ऊसरीली भूमि पर करें धान की खेती

ऊसरीली भूमि पर करें धान की खेती

खरीफ की फसलें क्षारीयता को सह लेती हैं। धान की फसल भी क्षारीयता के प्रति सहनशील होती है इसलिए ऊसरीली भूमि में दो-तीन वर्षों तक खरीफ में सिर्फ धान की फसल लेनी चाहिए। ऐसा करने से जैविक क्रिया के फलस्वरूप एक प्रकार का कार्बनिक अम्ल बनता है जो क्षारीयता को कम करता है। साथ ही भूमि में सोडियम तत्व का अवशोषण अधिक मात्रा में होने से भूमि में विनिमयशील सोडियम की मात्रा कम हो जाती है और भूमि की भौतिक तथा रायायनिक गुणवत्ता में धीरे-धीरे सुधार हो जाता है।तथा प्रत्येक खाद पर 2 से 3 किलो साडावीर अवश्य डालें।

धान की खेती से पहले पूरी करें ये प्रक्रियाएं
गेहूं की कटाई एवं भण्डारण के बाद धान की फसल तेयार करने के लिए ऊसर भूमि के सुधार के लिए गतिविधियां मई के आखिरी सप्ताह अथवा जून के प्रथम सप्ताह से प्रारम्भ कर देनी चाहिए।
1. सर्वप्रथम खेत की जुताई करके उसकी मेड़बंदी कर लें।
2. इसके बाद जिप्सम की आवश्यक मात्रा को खेत में समान रूप से बिखेर कर लगभग 10 सेमी गहराई तक मिट्टïी में में मिला दें।
3. जिप्सम मिलाने के तुरंत बाद खेत में पानी भर दें। पानी लगभग दो सप्ताह तक 10 से 15 सेमी ऊंचाई तक भरा रहना चाहिए। ऐसा करने के घुलनशील लवण तथा सोडियम खेत की निचली सतह बैठ जाते हैं। इससे मृदा अम्ल अनुपात एवं पीएच मान कम हो जाता है।
4. ऊसर भूमि को सुधारने के लिए संतृप्त जिप्सम की आधी मात्रा तथा 10 टन प्रति हेक्टेयर की दर से गोबर की सड़ी खाद खेत में डालें। यदि गोबर की खाद उपलब्ध न हो तो संतृप्त जिप्सम की आधी मात्रा ही प्रयोग करें।
5. ये प्रक्रियाएं पूरी होने पर खरीफ की प्रथम फसल के रूप में धान की फसल लें।