अमरूद की नई किस्‍में, एक बार लगाए 28 साल तक कमाए मुनाफा

कृषि वैज्ञानिकों ने अमरूद की कुछ नई किस्म तैयार की है, जो एक बार लगाने के बाद 28 साल तक फलते रहेंगे। इस खेती से किसानों के जीवन में भी आमूल-चूल परिवर्तन हो सकता है।

अमरूद की खेती के तरीके भी आसान हैं, जिसे किसानों के अलावा आम आदमी भी शुरू कर सकता है और हर साल प्रति एकड़ दो से ढाई लाख रुपए का मुनाफा लिया जा सकता है। अहम बात यह है कि इसमें मजदूरों की जरूरत कम पड़ेगी।

इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर के वैज्ञानिकों का दावा है कि अमरूद की खेती में केवल एक ही बार लागत लगाकर सालों-साल मुनाफा कमाया जा सकता है। आम तौर पर देखें तो ज्यादातर फलों के पेड़ तीन-चार सालों में समाप्त हो जाते हैं और किसान को फिर से लागत लगाकर नए पौधे लगाने पड़ते हैं, लेकिन अमरूद की अति सघन बागवानी तकनीक में बार-बार पौधे लगाने की जरूरत नहीं है।

सुनियोजित कृषि विकास केंद्र (पीएफडीसी) इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर में अमरूद की अतिसघन बागवानी में एक एकड़ में 1600 पौधे लगाए गए हैं। इसमें कतार से कतार की दूरी दो मीटर और पौध से पौध की दूरी एक मीटर है। इसमें अमरूद की चार प्रजाति ललित, इलाहाबाद सफेदा, लखनऊ-49 और वीएनआरबी लगाई गई है।

ऐसे करें अमरूद की बागवानी

अतिसघन बागवानी करते समय मुख्य पौधे को सबसे पहले 70 सेंटीमीटर की ऊंचाई से काट दें। उसके बाद दो-तीन माह में पौध से चार-छह सशक्त डालियां विकसित होती हैं। इनमें से चारों दिशाओं में चार डालियों को सुरक्षित कर बाकी को काट देते हैं, ताकि पौधे का संतुलन बना रहे। इससे मात्र छह माह में ही अमरूद फल देने लगता है। कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक प्रारंभिक अवस्था में हर पेड़ में तीन-चार फल ही रखें, बाकी फलों को छोटी अवस्था में तोड़ दें। इससे नन्हें पौधों पर ज्यादा बोझ नहीं आएगा।

प्रति एकड़ लागत (रुपए में)

- 1600 पौधे की लागत 48 हजार

- ट्रैक्टर से दो बार जोताई 4 हजार

- 10 टन गोबर खाद 6 हजार

- कटाई-सधाई में लगने वाली सालभर की मजदूरी 15 हजार

- रासायनिक उर्वरक 3 हजार

- दीमक नियंत्रक दवाई 2 हजार

कुल लागत 78 हजार रुपए

साल में तीन बार बहार (बौर)

कृषि विश्वविद्यालय के प्रमुख अन्वेषक व वैज्ञानिक डॉ.घनश्याम साहू ने बताया कि अमरूद में तीन प्रकार के बहार (फूल या बौर) लगते हैं। फरवरी में अम्बे बहार, जून में मृग बहार और अक्टूबर में हस्त बहार से फल प्राप्त किया जा सकता है। लेकिन तीनों बहारों में से दो बहार मृग व हस्त बहार में ही फल लेना उत्तम रहता है।

इन बातों का रखें ध्यान

कृषि विशेषज्ञ के मुताबिक अमरूद की फसल में कटाई-सधाई का बहुत महत्वपूर्ण योगदान है। किसानों को इस बात का विशेष ध्यान रखना होगा। मृग व हस्त बहार के फल तोड़ाई के बाद ही कटाई-सधाई करें। सिंचाई के लिए टपक पद्धति का उपयोग करें।

टपक सिंचाई पद्धति से लेटरल्स दो-दो मीटर की दूरी पर स्थापित करें और लेटरल्स में लगने वाले बटन ड्रीपर को एक-एक मीटर की दूरी पर लगाएं। छत्तीसगढ़ में चार प्रकार की मिट्टी मटासी, भाठा, डोरसा और कन्हार है। इन सभी प्रकार की मिट्टी वाले खेतों में जल निकास की समुचित व्यवस्था करके आसानी से अमरूद की अति सघन बागवानी की जा सकती है।

इस प्रकार की बागवानी में पहले साल से ही फल प्राप्त किए जा सकते हैं, लेकिन व्यवसायिक स्तर पर दूसरे साल से प्रति पौध 35 से 40 फल लेने चाहिए। हालांकि फल डेढ़ से दो सौ की मात्रा में लगेंगे। ज्यादा फल लगने से पौधे को नुकसान होगा। इसलिए शुरुआती सालों में अतिरिक्त छोटे फलों को तोड़ देना चाहिए। हर साल इसकी मात्रा बढ़ाकर अधिक फल लिया जा सकता है।

प्रति एकड़ सालाना ढाई लाख मुनाफा

एक एकड़ में लगे अमरूद के 1600 पौधों से सालाना 12 क्विंटल से अधिक फलों का उत्पादन होगा। इसे यदि 20 रुपए किलो पर ही बेचें तो भी हर साल ढाई लाख रुपए से अधिक का मुनाफा होगा। इसमें मुख्य लागत एक ही साल लगेंगे। इसके बाद केवल खाद व मजदूरी पर ही खर्च होंगे।

साभार नई दुनिया