानों के अत्महत्या की स सूचना मिली। 

यक्ष प्रश्न यह है कि इन आत्महत्याओं का जिम्मेदार कौन है? किसानों द्वारा आत्महत्या करने के पीछे एक ओर जहाँ सरकार जिम्मेदार है, वहीं दूसरी ओर बड़ी कम्पनियों और व्यापारियों की मुनाफाखोर प्रवृत्ति भी। उर्वरकों की खरीदारी से लेकर कृषि उत्पाद को मण्डियों में लाने तक, हर जगह किसानों का शोषण होता है।

नेशनल और इंटरनेशनल कम्पनियों ने बाजार पर अपना एकाधिकार जमा लिया है, जिन पर सरकारों का कोई नियन्त्रण नहीं है। दुर्भाग्य से शासन द्वारा इन पर नियन्त्रण की कोई पहल करना तो दूर, इस दिशा में अब तक विचार-विमर्श भी नहीं किया गया है। आँकड़ों के अनुसार किसानों की संख्या में कमी आई है। 

वर्ष 1991 में देश में जहाँ 11 करोड़ किसान थे, वहां 2001 में उनकी संख्या घटकर 10.3 करोड़ रह गई जबकि 2011 में यह आँकड़ा सिकुड़कर 9.58 करोड़ हो गया। इसका अर्थ यही है कि रोजाना 2,000 से ज्याद किसानों का खेती से मोहभंग हो रहा है। आजादी के बाद से आज तक कृषि क्षेत्र सरकार द्वारा हमेशा उपेक्षित रहा है।

मंच से उन्होंने देश युवाओं का हमेशा की तरह आह्वान किया तथा उन्होंने खेती को अपनाने की बात कही

किसान हेल्प लाइन के इस कार्यक्रम में देश के कई राज्यों के लोग सम्लित हुए इस समारोह में महिलायों एवं यूवाओं ने जम कर भाग लिया

 

kisanhelp के कार्यक्रम में राधा कान्त जी के विचारों के कुछ अंश